संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन, कॉप27 के हानि व क्षति कोष की स्थापना समझौते के साथ खत्म होना इस सदी की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जाएगा। बीते 30 वर्षों से अमीर और गरीब देशों के बीच जलवायु संकट से जुड़े मुद्दों पर यह मुद्दा सबसे बड़ी दरार थी। हालांकि, मानव सभ्यता के अस्तित्व पर गंभीर जोखिम के बावजूद तीन दशक तक टालमटोल वाला रवैया बताता है कि इस संकट से निपटने के लिए अभी भागीरथी प्रयासों की जरूरत है। यही वजह है कि विकराल होते जलवायु संकट के सामने कॉप27 की बड़ी कामयाबी भी नाकाफी लगती है।
कोष स्थापित होने के बाद अब हानि व क्षति के वित्तपोषण से जुड़े कई मसलों को सुलझाना बाकी है। उम्मीद है, इन्हें सुलझने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा, नहीं तो कोष स्थापित करने का समझौता निरर्थक ही साबित होगा। ज्यादातर पक्षकारों के अबतक के लचर रवैये को देखते हुए जलवायु कार्यकर्ताओं की निराशा औचित्यहीन नहीं लगती, क्योंकि कॉप27 जलवायु संकट से निपटने के समग्र उपयों पर संतोषजनक नतीजे देने में असफल रहा है। यह निराशा भावनात्मक नहीं है, बल्कि दुनियाभर में तेजी से बढ़ती चरम मौसमी घटनाओं को 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य से पीछे छूटने के संदर्भ को वैज्ञानिक तथ्यों के साथ देखने से उपजी है। कॉप26 के अध्यक्ष आलोक शर्मा ने ग्लासगो में कहा था, 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य बेहद कमजोर है और अभी भी जीवन रक्षक प्रणाली पर बनी हुई है।
अपेक्षित प्रगति नहीं होने की निराशा
सीओपी27 से अपेक्षा थी कि उत्सर्जन में कमी पर नई प्रतिबद्धताओं की घोषणाएं होंगी, साथ ही विकासशील देशों को संसाधनों के हस्तांतरण के लिए नए सिरे प्रयास होंगे। लेकिन दुर्भाग्य से इन मुद्दों को छुआ भी नहीं गया।
कोष में कहां से आएगा धन, स्पष्ट नहीं
समझौते से समस्या हल नहीं होने वाली मानी जा रही है। असल चुनौती क्रियान्वयन है। विश्लेषक मानते हैं कि इस कोष के दानदाताओं और लाभार्थियों के संदर्भ में अभी बहुत कुछ स्पष्ट करना बाकी है। धन कहां से आएगा और मुआवजे का आधार क्या होगा, यह तय करना इसके क्रियान्वयन की राह के बड़े रोड़े हैं।
क्लाइमेट फंड की विफलता नजीर
विकसित देशों ने 2009 में कोपेनहेगन में अयोजित कॉप 15 के दौरान 2020 तक विकासशील देशों के लिए प्रतिवर्ष 100 अरब डॉलर का जलवायु वित्त मुहैया कराना था। लेकिन, विकसित देश दो वर्ष बाद भी यह वादा निभाने में विफल रहे हैं।
जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल पर चुप्पी
न्यूजीलैंड के जलवायु परिवर्तन मंत्री जेम्स शॉ ने कहा कि कॉप27 के नतीजे हार-जीत की तरह नहीं देखना चाहिए। खासतौर पर ग्लोबल वार्मिंग के सबसे बड़े स्रोत जीवाश्म ईंधन पर खामोशी परेशान करने वाली है। इसके इस्तेमाल को चरणबद्ध ढंग से खत्म करने के लिए ग्लासगो में प्रतिबद्धता जताई थी, लेकिन इसबार इस विषय पर चर्चा भी नहीं हुई।