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अमेरिका और चीन के बीच टकराव, दोनों नेताओं के बीच वार्ता के क्‍या हैं मायने जाने

Neha Dani
29 July 2022 11:06 AM GMT
अमेरिका और चीन के बीच टकराव, दोनों नेताओं के बीच वार्ता के क्‍या हैं मायने जाने
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जिस तरह से अमेरिका ने अफगानिस्‍तान से वापसी की थी, उससे उसकी महाशक्ति की क्षमता पर सवाल उठाए गए थे।

ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन के बीच टकराव बढ़ गया है। दोनों देशों के तनाव के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और उनके चीनी समकक्ष शी चिनफिंग राष्ट्रपति की पांचवी बार सीधी बातचीत हुई। बता दें कि दोनों देशों के बीच नवीनतम तनाव अमेरिकी कांग्रेस (संसद) के निम्न सदन हाउस आफ रिप्रजेंटेटिव की स्पीकर नैंसी पेलोसी की संभावित ताइवान यात्रा को लेकर पैदा हुआ है। ताइवान एक स्‍वतंत्र द्वीप है, जिसे चीन अपना हिस्सा मानता है। चीन ने कहा कि वह इस यात्रा को उकसावे की कार्रवाई के तौर पर देखेगा। ऐसे में सवाल उठता है कि क्‍या बाइडन अपने चीनी समकक्ष चिनफ‍िंग को नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा को लेकर राजी करने में सफल होंगे। क्‍या बाइडन का यह सफल कूटनीतिक प्रयास रहा है। अमेरिका को चीन का भय क्‍यों सता रहा है।


1- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि ताइवान को देखते हुए अमेर‍िकी राष्‍ट्रपति जो बाइडन और चीनी राष्‍ट्रपति शी चिनफ‍िंग की वार्ता काफी अहम है। उन्‍होंने कहा कि यह वार्ता इसलिए भी अहम है क्‍यों कि चीन ने नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा पर अपनी गहरी आपत्ति दर्ज की है। यूक्रेन यात्रा के बाद चीन ने ताइवान को लेकर आक्रामक रुख अपनाया है। अमेरिका की खुफ‍िया रिपोर्ट में यह दावा किया जा चुका है कि हाल के वर्षों में चीन ने अपनी सैन्‍य क्षमता को मजबूत किया है और वह ताइवान पर हमला करने की स्थिति में है। इसके चलते बाइडन प्रशासन ताइवान को लेकर चीन से दो-दो हाथ करने के मूड में नहीं है। बाइडन प्रशासन इस समस्‍या का समाधान वार्ता के जर‍िए करना चाहते हैं।

2- उन्‍होंने कहा कि दरअसल, अमेरिका ताइवान मामले में क‍िसी जंग में उलझना नहीं चाहता, लेकिन उसे यह चिंता सता रही है कि कहीं रूस की तरह चीन भी ताइवान पर हमला न कर दें। अगर ऐसी स्थिति उत्‍पन्‍न हुई तो अमेरिका के लिए उहापोह की स्थिति होगी। यूक्रेन में भले अमेरिका ने जंग में शामिल होने से इन्‍कार कर दिया हो, लेकिन ताइवान में स्थिति अलग है। ताइवान और अमेरिका के बीच रक्षा करार है, ऐसे में वह इस युद्ध से अलग नहीं रह सकता। अगर चीन और ताइवान के बीच जंग होती है तो अमेरिका को हस्‍तक्षेप करना ही होगा। अगर ऐसी स्थिति उत्‍पन्‍न होती है तो नाटो भी शांत नहीं रह सकता है। इसलिए दोनों नेताओं के बीच यह वार्ता काफी अहम है।

3- उधर, अमेरिका पेलोसी की यात्रा पर सख्‍त रुख अपनाए हुए है। अमेरिका ने सख्‍त लहजे में कहा है कि पेलोसी सैन्य सहायता के लिए कहती हैं तो हम उनकी सुरक्षित यात्रा के लिए जो भी जरूरी होगा वह करेंगे। अमेरिकी अधिकारियों का अनुमान है कि ताइवान पर नियंत्रण के लिए चीन बल प्रयोग कर सकता है। इससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया है। ऐसे में बाइडन प्रशासन के समक्ष कूटनीतिक समाधान ही एक जरिया दिखता है।

पेलोसी की यात्रा पर क्‍या है चीन की प्रतिक्रिया

उन्‍होंने कहा कि ऐसा पहली दफा नहीं है कि अमेरिकी सरकार का कोई अधिकारी ताइवान की यात्रा पर जा रहा है। इसके पूर्व भी अमेरिकी सरकार के अधिकारी अक्सर ताइवन जाते रहे हैं, लेकिन इस वार्ता में चीन ने पेलोसी की यात्रा को उकसावे वाली हरकत करार दिया है। पेलोसी अमेरिकी राष्ट्रपति पद के बाद वरीयता में दूसरे स्थान पर आती हैं और वह ताइवान की यात्रा के दौरान वह मिलिट्री परिवहन से यात्रा कर सकती हैं। चीन ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर पेलोसी चीन की यात्रा पर जाती हैं तो वाशिंगटन को इसके परिणाम भुगतने होंगे।

क्‍या है मामला

गौरतलब है कि ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन एक बार फ‍िर आमने-सामने हैं। इसके पीछे की वजह अमेरिकी संसद की अध्‍यक्ष नैंसी पेलोसी की प्रस्‍तावित ताइवान यात्रा है। चीन ने इस पर अपना सख्‍त ऐतराज जताया है। चीन ने कहा है कि अगर नैंसी पेलोसी चीन की यात्रा करती हैं तो वह उसका सैन्‍य जवाब देगा। इसके पहले भी चीन ने अमेरिका को धमकी दी थी। चीन की इस धमकी के बाद अमेरिका उहापोह की स्थिति में है कि उनकी चीन यात्रा को आगे बढ़ाया जाए या उस पर विराम लगाया जाए। उधर, चीन के सामने भी दो ही विकल्‍प होगा, या तो वह कार्रवाई करे या फिर अपनी विश्‍वसनीयता को खो दे। ऐसे में दोनों देशों के बीच अब ठन गई है। यह मामला अमेरिका के लिए भी साख का विषय है। अगर अमेरिका अपने इस कदम से पीछे हटता है तो उसकी साख को बट्टा लग सकता है। अफगानिस्‍तान में सैन्‍य वापसी के बाद उसके साख को बट्टा लगा था। जिस तरह से अमेरिका ने अफगानिस्‍तान से वापसी की थी, उससे उसकी महाशक्ति की क्षमता पर सवाल उठाए गए थे।

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