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जो मुश्किल के दौरान बिना अपने फायदे की परवाह करते हुए मदद करें।
चीन की बढ़ती आक्रामकता से निपटने के लिए ऑस्ट्रेलिया और जापान ने एक बड़े रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। यह समझौता दोनों देशों की सेनाओं को एक-दूसरे के एयरबेस, बंदरगाहों, रसद और बुनियादी सुविधाओं तक गहरी पहुंच की अनुमति देता है। इस डील से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शक्ति संतुलन को साधने में मदद मिलने की संभावना है, क्योंकि चीन बहुत तेजी से अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ा रहा है।
चीन के खिलाफ किसी सैन्य संगठन में भारत शामिल नहीं
इंडो-पैसिफिक में चीन की बढ़ती आक्रामकता से सबसे अधिक खतरा भारत को है। लद्दाख में भारत और चीन के बीच पिछले डेढ़ साल से तनाव जारी है। चीन ने अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर गांव बसाकर और सिक्किम सीमा पर घुसपैठ के जरिए मामले को और भड़का रहा है। हिंद महासागर में भी चीनी पनडुब्बियों की बढ़ती उपस्थिति भारत के लिए चिंता की बात है। ऐसे में भारत से भी अपेक्षा की जा रही है कि वह दुनिया के बाकी चीन विरोधी देशों के साथ रक्षा सहयोग को मजबूत करे।
हिंद महासागर में अकेला तो नहीं पड़ेगा भारत?
ऑस्ट्रेलिया और जापान के बीच हुई डिफेंस डील के कारण दोनों देशों की सेनाएं एक साथ प्रशिक्षण, अभ्यास और संचालन में भी तेजी ला सकती हैं। ऐसे में अगर भविष्य में चीन के साथ कोई युद्ध होता है तो दोनों देश एक साथ मिलकर प्रभावी और तेज जवाबी कार्रवाई भी कर सकते हैं। चीन भी जानता है कि बिना भारत के वह आसानी से इन दोनों देशों को प्रशांत महासागर में व्यस्त रख सकता है। ऐसे में भारत के हिंद महासागर क्षेत्र में अकेले पड़ने की आशंका जताई जा रही है।
क्वाड से साधे नहीं जा सकते भारत के सामरिक हित
कई विशेषज्ञों का मानना है कि क्वाड की बदौलत भारत के सामरिक हितों की सुरक्षा नहीं की जा सकती है। चीन जिस तेजी से अपनी क्षमता को बढ़ा रहा है, उसकी तुलना में क्वाड की रफ्तार बहुत धीमी है। क्वाड अभी तक एक असैन्य गुट ही बना हुआ है और निकट भविष्य में भी इसके ऐसे ही रहने की संभावना है। ऐसे में चीन को रोकने के लिए भारत को ऐसे रक्षा सहयोगियों की जरूरत है, जो मुश्किल के दौरान बिना अपने फायदे की परवाह करते हुए मदद करें।
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