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तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफगानिस्तान और ईरान के बीच जल टकराव ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि कभी भी युद्ध भड़क सकता है।
उपलब्ध ब्यौरे के मुताबिक, दोनों राष्ट्रों के बीच हेलमंद नदी के पानी को लेकर टकराव है, जो अफगानिस्तान और ईरान के बीच सीमा का काम करती है। यह नदी एक हजार किलोमीटर लंबी है। यह अफगानिस्तान के पूर्व से ईरान तक बहती है।
1950 में अफ़ग़ानिस्तान ने इस पर दो बड़े बाँध बनाये। इसकी वजह से ईरान को मिलने वाला पानी कम हो गया। दोनों राष्ट्रों के बीच रिश्तों में कड़वाहट के बाद 1973 में एक समझौता हुआ। जिसके मुताबिक अफगानिस्तान हर वर्ष ईरान को 85 मिलियन क्यूबिक टन पानी देने पर सहमत हुआ। हालाँकि, इस समझौते को कभी भी ठीक से लागू नहीं किया गया और दोनों राष्ट्रों के बीच लगातार मतभेद बने रहे।
तालिबान के सत्ता में आने के बाद जल बंटवारे का मामला युद्ध की ओर बढ़ता दिख रहा है। ईरान का बोलना है कि तालिबान के सत्ता पर कब्ज़ा करने के बाद ईरान को मिलने वाला पानी और कम हो गया है। ईरान में लाखों लोग इस नदी के पानी पर निर्भर हैं। दूसरी ओर, ग्लोबल वार्मिंग के असर और सूखे जैसे हालात के कारण हेलमंद नदी में पानी कम हो गया है, इसलिए अफगानिस्तान के लिए भी पानी की आवश्यकता बढ़ गई है।
मई में ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रेसी ने अफगानिस्तान को चेतावनी दी थी कि यदि अफगानिस्तान जल बंटवारा समझौते का पालन नहीं करता है तो उसे गंभीर रिज़ल्ट भुगतने के लिए तैयार रहना होगा। जवाब में तालिबान ने इस बयान का मजाक उड़ाया और 20 लीटर पानी का एक कंटेनर ईरान भेजा।
इसके बाद दोनों राष्ट्रों के बीच बढ़ते तनाव के कारण सीमा पर तालिबान और ईरानी सेना के बीच हुई झड़प में दो ईरानी गार्ड और एक तालिबान लड़ाके की मृत्यु हो गई। अब तालिबान ने हजारों सैनिकों और आत्मघाती हमलावरों को ईरानी सीमा के पास भेज दिया है और सूत्रों का बोलना है कि तालिबान किसी भी समय ईरान के साथ युद्ध के लिए तैयार है।
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