जासूसी जहाज को लेकर विवाद: श्रीलंका ने फिर किया चीन का समर्थन
जानकारी के लिए बता दें कि इंटरनेशनल शिपिंग और एनालिटिक्स साइट ने चीन के इस जहाज को एक रिसर्च और सर्वे वाला जहाज माना है. लेकिन भारत के मुताबिक ये जहाज चीन के लिए जासूसी का काम कर सकता है. वहां मौजूद देश के सैन्य प्रतिष्ठानों पर चीन अपनी पैनी नजर रख सकता है. इसी खतरे को समझते हुए भारत ने श्रीलंका के सामने आपत्ति जताई थी. बड़े अधिकारियों से बात कर विरोध भी दर्ज करवाया गया था. लेकिन शायद उस आपत्ति का कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि श्रीलंका ने एक बार फिर जरूरी मुद्दे पर भारत के बजाय चीन का साथ दे दिया है.
यहां ये जानना जरूरी हो जाता है कि पहले 16 की जगह 11 अगस्त को इस जहाज को श्रीलंका पहुंचना था. लेकिन तब क्योंकि कुछ जरूरी क्लियरेंस नहीं मिले थे, लिहाजा चीन का जहाज हंबनटोटा पोर्ट नहीं पहुंच सका. तब श्रीलंका की ओर से अनुरोध किया गया था कि इस शिप की डॉकिंग तब तक के लिए स्थगित कर दी जाए, जब तक कि दोनों देश इस मामले पर आगे की सलाह न कर लें. लेकिन तब चीन के अधिकारियों ने तुरंत श्रीलंका से संपर्क साधा और फिर ये हरी झंडी दे दी गई. खबर है कि इस हरी झंडी के लिए श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने चीन के राजदूत क्यूई जेनहोंग के साथ बंद कमरे में बैठक की थी.
बताया तो ये भी गया है कि चीनी शिप को फ्यूल भरने के लिए श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर डॉक करना है. फ्यूल लेने के बाद अगस्त-सितंबर के दौरान हिंद महासागर क्षेत्र के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में शिप से सेटेलाइट कंट्रोल और रिसर्च ट्रैकिंग करने की योजना है. लेकिन भारत को चीन की इन गतिविधियों पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है. वो चीन की इन गतिविधियों को श्रीलंका में एक दखलअंदाजी के रूप में देख रहा है. वैसे श्रीलंका को भी चीन की ये दखलअंदाजी पहले भारी पड़ चुकी है. 2017 में श्रीलंका ने दक्षिणी बंदरगाह को चीन के मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग्स को 99 साल के लिए पट्टे पर दे दिया था क्योंकि श्रीलंका ऋण का भुगतान करने में असमर्थ रहा है.