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राजा महेंद्र प्रताप ने साल 1911 में बाल्कन वॉर में भी हिस्सा लिया था। उन्हें 'आर्यन पेशवा' के नाम से भी जाना जाता था।
काबुल: शनिवार को भारत में अंतरधार्मिक सम्मेलन का आयोजन हुआ। इस सम्मेलन में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजित डोभाल भी मौजूद थे। डोभाल ने यहां पर अलग-अलग धर्मों के लोगों को बताया कि कैसे भारत से गए 6 उलेमाओं की मदद से अफगानिस्तान में सन् 1915 में पहली भारतीय सरकार का गठन हो सका था। डोभाल ने बताया कि भारत ने यहां पर न केवल शासन स्थापित किया बल्कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह को यहां के राष्ट्रपति के तौर पर नियुक्त किया था। डोभाल ने ये बात अलग-अलग जगहों से आए धर्मगुरुओं के बीच कही। उन्होंने इसका जिक्र तब किया जब वो बता रहे थे कि कैसे आज धर्म के नाम पर एक आपसी द्वंद का माहौल बनता जा रहा है। डोभाल की बातों से अलग आज हम आपको बताते हैं कि असल में सन् 1915 में क्या हुआ था जिसका जिक्र एनएसए करने से नहीं चूके।
प्रथम विश्व युद्ध का समय
1 दिसंबर 1915 को जब दुनिया प्रथम विश्व युद्ध से गुजर रही थी तो उसी समय अफगानिस्तानमें पहली भारतीय प्रांतीय सरकार का गठन हो रहा था। भारतीयों की तरफ से बनाई गई इस सरकार में बहुत से मुसलमान शामिल थे। इस सरकार के गठन का मकसद भारत के आंदोलन के लिए अफगान अमीर के अलावा रूस, चीन और जापान का समर्थन हासिल करना था। इस सरकार का गठन अफगान सरकार के आतंरिक प्रशासन की मदद से हुआ था। अफगान के अमीर ने भारत को खुले समर्थन का एलान कर दिया था।
इसका नतीजा था कि सन् 1919 में ब्रिटिश सरकार को अफगानिस्तान से अपना बोरिया बिस्तर समेटना पड़ गया था। ब्रिटिश सरकार ने अफगानिस्तान में शांति के लिए पाकिस्तान से समर्थन मांगा। साल 2015 में जब इस सरकार के 100 साल का जश्न मनाया गया तो उस समय अफगान सरकार में सूचना और संस्कृति मंत्री रहे अब्दुल बारी जहानी ने इस बारे में और जानकारी दी थी। उन्होंने बताया, 'हमारे अनुरोध पर ही हमारे साझीदार और पड़ोसी देशों ने अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता कायम करने के हमें मदद की। उन्होंने इस बात की परवाह भी नहीं की थी कि इससे उनके देश में शांति भंग होगी।' राजा महेंद्र प्रताप जहां देश के राष्ट्रपति बने तो मौलवी बरकतुल्लाह प्रधानमंत्री और मौलवी अबैदुल्लाह सिंधी को गृह मंत्री बनाया गया।
कौन थे राजा महेंद्र प्रताप सिंह
राजा महेंद्र प्रताप सिंह को जाट समुदाय में शौर्य का प्रतीक माना जाता है। उन्होंने अफगानिस्तान में न सिर्फ सरकार बनाई बल्कि अंग्रेजों को चुनौती भी दी थी। राजा महेंद्र प्रताप सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के मुरसान रियासत के राजा थे। जाट परिवार से आने वाले राजा महेंद्र प्रताप सिंह अपने इलाके के काफी पढ़े-लिखे शख्स थे और साथ ही उनकी पहचान एक लेखक और पत्रकार के तौर पर भी हुई थी। राजा महेंद्र प्रताप ने अफगानिस्तान में भारतीय सरकार की घोषणा अंग्रेजों के शासन काल के दौरान की थी।
इतिहासकारों की मानें तो जो काम राजा महेंद्र प्रताप ने किया, वहीं काम बाद में सुभाष चंद्र बोस ने किया था। इतिहासकारों को इस वजह से ही बोस और राजा महेंद्र प्रताप में काफी समानताएं नजर आती हैं। राजा महेंद्र प्रताप 32 साल तक भारत के बाहर रहे और कई देशों से देश की आजादी के लिए समर्थन जुटाते रहे। राजा महेंद्र प्रताप ने साल 1911 में बाल्कन वॉर में भी हिस्सा लिया था। उन्हें 'आर्यन पेशवा' के नाम से भी जाना जाता था।
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