बढ़ते तापमान यानी ग्लोबल वार्मिग के कारण ग्लेशियरों का पिघलना और समुद्र का जलस्तर बढ़ना विज्ञानियों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। ग्लेशियरों में इतनी बर्फ जमी है कि यदि इनका जरा सा भी हिस्सा पिघल जाए तो दुनिया का बड़ा भाग डूब जाएगा। अंटार्कटिका का थ्वेट्स ग्लेशियर भी ऐसी ही अथाह बर्फ समेटे हुए है। गुरुवार को 32 विज्ञानियों का दल इस ग्लेशियर का अध्ययन करने के लिए रवाना हुआ है।
बढ़ते जलस्तर की अनिश्चितता
स्वीडन की यूनिवर्सिटी आफ गोथेनबर्ग की समुद्र विज्ञानी एना वेलिन ने कहा, 'भविष्य में समुद्र का जलस्तर किस तरह से बढ़ेगा, इसे लेकर हम अनिश्चय की स्थिति में हैं। इस अनिश्चय में थ्वेट्स की बड़ी भूमिका है। यह बहुत अस्थिर है और यही चिंता की बात है।'
अध्ययन से मिलेगी अहम जानकारी
32 विज्ञानियों का दल अमेरिकी रिसर्च शिप के साथ रवाना हुआ है। विज्ञानी ऐसी जगह पहुंचेंगे, जहां अब से पहले विज्ञानियों का कोई दल नहीं गया है। 2019 में एक दल उस ओर गया था, लेकिन वह भी ग्लेशियर के किनारे तक नहीं पहुंचा था। इस बार विज्ञानी पानी का तापमान, समुद्र की सतह और बर्फ की मोटाई का अध्ययन करेंगे। इस दौरान बर्फ पर पड़ रही दरारों का भी विश्लेषण किया जाएगा।
दुनिया का सबसे बड़ा ग्लेशियर
अंटार्कटिका का थ्वेट्स आकार में दुनिया का सबसे बड़ा ग्लेशियर है। यह 1.92 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। इसका क्षेत्रफल गुजरात के बराबर है। इसमें जितनी बर्फ है और इससे समुद्र का स्तर बढ़ने का जितना खतरा है, उसे देखते हुए इसे डूम्सडे (प्रलय का दिन) ग्लेशियर भी कहा जाता है। आंकड़े बताते हैं कि थ्वेट्स से सालाना 50 अरब टन बर्फ पिघलकर समुद्र में मिल जाती है। ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के मुताबिक, दुनियाभर में समुद्र के बढ़ते स्तर में चार प्रतिशत की हिस्सेदारी थ्वेट्स की है।
शीशे की तरह चटक रही है सतह
ओरेगान स्टेट यूनिवर्सिटी की विज्ञानी इरिन पेटिट ने कहा कि इस ग्लेशियर का जमीनी हिस्सा अपनी पकड़ खो रहा है। इससे बर्फ का बड़ा हिस्सा समुद्र में पहुंच सकता है और फिर धीरे-धीरे पिघलकर तबाही ला सकता है। इसके अलावा चिंता की बात यह भी है कि इसकी बर्फीली सतह कार के शीशे की तरह चटक रही है। मात्र एक साल में 10 किलोमीटर तक लंबी दरारें पड़ रही हैं।