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जारी रखने के लिए पूरी तरह से राज्य के समर्थन पर निर्भर है.
जैसे-जैसे रूस और यूक्रेन के युद्ध के दिन बढ़ते जा रहे हैं, वैसे-वैसे अब इसका असर भी बढ़ने लगा है. खुद रूस भी इस युद्ध से बहुत ज्यादा मुश्किलों का सामना कर रहा है. सबसे ज्यादा दिक्कत उसके एयरलाइंस सेक्टर को उठानी पड़ रही है. दरअसल, अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं, इस वजह से उसे एयरलाइंस की मरम्मत के लिए पार्ट्स नहीं मिल पा रहे. नतीजतन उसे अपने कुछ विमान के पार्ट्स को अलग कर दूसरे में लगाना पड़ रहा है. कथित तौर पर वहां राज्य नियंत्रित एयरोफ्लोत ने स्पेयर पार्ट्स के लिए अपने कई पैजेंसर जेट को स्पेयर पार्ट्स निकालकर उन्हें ऑपरेशंस से बाहर कर दिया है.
नहीं मिल पा रहे स्पेयर पार्ट्स
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, जेटलाइनर की उड़ान जारी रखने के लिए जिन जरूरी स्पेयर पार्ट्स की जरूरत होती है उसके लिए रूस और उसकी एयरलाइंस कंपनी पश्चिमी देशों पर बहुत अधिक निर्भर है. पर पश्चिम देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से रूसी विमानों को ये पार्ट्स नहीं मिल पा रहे हैं. इस वजह से मजबूरी में रूसी अधिकारियों को इस तरह से चीजें मैनेज करनी पड़ रही हैं.
खतरनाक है पार्ट्स बदलकर काम चलाना
रिपोर्ट के मुताबिक, कथित तौर पर एयरोफ़्लोत ने अपने बोइंग 737 और एयरबस ए 320 को हटाकर इनके स्पेयर पार्ट्स को अन्य बोइंग और एयरबस में फिट करने के लिए दे दिया है. इसके अलावा एयरोफ़्लोत के सात में से तीन एयरबस ए350 से पुर्जों को पहले ही अलग करके उनसे बाकी के चार जेटलाइनरों को चलाया जा रहा है. बता दें कि इस तरह विमानों के पार्ट्स को आपस में बदलना उसकी संचालन क्षमता के लिए खतरा बन सकता है. दरअसल, कई पार्ट्स की लाइफ सीमित होती है और उन्हें एक तय समय के बाद बदलने के जरूरत होती है, लेकिन रूस मजबूरी में इस खतरे से खेल रहा है.
आने वाले दिनों में बढ़ सकती है समस्या
रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले दिनों में परेशानी और बढ़ सकती है, क्योंकि बोइंग 737 मैक्स, 787, ए320नियो और ए350 जैसे यात्री जेट के नए वर्जन को लगातार अपग्रेडेशन की जरूरत है. आपको बता दें कि रूस के सुखोई सुपरजेट भी विदेशी स्पेयर पार्ट्स पर बहुत अधिक निर्भर हैं. एयरोफ़्लोत के पास रूस निर्मित 80 सुखोई सुपरजेट-100 विमान हैं और उसके लिए इनके पार्ट्स ख़रीदना चुनौतीपूर्ण बन गया है. यूक्रेन संग युद्ध से पहले, एयरोफ़्लोत सबसे बड़े वैश्विक खिलाड़ियों में से एक था. हालांकि, तब से इसके ट्रैफिक में रिकॉर्ड 22 फीसदी की गिरावट आई है और कंपनी अब अपना संचालन जारी रखने के लिए पूरी तरह से राज्य के समर्थन पर निर्भर है.
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