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नई रिपोर्ट में दावा: जलवायु परिवर्तन से बुजुर्गों के मुकाबले अधिक प्रभावित हो रहे बच्चे

Gulabi
27 Sep 2021 10:47 AM GMT
नई रिपोर्ट में दावा: जलवायु परिवर्तन से बुजुर्गों के मुकाबले अधिक प्रभावित हो रहे बच्चे
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बुजुर्गों के मुकाबले बच्चों को भारी गर्मी, बाढ़ और सूखे का सामना करना पड़ेगा

एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से बुजुर्गों के मुकाबले बच्चों को भारी गर्मी, बाढ़ और सूखे का सामना करना पड़ेगा. नेपाल से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक नवयुवक नेताओं से इसे नजरअंदाज ना करने की अपील कर रहे हैं.'सेव द चिल्ड्रन' एनजीओ की एक नई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन की वजह से बच्चों को औसतन सात गुना ज्यादा गर्मी की लहरों और करीब तीन गुना ज्यादा सूखे, बाढ़ और फसलों के बेकार होने का सामना करना पड़ सकता है. मध्य और कम आय वाले देशों के बच्चों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा. अफगानिस्तान में वयस्कों के मुकाबले बच्चों को 18 गुना ज्यादा गर्मी की लहरों का सामना करना पड़ सकता है. माली में संभव है कि बच्चों को 10 गुना ज्यादा फसलों के बेकार हो जाने का असर झेलना पड़े.

बच्चों पर ज्यादा असर नेपाल की रहने वाली 15 वर्षीय अनुष्का कहती हैं, "लोग कष्ट में हैं, हमें इससे मुंह नहीं मोड़ना चाहिए...जलवायु परिवर्तन इस युग का सबसे बड़ा संकट है" अनुष्का ने पत्रकारों को बताया, "मैं जलवायु परिवर्तन के बारे में, अपने भविष्य के बारे में चिंतित हूं. हमारे लिए जीवित रहना लगभग नामुमकिन हो जाएगा" एनजीओ ने अनुष्का का पूरा परिचय नहीं दिया.
उसे सुरक्षित रखने के लिए संस्था ने उसके साथ साथ पत्रकारों से बात की. नया शोध सेव द चिल्ड्रन और बेल्जियम के व्रिये यूनिवर्सिटेट ब्रसल्स के जलवायु शोधकर्ताओं के बीच सहयोग का नतीजा है. इसके लिए 1960 में पैदा हुए बच्चों के मुकाबले 2020 में पैदा हुए बच्चों के पूरे जीवन काल में चरम जलवायु घटनाओं के उनके जीवन पर असर का हिसाब लगाया गया. यह अध्ययन विज्ञान की पत्रिका "साइंस" में भी छपा है. बदल सकती है स्थिति इसमें कहा गया है कि वैश्विक तापमान में अनुमानित 2.6 से लेकर 3.1 डिग्री सेल्सियस तक की बढ़त का "बच्चों पर अस्वीकार्य असर" होगा. सेव द चिल्ड्रन के मुख्य कार्यकारी इंगर अशिंग ने कहा, "जलवायु संकट सही मायनों में बाल अधिकारों का संकट है" अशिंग ने आगे कहा, "हम इस स्थिति को पलट सकते हैं लेकिन उसके लिए हमें बच्चों की बात सुननी होगी और तुरंत काम शुरू कर देना होगा. अगर तापमान के बढ़ने को 1.5 डिग्री तक सीमित किया जा सके तो आने वाले समय में पैदा होने वाले बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए काफी ज्यादा उम्मीद बन सकती है" सीके/एए
(थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
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