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पृथ्वी की धुरी
पृथ्वी (Earth) के उत्तरी और दक्षिण ध्रुव हमेशा ही स्थिर नहीं रहते हैं. पृथ्वी एक काल्पनिक रेखा पर घूमती है जिसे पृथ्वी की धुरी या अक्ष (Axis of Earth) कहा जाता है. वैज्ञानिक बताते हैं कि इस धुरी के स्थायी ना होने के पीछे बहुत से कारण हैं. सभी प्रक्रियाएं तो वैज्ञानिक नहीं समझ सके हैं, लेकिन उन्हें लगता है कि पृथ्वी की सतह पर जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण ग्लेशियर पिघलने से पृथ्वी की धुरी खिसक गई है..
वैज्ञानिकों का कहना है कि यह बदलाव 1990 के स्थिति की तुलना में आया है. जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण पिघलते ग्लेशियर (Glacier Melting) पानी के वितरण में इतना बदलाव कर रहे हैं जिससे ध्रुव 1990 के दशक की स्थिति की तुलना में पूर्व की दिशा में खिसक रहे हैं. जियोफिजिकल रिसर्च लैटर्स में प्रकाशित इस अध्ययन के लेखक और यूनिवर्सिटी ऑफ चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेस के इंस्टीट्यूटट ऑफ जियोग्राफिक सांसेस एंड नेचुरल रिसोर्सेस के शोधकर्ता शानशैन डेंग का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के कारण तेजी से पिघलती बर्फ ही ध्रवों की दिशा को खिसकाने के लिए जिम्मेदार है.
इस अध्ययन शामिल नहीं हुए विशेषज्ञ और यूनिवर्सटी ऑफ ज्यूरिख के जलवायु वैज्ञानिक बताते हैं कि पृथ्वी (Earth) एक लट्टू की तरह घूमती है, यदि घूमते हुए लट्टू का भार घूमेगा तो लट्टू झुकना शुरु कर देगा और डगमगाने लगेगा जिससे उसके घूर्णन अक्ष में बदलाव आ जाएगा. ऐसा ही कुछ पृथ्वी के साथ हो रहा है जब उसका कुछ भार एक इलाके से दूसरे इलाके में खिसक रहा है. इस अध्ययन के शोधकर्ता ध्रवों के खिसकने के कारण को ग्रैविट रिकवरी एंड क्लाइमेंट एक्सपेरिमेंट (GRACE) के आंकड़ों के आधार पर बता सके. यह अभियान नासा (NASA) और जर्मन एरोस्पेस सेंटर का संयुक्त प्रयास था जिसमें दो सैटेलाइट 2002 में भेजे गए थे.
ग्रेस अभियान (GRACE mission) ने पृथ्वी (Earth) के भार वितरण की जानकारी एकत्र की. इस मिशन के आंकड़ों पर आधारित हुए पिछले अध्ययनों से धुरी (Axis of Earth) की दिशा में हुए बदलावों को कुछ कारण पता चले. इनमें से एक अध्ययन ने बताया था कि हाल ही में उत्तरी घ्रुव के कनाडा से रूस की ओर खिसकने के पीछे पृथ्वी की बाहरी क्रोड़ में पिघला लोहा एक कारक है. दूसरे बदलावों के कारणों में पृथ्वी के पानी के भंडारण और जमीन का पानी की स्थिति में बदलाव शामिल हैं.
नए अध्ययन के शोधकर्ताओं को लगता है कि जिस तरह से दुनिया के पानी का भार वितरण (Water Mass Distribution) बदला है. ऐसे में पिछले दो दशकों से जमीन से पानी हटने की ध्रुवों के खिसकने (Polar Drift) में भूमिका है. वे खासतौर पर यह जानना चाहते थे कि या इससे 1990 के दशक के मध्य में हुए बदलाव की व्याख्या मिल सकती है या नहीं. 1995 में ध्रुव दक्षिण से पूर्व की ओर खिसके थे तब से इसकी औसत गति बढ़ती ही गई है.
अब शोधकर्ताओं ने विश्लेषण का नया तरीका निकाला है जिससे वे पृथ्वी की अक्ष (Axis of Earth) में पहले हुए बदलाव की भी जानकारी हासिल करने के साथ उसके कारण भी पता कर सकते हैं. इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने ग्रेस अभियान (GRACE Mission) से पहले ही 1990 के दशक में हुए जमीन के पानी के नुकसान की गणना कर ली. इससे शोधकर्ताओं को जलवायु (Climate) की वजह से ध्रुवों के खिसकने के संकेत मिल सके. इस परियोजना का लक्ष्य पानी और ध्रुवीय गतिविधि के संबंध को जानना था.
शोधकर्ताओं ने ग्लेशियर (Glacier) के नुकसान के आकंड़ों और जमीन से पानी (Groundwater) निकाले जाने के आंकलन किया और जमीन में जमा पानी में बदलाव की गणना की. उन्होंने पाया कि पानी का नुकसान ध्रुवों के खिसकने (Polar Drift) के प्रमुख कारण है. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह बदलाव इतना बड़ा नहीं है कि लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर असर डाले. यह दिन को केवल कुछ ही मिली सेकेंड तक बढ़ा देगी.
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