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कोरोना का सबसे खतरनाक वैरिएंट मिला, वैज्ञानिकों ने कही ये बात

Nilmani Pal
20 Oct 2022 2:23 AM GMT
कोरोना का सबसे खतरनाक वैरिएंट मिला, वैज्ञानिकों ने कही ये बात
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कोरोनावायरस के नए-नए वैरिएंट ने एक बार फिर दुनिया को सतर्क होने पर मजबूर कर दिया है. एक तरफ दुनिया भर में ओमिक्रॉन के वैरिएंट तेजी से फैल रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ अमेरिका में कोविड 19 का एक ऐसा रूप विकसित किया है जो अब तक सामने आए कोरोना के रूपों में सबसे ज्यादा खतरनाक है. अमेरिका के बॉस्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि उन्होंने कोविड 19 का एक ऐसा रूप विकसित किया है जो गंभीर बीमारी को पैदा कर सकता है और इसकी मृत्यु दर 80 प्रतिशत है. हालांकि, इस रिसर्च टीम का कहना है कि दुनिया में जो ओमिक्रॉन का नया वैरिएंट फैल रहा है, वो इंसानों के लिए बहुत घातक नहीं है. इस रिसर्च के सामने आने के बाद दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि ये आग से खेलने जैसा है.

अपनी रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने बताया है कि इस रिसर्च के लिए उन्होंने सबसे पहले कोरोना के ओमिक्रॉन वैरिएंट से स्पाइक प्रोटीन निकाला और उसे चीन के वुहान में पहली बार मिले कोविड -19 के स्ट्रेन (कोरोना का रूप) के साथ मिला दिया. ये रिसर्च चूहों पर की गई. शोधकर्ताओं ने अपनी रिसर्च में कहा कि चूहों में ओमिक्रॉन की वजह से हल्के लक्षण पाए गए और ये ज्यादा घातक नहीं थे लेकिन लैब में बनाया गया ओमिक्रॉन S वायरस 80 फीसदी मृत्युदर के साथ गंभीर स्तर की बीमारी पैदा करने वाला था.

रिसर्च के दौरान नए मानव निर्मित कोविड स्ट्रेन से रिसर्च में शामिल 80 प्रतिशत चूहों की मौत हुई जबकि माइल्ड ओमिक्रॉन वैरिएंट की वजह से चूहों के दूसरे समूह को गंभीर समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ा। बॉस्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने कहा कि नए स्ट्रेन में ओमिक्रॉन की तुलना में पांच गुना अधिक संक्रामक वायरस कण हैं. इस रिसर्च के बाद कई लोगों को इस बात का संदेह और गहराने लगा है कि हो सकता है कि दुनिया में पहली बार आया कोविड-19 वायरस भी लैबोरेटरी में हुई किसी गलती का ही नतीजा रहा हो.

'डेली मेल' ने इजरायली सरकार के एक प्रमुख वैज्ञानिक प्रोफेसर शमूएल शापिरा के हवाले से कहा, ''जब कोरोनोवायरस महामारी शुरू हुई तो कई लोगों का मानना था कि ये वायरस वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में बनाया गया था. अब ये क्या है. इस तरह की रिसर्च पूरी तरह से प्रतिबंधित होनी चाहिए. ये आग से खेलने जैसा है.'' वहीं, कई पत्रकारों ने भी इस रिसर्च पर सवाल उठा रहे हैं. एजरा लेवेंट नाम के पत्रकार ने कहा, सरकार कहती है कि कानून मानने वाले लोग राइफल नहीं रख सकते हैं. ये बहुत खतरनाक है. जबकि दूसरी तरफ इतने खतरनाक वायरस पैदा किए जा रहे हैं.

वहीं, कनाडा के न्यू ब्रंसविक स्थित रटगर्स विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ रिचर्ड एब्राइट ने इस पर कहा, "अगर हम लैब में पैदा होने वाली अगली महामारी से बचना चाहते हैं तो इसके लिए जरूरी है कि पहले ही संभावित महामारी पर मजबूत रिसर्च कर ली जाए. रिसर्च पर शुरू हुए विवाद सफाई देते हुए बॉस्टन विश्वविद्यालय के एक प्रवक्ता ने कहा, ''हमारी रिसर्च दुनिया भर में किए गए इस तरह के अन्य शोध के निष्कर्षों की पुष्टि करती है. ये भविष्य की महामारियों से लड़ने में हमारी मदद करेगी.''

बोस्टन यूनिवर्सिटी ने सफाई देते हुए कहा, ये रिसर्च बायोसिक्योरिटी लेवल-3 के तहत की गई है और इस बात के कोई सबूत नहीं है कि शोध अनुचित तरीके या बिना सुरक्षा मानकों के किया गया. यहां तक कि इस रिसर्च को बोस्टन के पब्लिक हेल्थ कमीशन और बायोसेफ्टी रिव्यू कमिटी ने ही मंजूरी दी थी.

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