डब्ल्यूईपी की इस रिपोर्ट को Cost of a Plate of Food 2020 का नाम दिया गया है। इस रिपोर्ट में उन देशों का उल्लेख किया गया है जहां चावल और फलियों वाली मामूली खुराक भी लोगों की आमदनी की तुलना में बहुत महंगी है। बीते दिनों विश्व खाद्य दिवस के मौके पर संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने अपने जारी वीडियो संदेश में बेहद तीखे शब्दों का इस्तेमाल कर इस समस्या के प्रति दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। उन्होंने अपने संदेश में कहा कि बहुतायत वाली इस दुनिया में,बेहद दुख की बात है कि आज भी विश्व के करोड़ों लोग हर रात भूखे पेट सोने को मजबूर हैं। इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि यदि कोविड-19 का मुकाबला करने के लिये समय रहते कुछ ठोस उपाय नहीं किए गए तो वर्ष 2020 के दौरान भी लगभग 27 करोड़ लोगों की जिंदगियां और आजीविका बेहद गंभीर जोखिम का सामना करेंगी।
अपने संबोधन में उन्होंने एक बेहतर भविष्य हासिल करने के संयुक्त राष्ट्र के सपने और लक्ष्य को हासिल करने के लिये और अधिक प्रयास करने का आह्वान किया है। उनका हना है कि हमें एक ऐसा विश्व तैयार करना है जहां हर किसी को पर्याप्त भोजन मिल सके और किसी को भूखे पेट न सोना पड़े। इसके लिए खाद्य प्रणालियों को और बेहतर बनाना होगा। साथ ही भोजन की बर्बादी को भी रोकने के लिए ठोस उपाय करने होंगे। उन्होंने ये सुनिश्चित किये जाने पर भी खास जोर भी दिया है कि हर इंसान को टिकाऊ और स्वस्थ भोजन खुराक उपलब्ध हो।
ऐसे देशों की सूची में जहां भोजन की मामूली खुराक की कीमत लोगों की दैनिक आमदनी की तुलना में 186 प्रतिशत होती है दक्षिण सूडान सबसे ऊपर है। यहां हिंसा के कारण 60 हजार से ज्यादा लोग विस्थापित हो चुके हैं। इस सूची में बुर्किना फासो का नाम भी पहली बार शामिल हुआ है जहाँ हिंसा, संघर्ष और जलवायु परिवर्तन भुखमरी के मुख्य कारण रहे हैं। भुखमरी के संकट का सामना करने वाले लोगों की संख्या लगभग 34 लाख तक पहुंच गई है, जबकि उत्तरी प्रांतों में लगभग 11 हजार लोगों को अकाल जैसे हालात का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे ही बुरुंडी के भी हालात हैं जहां पर जहां राजनीतिक अस्थिरता और लोगों की गिरती आर्थिक हालत ने भुखमरी के हालात और गम्भीर बना दिए हैं। ऐसे 20 देशों की सूची में से 17 देश सब सहारा अफ्रीका क्षेत्र में स्थित हैं।
विश्व खाद्य कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक डेविड बीजली के मुताबिक इस ताजा रिपोर्ट ने संघर्षों, जलवायु परिवर्तन और आर्थिक संकटों के विनाशकारी प्रभावों को उजागर किया है जिन्हें मौजूदा वैश्विक संकट कोविड-19 ने और अधिक गंभीर बना दिया है। इसका दंश आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को अधिक भुगतना पड़ रहा है। इस महामारी ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भीषणतम मानवीय संकट पैदा कर दिया है। रिपोर्ट में अनेक देशों में संघर्षों को भुखमरी का प्रमुख कारण बताया गया है। इसमें कहा गया है कि इसकी वजह से लोग अपनी जमीन और घरों से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे में उन्हें अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उनके रोजगार खत्म हो जाते हैं और उनकी आय के स्रोत भी लगातार कम या खत्म होते जाते हैं। इसका असर उनकी खरीद क्षमता पर भी पड़ता है। अनेक देशों में शहरी इलाक़ों में रहने वाले इलाकों में भी बहुत से लोक कोविड-19 के कारण नाज़ुक हालात का सामना कर रहे हैं। इसकी वजह से करोड़ों लोग बेरोजगार हुए हैं। आपको बता दें कि कुछ दिन पहले ही विश्व खाद्य कार्यक्रम को भुखमरी के खिलाफ किए गए इसके असाधारण काम के लिये नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया है।