विश्व
चिंता: संयुक्त राष्ट्र ने जताई चिंता, कहा- अफगानिस्तान में हजारा और हिंदू महिलाएं ज्यादा असुरक्षित
Renuka Sahu
19 Jan 2022 12:52 AM GMT
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फाइल फोटो
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा महिलाओं और लड़कियों को सार्वजनिक जीवन से तेजी से हटाने की कोशिश पर गहरी चिंता जताई है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा महिलाओं और लड़कियों को सार्वजनिक जीवन से तेजी से हटाने की कोशिश पर गहरी चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि नस्ली और धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों की महिलाएं युद्ध ग्रस्त देश में सर्वाधिक असुरक्षित हैं। इनमें हजारा (शिया), ताजिक, हिंदू और अन्य समुदाय की महिलाएं शामिल हैं।
संयुक्त राष्ट्र के 35 से अधिक स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा, हम पूरे देश के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं को बाहर करने की हो रही लगातार और व्यवस्थागत कोशिश को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने कहा, यह चिंता तब और बढ़ जाती है यदि मामला नस्ली, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों का हो। देश में हजारा, ताजिक, हिंदू और अन्य समुदाय जिनके अलग विचार और दिखावट उन्हें अधिक असुरक्षित बनाते हैं।
विशेषज्ञों ने कहा, देश में तेजी से महिलाओं को संस्थानों के सार्वजनिक जीवन से मिटाने की कोशिश की जा रही है और उनकी सहायता और रक्षा करने के लिए पूर्व में गठित प्रणाली और संस्थानों को भी अधिक खतरा है। विशेषज्ञों ने देश में महिला मामलों के मंत्रालय को बंद करने व स्वतंत्र मानवाधिकार आयोग में महिलाओं की मौजूदगी पर रोक का भी हवाला दिया।
महिलाओं ने तालिबान ने की महिला मामलों का मंत्रालय दोबारा खोलने की मांग
अफगानिस्तान की राजधानी में महिला प्रदर्शनकारियों ने तालिबान से महिला मामलों के मंत्रालय को दोबारा खोलने, लड़कियों को शिक्षा की अनुमति देने और महिलाओं को सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल करने की मांग की। प्रदर्शनकारी महिलाओं ने वरिष्ठ सरकारी पदों पर महिलाओं को नौकरी देने का प्रस्ताव भी पेश किया। प्रदर्शनकारी अस्मा ने कहा, हमने उप मंत्रियों के रूप में महिलाओं की नियुक्ति, कमजोर परिवारों की मदद और अफगानिस्तानियों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने की मांगे रखीं।
मीडिया समेत पत्रकारों ने खोई आजादी : रिपोर्ट
अफगानिस्तान के स्थानीय मीडिया खामा प्रेस ने बताया कि देश में तालिबान कब्जे के बाद से मीडिया और पत्रकारों ने अपनी स्वतंत्रता खो दी है। रिपोर्ट के मुताबिक, द होम आफ फ्रीडम आफ स्पीच ने एक बयान में इन हालात पर चिंता जताई है। होम ने कहा, काबुल में तालिबान के वास्तविक अधिकारियों द्वारा व्यवस्थित रूप से मीडिया और पत्रकारों को सेंसर कर दिया गया है।
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