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संबंधित जानकारी प्राप्त करना था, लेकिन अमेरिकी सीनेट ने 2014 की रिपोर्ट में इनको 'क्रूर' माना था.
यूरोप के लिथुआनिया एक पुराना CIA 'ब्लैक साइट' बेचा जा रहा है, जहां आतंकी संगठन अल कायदा कैदियों को रखा गया था. इसे 'प्रोजेक्ट नंबर 2' या 'डिटेंशन साइट वायलेट' भी कहा जाता है. इसका इस्तेमाल CIA ने साल 2005 से 2007 के बीच हाई-प्रोफाइल संदिग्ध आतंकवादियों को पकड़ने के बाद किया था. यहां उनको रखकर पूछताछ की जाती थी.
टॉर्चर के लिए मौजूद विभिन्न साधन
यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय में किए गए दावों के अनुसार, बंदियों को साउंड प्रूफ कमरों में रखा गया था, जहां उनको बेड़ियों और आंखों पर पट्टी बांधकर रखा जाता था. उनकी आंखों पर तेज रोशनी की जाती थी और कमरे में तेज शोर किया जाता था, जिससे वह सो नहीं पाते थे.
9/11 का मास्टरमाइंड व अल कायदा ट्रेनर भी रखे गए थे यहां
यहां जिन बंदियों को रखा गया था, उनमें 9/11 का मास्टरमाइंड खालिद शेख मोहम्मद और अल कायदा का रिक्रुटर और ट्रेनर अबू जुबैदा भी शामिल थे. CIA द्व्रारा इस साइट को बंद करने के बाद इसका इस्तेमाल लिथुआनियाई इंटेलिजेंस सर्विस के लिए किया गया. साल 2017 के बाद से, इसकी देखभाल देश के रियल एस्टेट फंड द्वारा की जा रही है, जो अब इसे बेच रहा है.
बिना खिड़की के 10 छोटे कमरे हैं मौजूद
इस साइट में खुद की वाटर सप्लाई है और जनरेटर भी मौजूद है. यहां प्रशासनिक सुविधाओं के लिए स्टील बार्न के साथ एक मुख्य भवन है. बार्न में 10 साउंड प्रूफ और खिड़की रहित क्यूबिकल हैं, जहां बंदियों को रखा जाता था. ऐसा माना जाता है कि कैदियों को बिना खिड़की वाले क्यूबिकल में ले जाने से पहले उनकी दाढ़ी और बाल काटे जाते थे. इसके बाद आंखों पर पट्टी बांधकर उनके पैरों को बांध दिया जाता था.
अदालत ने सुनाया पीड़ित के पक्ष में फैसला
साइट पर 2010 में लिथुआनियाई जांच का नेतृत्व करने वाले शख्स का कहना है कि यह एक ऐसी जगह है, 'जहां आप जो चाहें कर सकते हैं.' यूरोपीय अदालत को 2018 में इन सब बातों से अवगत कराया गया और आखिरकार अदालत ने जुबैदा के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया था कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन कर यातनाएं दी गई थीं. इस साल की शुरुआत में यह पता चला था कि लिथुआनिया ने जुबैदा को उसके इलाज के लिए मुआवजे के तौर पर 1 लाख डॉलर का भुगतान किया है.
2006 में इस साइट को किया गया बंद
सरकार द्वारा तीसरे कैदी मुस्तफा अल-हौसावी को अस्पताल में भर्ती करने से इनकार करने के बाद लिथुआनियाई साइट को 2006 में बंद कर दिया गया था. पेंटागन ने मदद करने से इनकार कर दिया, इसलिए CIA ने तीसरे पक्ष के देशों से सहायता प्राप्त करने के लिए लाखों डॉलर का भुगतान किया. 'ब्लैक साइट्स' का इस्तेमाल CIA ने अपने आतंक निरोधी कार्यक्रम के तौर पर किया था. हालांकि, 9/11 के बाद कार्यक्रम का विस्तार किया गया और संदिग्ध अल कायदा बंदियों को 'ब्लैक साइट्स' तक ले जाने के लिए इस्तेमाल किया गया.
कई देशों में मौजूद CIA की साइट्स
लिथुआनिया, पोलैंड, मिस्र, सीरिया और अफगानिस्तान में बने साइट, हालांकि अमेरिकी अधिकार क्षेत्र से बाहर माने जाते हैं, लेकिन इन पर उन देशों का नियंत्रण नहीं रहता. इनका इस्तेमाल आतंकवादी समूहों में शामिल होने के शक में हाई प्रोफाइल कैदियों को रखने के लिए किया जाता है. यहां पूछताछ के लिए आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है. इनमें वाटरबोर्डिंग भी शामिल है, जो शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाए बिना डूबने का अहसास कराती है. हालांकि, इन साइट्स का उद्देश्य आतंकवादी गतिविधियों से संबंधित जानकारी प्राप्त करना था, लेकिन अमेरिकी सीनेट ने 2014 की रिपोर्ट में इनको 'क्रूर' माना था.
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