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ड्रैगन पश्चिम के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों को चीनी हितों के लिए कर रहा प्रभावित, चीन शैली की शासन व्यवस्था की कर रहे पैरोकारी

Renuka Sahu
29 Nov 2021 1:22 AM GMT
ड्रैगन पश्चिम के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों को चीनी हितों के लिए कर रहा प्रभावित, चीन शैली की शासन व्यवस्था की कर रहे पैरोकारी
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फाइल फोटो 

पश्चिमी उच्च शिक्षण और प्रतिष्ठित संस्थान चीनी कम्युनिस्ट पार्टी जैसे सत्तावादी राजनीतिक व्यवस्थाओं का सामान्यीकरण कर रहे हैं, जबकि उन्हें जांच के दायरे में होना चाहिए।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पश्चिमी उच्च शिक्षण और प्रतिष्ठित संस्थान चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) जैसे सत्तावादी राजनीतिक व्यवस्थाओं का सामान्यीकरण कर रहे हैं, जबकि उन्हें जांच के दायरे में होना चाहिए। न्यूजवीक पत्रिका के लिए लिखने वालीं जार्जिया एल. गिलहोली ने आरोप लगाया कि अमेरिका और ब्रिटेन में बेहद प्रतिष्ठित शैक्षिक संस्थानों को चीनी हितों के लिए प्रभावित किया गया है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि लोकतांत्रिक संस्थानों के गठन के सिद्धांत के पैरोकार पश्चिम के विश्वविद्यालयों ने इस अवधारणा को आगे बढ़ाया है कि चीन शैली के शासन को अन्य देशों द्वारा अपनाया जा सकता है।

मालूम हो कि गिलहोली पिंसकर सेंटर में मीडिया डायरेक्टर और फाउंडेशन फार उइगर फ्रीडम के लिए एडीटर इन चीफ हैं। यह भी तथ्य है कि चीन सरकार और उससे जुड़े कारपोरेशंस इस तथ्य के बावजूद विश्वविद्यालयों के प्रशासकों की अपनी लाबिंग में प्रभावी रहे हैं कि अन्य देशों के लिए चीनी शासन व्यवस्था को अपनाना असंभव हो सकता है। गिलहोली ने आरोप लगाया कि इस संकट का कारण विश्वविद्यालयों का विस्तार और उनका वाणिज्यिकरण है जिसकी वजह से वे विदेशी नकदी पर निर्भर हो गए हैं जबकि ब्रिटेन में शैक्षिक संस्थान सरकारी सहायता प्राप्त हैं।
उन्होंने कहा, 'चीन सरकार शिनजियांग के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र के पुनर्शिक्षण शिविरों में 10 से 30 लाख उइगरों और तुर्की के अन्य मुस्लिमों को रखने के लिए जिम्मेदार है जहां उन्हें जबरन श्रम और यौन दु‌र्व्यवहार आदि के लिए मजबूर किया जाता है।' उन्होंने आगे कहा, 'यह स्पष्ट है कि कई शिक्षण संस्थानों के पास बीजिंग की मांगों को लंबित रखने का कोई वित्तीय या नैतिक प्रोत्साहन नहीं है। लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ सीसीपी ही ब्रिटेन की उच्च शिक्षा को प्रभावित कर रही है। शीर्ष के कालेज नियमित तौर पर दमन से जुड़े शासनों और कंपनियों से बड़े दान लेते हैं और यह स्पष्ट है कि ऐसे दान देने के लिए चीन के पास काफी नकदी है।' बता दें कि ऐसे स्तंभकारों की संख्या लगातार बढ़ रही है जो पश्चिमी दुनिया के प्रतिष्ठित शैक्षिक संस्थानों में चीनी प्रभाव की आलोचना करते हैं और गिलहोली उनमें से एक हैं।
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