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क्रूर मौत! 900 से ज्यादा सैनिकों को मगरमच्छों ने जिंदा खाया, दो दिनों तक चला मंजर, फिर...

jantaserishta.com
19 Feb 2021 4:05 AM GMT
क्रूर मौत! 900 से ज्यादा सैनिकों को मगरमच्छों ने जिंदा खाया, दो दिनों तक चला मंजर, फिर...
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दुनिया में अब तक दो विश्व युद्ध हुए हैं और इनमें द्वितीय विश्व युद्ध (Second World War) को सबसे घातक माना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें जापान (Japan) के ऊपर परमाणु बमों का प्रयोग किया गया. द्वितीय विश्व युद्ध में जापान को हार मिली और करीब 21 लाख जापानी सैनिकों को मौत हुई. लेकिन इनमें से 980 सैनिक ऐसे थे, जिनकी मौत का कारण मगरमच्छ (Crocodile) थे. इन मगरमच्छों ने जापानी सैनिकों (Japani Soldiers) को बेरहमी से जिंदा ही खा लिया. युद्ध इतिहास में इसे बेहद ही क्रूर तरीके से हुई मौत के रूप में याद किया जाता है. ये घटना आज ही दिन 19 फरवरी, 1945 को म्यांमार में हुई थी.

द्वितीय विश्व युद्ध (World War II) के दौरान सन 1942 में जापानी इंपीरियल सेना (Japanese Imperial Army) ने राम्री द्वीप (Ramree Island) पर कब्जा कर लिया. वर्तमान में ये द्वीप म्यांमार (Myanmar) के तट के पास ही स्थित था. रणनीतिक रूप से राम्री बेहद ही महत्वपूर्ण जगह थी. ऐसे में मित्र राष्ट्रों (Allies Nations) को लगने लगा कि इसे कब्जे में लेना जरूरी है. इस तरह 1945 में द्वीप पर कब्जा करने के लिए मित्र राष्ट्रों ने हमला करना शुरू कर दिया. इसके करीब एक एयरबेस बनाया गया ताकि अभियान को मदद पहुंचाई जा सके. बता दें कि मित्र राष्ट्रों में ब्रिटेन,अमेरिका और रूस, जबकि धुरी राष्ट्रों (Axis Nations) में जर्मनी, जापान और इटली शामिल थे.
जापानी सैनिकों को मैंग्रोव के दलदल में खदेड़ा गया
राम्री द्वीप पर दोनों गुटों के बीच खूनी संघर्ष हुआ. यहां बड़ी संख्या में जापानी सैनिक तैनात थे और मित्र राष्ट्र कब्जे के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार थे. दोनों गुटों के बीच जबरदस्त घमासान जारी थी. आखिरकार मित्र राष्ट्रों की सैनिकों को जापानी जवानों के ऊपर बढ़त हासिल हुई. जापानी सैनिकों को राम्री द्वीप के घने मैंग्रोव दलदलों में धकेल दिया गया. मैंग्रोव का ये दलदल राम्री द्वीप के करीब 16 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ था. बिना खाना-पानी जापानी सैनिक यहां फंस गए. मैंग्रोव होने की वजह से मच्छरों का आतंक यहां अधिक था. लगातार मच्छरों के काटने और साफ पानी उपलब्ध नहीं होने के चलते जापानी सैनिक परेशान हो रहे थे.
जापानी सैनिकों पर मंडराया मच्छर, सांप और जहरीली मकड़ियों से काटे जाने का खतरा
हालांकि, जापानी सैनिकों की इच्छाशक्ति अभी खत्म नहीं हुई थी. ब्रिटिश जवानों ने उन्हें सरेंडर करने को कहा, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया. इसके बाद जापानी सैनिक अपने बेस को छोड़कर दलदल में आगे बढ़ने लगे. इन जापानी सैनिकों के आगे मच्छरों, जहरीली मकड़ियों और सांपों के काटे जाने का खतरा तो था ही, लेकिन सबसे बड़ी मुसीबत पीने का साफ पानी था. इन कई खतरों के बावजूद, एक खतरा ऐसा था, जो इन सबसे ज्यादा खतरनाक था. एक रात ब्रिटिश सैनिकों को दलदलों के अंधेरे के भीतर से चिल्लाने और गोलियों की आवाज सुनाई दी. वास्तव में ब्रिटिश सैनिकों इस बात से बेखबर थे कि ये आवाज आखिर क्या थी. लेकिन उन्हें इतना जरूर मालूम था कि जापानी जवानों के ऊपर किसी ने हमला किया है.
900 किलो वजनी मगरमच्छों ने सैनिकों को जिंदा खाया
दरअसल, जापानी सैनिकों के लिए सबसे बड़ा खतरा राग्री द्वीप में रहने वाले मगरमच्छ सबसे बड़े खतरे के रूप में उभरे. 20 फुट की लंबाई तक बढ़ने वाले और करीब 900 किलो वजनी ये मगरमच्छ जापानी सैनिकों का काल बन गए. मैंग्रोव में भीतर तक घुसते ही इन मगरमच्छों ने जापानी सैनिकों पर हमला कर दिया. मगरमच्छों ने बेरहमी से इन लोगों को खाना शुरू कर दिया. मौत का ये मंजर दो दिनों तक चला और सभी जापानी सैनिक मारे गए. अभी तक मगरमच्छों को लेकर माना जाता था कि ये अपने असल आवास में जानवरों पर ही हमला करते हैं. लेकिन अब ये बात साबित हो चुकी थी कि ये इंसानों पर भी हमला कर सकते हैं.

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