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वैश्विक टीकाकरण में कोरोना बना रोड़ा, 30 साल की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज

Subhi
17 July 2022 12:56 AM GMT
वैश्विक टीकाकरण में कोरोना बना रोड़ा, 30 साल की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज
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साल 2021 के दौरान बच्चों को जीवनरक्षक टीके लगाने का आंकड़ा काफी नीचे रहा। बताया जा रहा है कि यह पिछले 30 साल में सबसे बड़ी गिरावट है। डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, बीते साल दुनियाभर में ढाई करोड़ से ज्यादा नवजात को मूलभूत टीके नहीं लगे। गौरतलब है कि वैश्विक टीकाकरण लगातार घट रहा था, लेकिन कोरोना महामारी के दौरान इसमें काफी इजाफा हो गया।

डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ के अनुसार, साल 2021 के दौरान नवजातों के टीकाकरण में काफी गिरावट दर्ज की गई, जो पिछले 30 साल में सबसे ज्यादा है। आंकड़ों पर गौर करें तो 2019 के दौरान डिप्थीरिया, टिटनेस और काली खांसी (DTP3) से बचाव की तीन खुराक लेने वाले बच्चों की संख्या में पांच फीसदी गिरावट दर्ज की गई। यह आंकड़ा 2021 में 81 फीसदी हो गया। इसका मतलब यह है कि 2021 में ही 2.5 करोड़ बच्चों को डीटीपी वैक्सीन की एक या उससे ज्यादा डोज नहीं लगीं। 2019 और 2020 की तुलना में यह संख्या 20 लाख ज्यादा है।

इस गिरावट से साबित होता है कि इन बच्चों पर खतरा मंडरा रहा है। इस गिरावट की मुख्य वजह युद्धग्रस्त क्षेत्रों में रहना और कोरोना के कारण फैली भ्रांतियां हैं। कोविड के कारण टीकों की आपूर्ति पर भी असर पड़ा है। माना जा रहा है कि स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से महामारी से बचाव में जुटी हुई थीं, जिसके चलते टीकाकरण के लिए संसाधनों की कमी हो गई।

नवजात बच्चों के टीकाकरण में सबसे ज्यादा गिरावट मध्य और निम्न आय वाले देशों में आई। इन देशों में भारत, नाइजीरिया, इंडोनेशिया, इथियोपिया और फिलीपींस आदि शामिल हैं। यूनिसेफ इंडिया के मणिक चटर्जी ने बताया कि भारत ने कोविड महामारी के बावजूद पूरी कोशिश रही कि टीकाकरण में कमी न आए। बच्चों के टीकाकरण का काम भारत फिर तेजी से शुरू करेगा।

यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल ने कहा- टीकाकरण में भारी कमी बच्चों की सेहत के लिए काफी खतरनाक है। हम बच्चों के टीकाकरण में लगातार गिरावट देख रहे हैं। इससे उनकी जिंदगी खतरे में पड़ सकती है। कोविड-19 संक्रमण और लॉकडाउन की वजह से टीकाकरण में लगातार गिरावट देखी गई। हमें टीकाकरण कैच-अप्स यानी टीका लगवाने से बचे बच्चों तक पहुंचने की जरूरत है।

यूनिसेफ के अनुसार, वैश्विक स्तर पर वर्ष 2019 में ह्यूमन पेपिलोमा वायरस (एचपीवी) वैक्सीन की कवरेज से जितनी बढ़त मिली थी, उसमें से एक चौथाई से ज्यादा घट चुकी है। इससे महिलाओं और लड़कियों की सेहत पर गंभीर असर पड़ेगा। इसकी पहली वैक्सीन को लाइसेंस मिले 15 साल से अधिक समय बीतने के बावजूद वैश्विक स्तर पर एचपीवी की पहली खुराक की कवरेज महज 15 फीसदी है। विश्व स्वास्थ्य व बाल कल्याण कोष ने कहा था कि साल 2021 में नए कीर्तिमान बनाएंगे और टीकाकरण के कार्यक्रम में तेजी लाएंगे। इसके तहत उन बच्चों को टीके लगाए जाएंगे, जो 2020 में छूट गए। हालांकि, हकीकत इससे उलट रही। डीटीपी 3 कवरेज 2008 के स्तर पर पहुंच गया। अन्य बुनियादी टीकों की कवरेज में भी गिरावट दर्ज की गई। दुनिया वैश्विक टीकाकरण के लक्ष्यों को पूरा करने के रास्ते से भटक गई।

वैश्विक टीकाकरण एजेंडा 2030 के लिए डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ गवी वैक्सीन अलायंस और अन्य भागीदारों के साथ काम कर रहे हैं। इसका मकसद सभी देशों के लिए एक रणनीति बनाना, हर जगह वैक्सीन मुहैया कराना और टीकाकरण के जरिए रोगों की रोकथाम करना है। गवी वैक्सीन अलायंस के सीईओ डॉ. सेठ बर्कला ने कहा कि लगातार दूसरे साल रोकथाम के टीके लेने से चूकने वाले बच्चों की तादाद का बढ़ना निराश करता है। अलायंस की प्राथमिकता देशों में नियमित टीकाकरण बनाए रखने, पुनर्स्थापित करने और मजबूत बनाने में मदद करने की होनी चाहिए। इसके साथ ही कोविड-19 टीकाकरण की योजनाओं को क्रियान्वित करने की भी जरूरत है।

यूनिसेफ ने कहा है कि टीकाकरण की दर में ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की गई है। वहीं, बच्चों में गंभीर कुपोषण की दर भी तेजी से बढ़ रही है। कुपोषित बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता पहले से ही कमजोर होती है और टीके नहीं लगने का मतलब बचपन में ही बीमारियों का खतरा बढ़ाना है। यह बच्चों के लिए घातक हो सकता है। भूख का संकट और टीकाकरण का बढ़ता फासला बच्चे की जिंदगी भी जोखिम में डाल सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, हर क्षेत्र में वैक्सीन कवरेज में गिरावट आई है। पूर्व एशिया और प्रशांत क्षेत्र में डीटीपी 3 कवरेज में काफी ज्यादा गिरावट दर्ज की गई, जो नौ फीसदी से ज्यादा है।

डब्ल्यूएचओ के महासचिव टेड्रोस अधनोम घेब्रेसियस का कहना है कि कोविड-19 से निपटने के साथ-साथ जानलेवा रोगों जैसे खसरा, निमोनिया और डायरिया के लिए भी टीकाकरण जारी रहना चाहिए। दोनों टीकाकरण में से किसी एक को चुनने का सवाल ही नहीं है। कोविड के साथ-साथ अन्य रोगों से बचाव भी करना जरूरी है।

वर्ष 2021 में खसरे की पहली खुराक की कवरेज 81 फीसदी तक घट गई। यह 2008 के बाद से सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। इसका अर्थ यह हुआ कि 2021 में 2.47 करोड़ बच्चों ने खसरे की पहली खुराक नहीं ली। 2019 में यह संख्या 53 लाख थी। इसी तरह 2019 की तुलना में 67 लाख से अधिक बच्चों ने पोलियो वैक्सीन की तीसरी खुराक नहीं ली और 35 लाख ने एचपीवी वैक्सीन की पहली खुराक नहीं ली। एचपीवी खुराक लड़कियों को सर्वाइकल कैंसर के खतरे से बचाती है।


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