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भारत सहित पूरी दुनिया पर जलवायु परिवर्तन का असर दिखने लगा है
भारत सहित पूरी दुनिया पर जलवायु परिवर्तन का असर दिखने लगा है. भारत में अक्टूबर माह में हुई अत्याधिक बारिश तो दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अचानक से मौसम में आए बदलाव ने इस महीने की 31 तारीख से स्कॉटलैंड के शहर ग्लासगो में होने जा रहे जलवायु शिखर सम्मेलन के महत्व को काफी बढ़ा दिया है. इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित दुनिया के तमाम देशों के शीर्ष नेता शामिल होंगे. सम्मेलन से पहले ही दुनिया के तमाम देशों स्थिति की गंभीरता को समझते हुए अपनी तरफ से जलवायु में सुधार के लिए कदम उठाने की घोषणा की है. लेकिन, क्या ये घोषणाएं जमीनी स्तर पर प्रभावी हो रही हैं? क्या दुनिया के विकसित देश अपने वादे को पूरा कर पा रहे हैं?
सऊदी अरब ने की सबसे बड़ी घोषणा
सबसे बड़ी घोषणा दुनिया में पेट्रोलियम पदार्थों के एक सबसे बड़े उत्पादक देश सऊदी अरब की ओर से की गई है. सऊदी सरकार ने वह 2060 तक ग्रीन हाउस गैसों के 'शून्य उत्सर्जन' की प्रतिबद्धता जताई है. यह घोषणा युवराज मोहम्मद बिन सलमान ने की. इसके साथ ही सऊदी अरब उन 100 से अधिक देशों में शामिल हो गया है जिन्होंने दुनिया को मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन से बाहर निकालने की प्रतिबद्धता जताई है. हालांकि इसके साथ ही सऊदी अरब ने कहा है कि उसकी इस घोषणा से उसके तेल के उत्पादन और उसके निर्यात पर असर नहीं पड़ेगा.
पीएम मोदी लेंगे भाग, भारत उठाएगा वित्तीय सहायता का मुद्दा
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने बीते दिनों कहा था कि ब्रिटेन में जलवायु परिवर्तन पर होने वाले संयुक्त राष्ट्र के 26वें सम्मेलन (सीओपी26) का केंद्र बिन्दु जलवायु वित्त होगा तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसमें शामिल होंगे. ग्लासगो में 31 अक्टूबर से 12 नवंबर तक होने वाले इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत विकसित देशों को विकासशील देशों को प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर की सहायता के अपने वादे को पूरा करने की याद दिलाएगा.
धरती पर तापमान में 1.5 डिग्री की वृद्धि
देश के पर्यावरण सचिव आर पी गुप्ता का कहना है कि बाढ़ और चक्रवातों की गंभीरता तथा आवृत्ति में वृद्धि हुई है और यह जलवायु परिवर्तन के कारण है. विश्व स्तर पर 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि विकसित देशों और उनके ऐतिहासिक उत्सर्जन के कारण हुई है. हमारे लिए मुआवजा होना चाहिए.
भारत काफी कम प्रति व्यक्ति कार्बन का उत्सर्जन करता है
भारत का प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन प्रति वर्ष 1.96 टन है जो चीन और अमेरिका से काफी कम है, जो क्रमशः 8.4 टन और 18.6 टन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं. विश्व का औसत प्रति व्यक्ति उत्सर्जन प्रति वर्ष 6.64 टन है. वास्तविकता यह है कि जलवायु परिवर्तन के मामले में भारत सहित तमाम विकसशील देश विकसित देशों की बोझ उठाने को मजबूर हुए हैं.
इसे बोझ इसलिए कहा जा रहा है कि विकसित देशों ने विकास की अंधी दौड़ में पर्यावरण के साथ खिलवाड़ किया लेकिन आज जब विकास की बारी विकासशील देशों की आई है तो उनके यहां पर्यावरण के नियम और स्वच्छ ऊर्जा की बातें थोपी जा रही हैं.
ऑस्ट्रेलिया 2030 तक उत्सर्जन में 35 प्रतिशत तक की कमी लाएगा
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने घोषणा की है कि उनका देश 2030 तक 2005 के स्तर के उत्सर्जन के मुकाबले 35 प्रतिशत तक की कमी लाने के लिए तैयार है, लेकिन वह स्कॉटलैंड में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में ऐसे लक्ष्य की प्रतिबद्धता नहीं जताएंगे.
मॉरिसन ने कहा कि उनकी सरकार 2030 के लिए ऑस्ट्रेलिया के मौजूदा लक्ष्य पर अडिग है, यानी 2005 के स्तर 26 से 28 प्रतिशत से भी नीचे तक उत्सर्जन में कमी लाना. ये लक्ष्य 2015 में पेरिस जलवायु सम्मेलन में स्वीकार किए गए और अन्य धनी देशों की तुलना में अपेक्षाकत मामूली हैं.
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