ब्रिटेन में कोरोना के डेल्टा स्वरूप के तेज प्रसार का कारण वहां टीके की दूसरी खुराक में हुई देरी भी माना जा रहा है। कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक, ऐसा लगता है कि ब्रिटेन सरकार के पहली और दूसरी खुराक के बीच अंतर बढ़ाने के निर्णय ने लोगों में डेल्टा के प्रसार का रास्ता खोलने का काम किया है। जबकि भारत में इसने प्राकृतिक चयन के कारण अपना प्रकोप फैलाया था
ब्रिटेन ने बताया, अल्फा स्वरूप के मुकाबले डेल्टा 100 फीसदी तक ज्यादा संक्रामक हो सकता है। पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड के आंकड़ों में पता लगा कि जिन लोगों ने फाइजर की दोनों खुराक ले रखी हैं, वह डेल्टा के खिलाफ 88 फीसदी तक सुरक्षित माने जा रहे हैं। लेकिन यही आंकड़ा फाइजर या एस्ट्राजेनेका की सिंगल डोज में 33.5 तक नीचे चला जाता है।
जानकारों का कहना है, दुनिया में असमान टीकाकरण के मद्देनजर यह महत्वपूर्ण हो गया है कि हम कई देशों में फैलने वाले कोरोना के अलग-अलग स्वरूपों और उनके संक्रमण चयन पर गौर करें। मोटे तौर पर हमें यह देखना होगा कि कोई भी स्वरूप किस-किस देश में किन लोगों को संक्रमित कर रहा है। जरूरी नहीं कि दो देशों की आबादी में वायरस के किसी स्वरूप का असर एक समान हो। इन स्वरूपों के उद्भव सिद्धांत और जन स्वास्थ्य विज्ञान को जोड़कर हम महामारी को लेकर ज्यादा सही भविष्यवाणियां कर सकते हैं।