विश्व

एकता बहाल कराने के मिशन में चीनी दल को ज्यादा कामयाबी नहीं: नेपाल

Neha Dani
29 Dec 2020 8:35 AM GMT
एकता बहाल कराने के मिशन में चीनी दल को ज्यादा कामयाबी नहीं: नेपाल
x
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ से नेपाल भेजे दल का मकसद विभाजित नेपाल कम्युनिस्ट में फिर से एकता कराना है।

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ से नेपाल भेजे दल का मकसद विभाजित नेपाल कम्युनिस्ट में फिर से एकता कराना है। ये बात यहां इस दल की विभिन्न कम्युनिस्ट नेताओं के साथ हुई बातचीत के मिले ब्योरे से जाहिर हुई है। दल यहां बुधवार तक ठहरेगा। चीनी दल का नेतृत्व चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अंतरराष्ट्रीय विभाग में उप मंत्री गुओ येनझाऊ कर रहे हैं।

बीते दो दिनों में इस दल ने कहां राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली, और ओली गुट से अलग हुए पार्टी गुट के नेताओं पुष्प कमल दहल, माधव कुमार नेपाल और झालानाथ खनाल से बातचीत की है। दल पूर्व प्रधानमंत्री और जनता समाजवादी पार्टी के नेता बाबूराम भट्टराई से भी मुलाकात कर चुका है।

स्थानीय मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक उन सभी नेताओं को चीनी दल ने दो टूक एक ही पैगाम दिया कि पार्टी को एकजुट रखें। दल ने इन नेताओं से कहा कि चीन नेपाल में स्थिरता चाहता है। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (दहल-नेपाल) गुट के प्रवक्ता नारायण काजी श्रेष्ठ ने मीडिया से बातचीत में कहा कि चीनी दल नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में हुए विभाजन और नेपाल की राजनीति पर उसके संभावित परिणाम से चिंतित है। लेकिन श्रेष्ठ ने कहा कि चीनी दल ने नेपाली नेताओं के सामने कोई रोडमैप नहीं रखा है।

नेपाल को लेकर चीन की क्या सोच है, यह सोमवार को बीजिंग में चीनी विदेश मंत्रालय की प्रेस कांफ्रेंस में भी जाहिर हुआ। मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने उम्मीद जताई कि चीन के सभी संबंधित पक्ष अपने आंतरिक मतभेदों को ठीक से ढंग से संभाल लेंगे और खुद को राजनीतिक स्थिरता एवं राष्ट्रीय विकास के लिए प्रतिबद्ध करेंगे। उधर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अखबार द ग्लोबल टाइम्स में छपी एक टिप्पणी में कहा गया है कि चीन ने नेपाल में भारी निवेश कर रखा है।

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत चीन का नेपाल के साथ गहरा सहयोग है। इसलिए एक पड़ोसी के रूप में नेपाल की आंतरिक स्थिति को लेकर चीन का चिंतित होना वाजिब है। इस टिप्पणी में कहा गया कि चीन अंतर-दलीय सहयोग के तहत अपने साझेदारों की मदद और उनसे विचार-विमर्श कर रहा है, जिसे "किसी रूप में (नेपाल के) आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप" नहीं कहा जा सकता।
विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि 2018 में ओली के नेतृत्व वाले सीपीएन (यूएमएल) और दहल के नेतृत्व वाले माओइस्ट सेंटर का विलय कराने में परदे के पीछे से अहम भूमिका निभाई थी। स्थानीय मीडिया के मुताबिक अब यहां आए चीनी दल ने नेपाली कम्युनिस्ट नेताओं से जानना चाहा कि उनके बीच झगड़े की वजह क्या है। उसने ये सीधा सवाल भी पूछा कि क्या क्या अब दोनों गुटों में समझौता होने की कोई गुंजाइश है। दल ने विभाजन का नेपाल-चीन संबंधों पर पड़ सकने वाले असर और नेपाल की भावी राजनीतिक दिशा के बारे में भी नेताओं का आकलन जानने की कोशिश की।

यहां के अखबार काठमांडू पोस्ट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले अक्टूबर में भारतीय अधिकारियों की एक के बाद एक हुई यात्राओं से चीन की चिंता बढ़ने लगी थी। वे यात्राएं तभी हुई थीं, जब भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक रिश्तों को मजबूत करने का करार हुआ था। लेकिन भारतीय अधिकारियों की यात्राओं के बावजूद चीन आश्वस्त था कि नेपाल पर उसका प्रभाव बना रहेगा। लेकिन प्रधानमंत्री ओली ने अचानक संसद के निचले सदन को भंग कराने का फैसला करके चीनी गणनाओं में पलीता लगा दिया।
बताया जाता है कि ओली के साथ मुलाकात में चीनी दल ने हाल की सियासी घटनाओं पर निराशा जताई। जबकि ओली ने पार्टी में विभाजन के लिए दहल खेमे को दोषी ठहराया। ओली ने कहा कि ये खेमा सरकार चलाने में उन्हें पूरा सहयोग नहीं दे रहा था। उधर चीनी प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि वह इस बात से भी चिंतित है कि हाल की घटनाओं से पिछले साल हुई चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नेपाल यात्रा के फायदे कम होने की आशंका दिख रही है। उस समय चीन-नेपाल संबंधों को स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप का दर्जा दिया गया था, जो अब निरर्थक हो सकता है।
जानकारियों के मुताबिक नेपाल के कम्युनिस्ट नेताओं ने चीनी चिंता को ध्यान से सुना। लेकिन अभी तक उन्होंने कोई ऐसा भरोसा नहीं दिया है, जिससे नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में एकता बहाल होने की उम्मीद बंधे।


Next Story