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चिंता : एंटीबायोटिक का मनमाना इस्तेमाल भविष्य के लिए खतरा

Subhi
3 July 2021 1:22 AM GMT
चिंता : एंटीबायोटिक का मनमाना इस्तेमाल भविष्य के लिए खतरा
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देश में कोरोना महामारी के दौर में बड़े पैमाने पर दवाओं का बेजा इस्तेमाल हुआ है। अमेरिका के वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का दावा है

देश में कोरोना महामारी के दौर में बड़े पैमाने पर दवाओं का बेजा इस्तेमाल हुआ है। अमेरिका के वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का दावा है कि भारत में कोरोना महामारी की पहली लहर में एंटीबायोटिक का अधिक इस्तेमाल हुआ है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि संभवत: एंटीबायोटिक की खपत में ये बढ़ोतरी हल्के और मध्यम लक्षणों के इलाज में एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल से हुई है।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि कोरोना महामारी की पहली लहर के दौरान जून 2020 से सितंबर 2020 तक एंटीबायोटिक की 21.64 करोड़ डोज का अधिक इस्तेमाल हुआ है। इसी तरह एंटीबायोटिक की 3.8 करोड़ अधिक डोज वयस्क लोग महामारी के पीक के दौरान खा गए।

वैज्ञानिकों का कहना है कि दवाओं का गलत इस्तेमाल स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है। एंटीबायोटिक वैसे भी बैक्टीरियल इन्फेक्शन में असरदार होती हैं न की वायरल संक्रमण में। अमेरिका के बार्नेस जेविश हॉस्पिल के महामारी रोग विशेषज्ञ सुमंथ गांद्रा का कहना है कि महामारी के बाद भारत ही नहीं दुनिया के लिए एंटीबायोटिक रेजिस्टेंट का खतरा मंडरा रहा है। एजेंसी

दूसरी बीमारियां हो सकती है गंभीर

प्रो. गांद्रा बताती हैं कि एंटीबायोटिक के अत्यधिक इस्तेमाल से रेजिस्टेंट के कारण सामान्य चोट और आमतौर पर होने वाले संक्रमण जैसे निमोनिया आदि को ठीक करना भी मुश्किल हो जाएगा।

ऐसे में ये बीमारियां भी गंभीर और जानलेवा रूप ले सकती हैं। पीएलओएस मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट में वैज्ञानिकों का कहना है कि महामारी के दौर में एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल सामान्य से बहुत अधिक हुआ है।

वयस्को में एंटीबायोटिक की खपत बढ़ी...

वैज्ञानिकों के अनुसार भारत में वर्ष 2020 में 1629 करोड़ डोज एंटीबायोटिक की बिक्री हुई जो वर्ष 2018 और 2019 से थोड़ी कम है। वैज्ञानिकों ने वयस्कों द्वारा एंटीबायोटिक की डोज लेने के आंकड़े पर गौर किया तो पता चला कि वर्ष 2018 में 72.6, वर्ष 2019 में 72.5 फीसदी ने एंटीबायोटिक ली जबकि वर्ष 2020 में ये बढ़कर 76.8 फीसदी हो गई। 2020 में एजिथ्रोमाइसिन की खपत सबसे अधिक 5.9 फीसदी दर्ज की गई है। 2018 में चार जबकि 2019 में 4.5 फीसदी थी।

डॉक्सी और फरावपेनेम का मांग बढ़ी

कोरोना सांस की बीमारी है और सांस संबंधी संक्रमण के इलाज में डॉक्सीसाइक्लीन और फरावपेनेम का इस्तेमाल अधिक होता है। इन दोनों एंटीबायोटिक की बिक्री में भी बढ़ोतरी देखी गई है।

हैरान करने वाली बात ये है कि अमेरिका और अन्य अधिक आय वाले देशों में महामारी के दौरान एंटीबायोटिक का इस्तेमाल घटा है जबकि भारत में बढ़ा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत में एंटीबायोटिक का इस्तेमाल जैसे बढ़ा है उससे स्पष्ट होता है कि कोरोना संक्रमित अधिकतर लोगों को एंटीबायोटिक दी गई है।



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