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बच्चों का टीकाकरण बेहद अहम
चीन (China) को साल के आखिर तक अपनी 80 फीसदी आबादी को कोरोनावायरस (Coronavirus) के खिलाफ टीका लगाने के अपने टारगेट को पूरा करना है तो बड़ी संख्या में बच्चों को वैक्सीन (Vaccine) लगवाने के लिए तैयार रहना पड़ेगा. के खिलाफ टीका लगाने के अपने टारगेट को पूरा करना है तो बड़ी संख्या में बच्चों को वैक्सीन (Vaccine) लगवाने के लिए तैयार रहना पड़ेगा.
बड़े पैमाने पर बच्चे महामारी से सुरक्षित रहे हैं. वयस्कों की तुलना में बच्चे आसानी से वायरस की चपेट में नहीं आते और आमतौर पर उनमें संक्रमित होने पर वायरस के भी कम लक्षण नजर आते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चे अभी भी वायरस को दूसरों तक पहुंचा सकते हैं. वहीं कुछ लोगों का कहना है कि अगर देश व्यापाक रूप से वायरस से प्रतिरक्षा चाहता है तो उसे बच्चों को टीकाकरण अभियान का हिस्सा बनाना होगा.
बच्चों का टीकाकरण बेहद अहम
हांगकांग यूनिवर्सिटी के मेडिकल स्कूल के एक वायरोलॉजिस्ट जिन डोंग-यान ने कहा कि बच्चों का टीकाकरण एक अहम कदम है. सिनोवैक की घोषणा से दुनिया भर के बच्चों को दिए जाने वाले टीकों का रास्ता खुल सकता है, जो पहले से ही ब्राजील से लेकर इंडोनेशिया तक दर्जनों देशों में इस्तेमाल किया जा रहा है.
क्या चीन के पास पहले से थी वैक्सीन?
बता दें कि चीन के वुहान की लैब में SARC-COV-2 की उत्पत्ति की थ्योरी मजबूत होती जा रही है. इस वायरस से दुनिया में कोरोनावायरस महामारी फैली, जिसके चलते 37.54 लाख लोगों की जान गई. दुनियाभर में 17.44 करोड़ मरीज इसके चलते संक्रमित हुए. बीते दिनों प्रसिद्ध भारतीय वायरोलॉजिस्ट ने दावा किया था कि संभवत: चीन ने वायरस के फैलने की संभावना को देखते हुए पहले ही वैक्सीन विकसित कर ली थी.
दावा किया जा रहा है कि लाखों लोगों की जान लेने वाला वायरस एक लैब में तैयार किया गया था. वैक्सीन के शुरुआती दिनों में ही मौजूद होने से चीन को कोरोनावायरस को कंट्रोल करने में मदद मिली और 140 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में दिसंबर 2019 में सिर्फ 91,300 संक्रमण के मामले दर्ज किए गए और 4636 लोगों की इससे जान गई. दर्ज मामलों में चीन 98वें नंबर पर मौजूद है.
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