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इजरायल में वोटों की गिनती पूरी, अरब नेता मंसूर अब्बास किंगमेकर बनकर उभरे

Apurva Srivastav
25 March 2021 4:56 PM GMT
इजरायल में वोटों की गिनती पूरी, अरब नेता मंसूर अब्बास किंगमेकर बनकर उभरे
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इजरायल में इस हफ्ते हुए चुनाव के वोटों की गिनती हो चुकी है. बेंजामिन नेतन्याहू के लिए इस बार प्रधानमंत्री पद का रास्ता कठिन हो गया है

इजरायल (Israel) में इस हफ्ते हुए चुनाव के वोटों की गिनती हो चुकी है. बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) के लिए इस बार प्रधानमंत्री पद का रास्ता कठिन हो गया है. वोटों की गिनती के बाद अरब नेता मंसूर अब्बास (Mansour Abbas) किंगमेकर बनकर उभरे हैं. उनके समर्थन से नेतन्याहू की लिकुड पार्टी (Likud Party) फिर से सत्ता में आ सकती है. इस तरह नेतन्याहू के लिए फिर से सत्ता तक पहुंचने की डगर मुश्किल भरी हो चुकी है. गौरतलब है कि इजरायल में दो साल के भीतर चौथी बार चुनाव हुए हैं.

इस चुनाव में नेतन्याहू की लिकुड पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है. हालांकि, इसके बाद भी 120 सदस्यों वाली इजरायली संसद में ये 61 सीटों के बहुमत के जादूई आंकड़े को छूने में विफल रही है. इस कारण सरकार बनाने के लिए इसके पास गठबंधन बनाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है. दूसरी ओर, नेतान्याहू के विरोधी ब्लॉक को भी इस चुनाव में बहुमत का आंकड़ा हासिल नहीं हुआ है. इजरायल के सबसे लंबे वक्त तक प्रधानमंत्री रहे नेतन्याहू को सत्ता से बेदखल करने के लिए लेफ्ट, राइट और सेंट्रिस्ट धड़ा दुश्मन से दोस्त बनकर चुनाव लड़ा था.
मंसूर की पार्टी के हाथों में है सत्ता की चाबी
विशलेषकों का मानना है कि नेतन्याहू के नेतृत्व वाला गठबंधन येमिना पार्टी के समर्थन से सत्ता में काबिज हो सकता है. येमिना पार्टी का नेतृत्व पूर्व रक्षा मंत्री नफ्ताली बेनेट के हाथों में है. बेनेट ने अब तक किसी भी खेमे के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर नहीं की है. लेकिन उनका राजनीतिक झुकाव नेतन्याहू की तरफ हो सकता है. हालांकि, सत्ता की चाबी तक जाने वाले रास्ते में रोमांच तब से आ गया है जब से मंसूर अब्बास के नेतृत्व वाली इस्लामिस्ट यूनाइटेड अरब लिस्ट पार्टी ने संसद की चार सीटों पर जीत हासिल की है. इस तरह ये पार्टी किंगमेकर बनकर उभरी है.
अरब दल कभी नहीं हुए सरकारी गठबंधन में शामिल, इसलिए बढ़ीं नेतन्याहू की मुश्किलें
नेतन्याहू के समर्थन वाले दलों को अगर बेनेट की पार्टी का समर्थन भी हासिल होता है, तो वह 59 सीटों तक ही पहुंच पाएंगे. इस तरह फिर से सरकार बनाने के लिए नेतन्याहू को अब्बास की जरूरत पड़ सकती है. यहां गौर करने वाली बात ये है कि बेनेट और मंसूर की पार्टी ने अब तक किसी को अपना समर्थन नहीं दिया है. विभिन्न दलों के बीच गहरे विभाजन के कारण किसी भी खेमे के लिये बहुमत हासिल करना मुश्किल होगा. अरब दल कभी भी सरकारी गठबंधन में शामिल नहीं हुए हैं जबकि राष्ट्रवादी दलों के लिये ऐसा गठबंधन अभिशाप है.


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