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चीन. इजरायल और फिलीस्तीन विवाद (Israeli-Palestinian conflict) दशकों पुराना है. इसकी जड़ है मस्जिद अल-अक्सा(Masjid al-Aqsa). येरुशलम स्थित ये एक ऐसा धार्मिक स्थिल है जिसमें पूरी दुनिया के मुसलमानों की आस्था है. जबकि दूसरी तरफ, यहूदियों के लिए ये उनके अस्तित्व का सबसे बड़ा प्रतीक है. दोनों देशों के बीच इस जगह को लेकर पुरानी अदावत है. अमेरिका समेत दुनिया के तमाम मुल्कि इस टेंशन को खत्म (America have been trying to end this tension) करने का प्रयास करते रहे हैं लेकिन अबतक यहां शांति कायम नहीं हो सकी है. अब चीन इस दिशा में आगे बढ़ रहा है.
इसी कड़ी में चीन लगातार फिलीस्तीन से बात कर रहा है. फिलीस्तीन भी चीन की कोशिशों को खुले दिल से स्वीकार कर रहा है. फिलीस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास तीन दिवसीय दौरे पर 13 जून को चीन पहुंचे हैं. महमूद अब्बास का ये पांचवां चीन दौरा है.
महमूद अब्बास चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करेंगे और फिलीस्तीन के क्षेत्रीय व अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा करेंगे. इसके अलावा वो चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग से भी मिलेंगे. महमूद अब्बास के दौरे से पहले ही चीन ने उन्हें अपना पुराना दोस्त बताया था. साथ ही चीन की तरफ से कहा गया है कि फिलीस्तीन के लोगों के अधिकारों के लिए चीन हमेशा उनका समर्थन करता है.
चीन के इस समर्थन के पीछे क्या है?
चीन को एक चालबाज देश के तौर पर जाना जाता है. उसकी विस्तारवादी नीति से भारत भी तंग है. इसके साथ ही वो आर्थिक मोर्चे पर भी पूरी दुनिया में लीड करने लगा है. अब ग्लोबल लीडर बनने के लिए चीन के सामने सबसे बड़ी चुनौती वर्ल्ड पॉवर अमेरिका है. माना जा रहा है कि अमेरिका को साइड लाइन करने के लिए ही चीन इस तरह के कदम उठा रहा है.
दरअसल, अरब वर्ल्ड और मिडिल ईस्ट में अमेरिका का बड़ा दखल रहा है. सऊदी अरब को तो अमेरिका के इशारों पर चलने वाला देश माना जाता रहा है. हालांकि, क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने सऊदी की पॉलिसी का गियर बदल दिया है. वो अमेरिका पर अपनी निर्भरता को कम रहे हैं. दूसरी तरफ, चीन से भी सऊदी की नजदीकियां बढ़ने लगी हैं जिससे खाड़ी देशों की जियो-पॉलिटिक्स भी बदलने लगी है. इसी साल मार्च में चीन की कोशिशें रंग भी लाईं और कट्टर दुश्मन समझे जाने वाले ईरान और सऊदी अरब के बीच बर्फ पिछली है. हालांकि, तमाम खाड़ी देशों के लिए अल अक्सा मस्जिद और फिलीस्तान की शांति एक बड़ा मुद्दा हमेशा से रहा है. ऐसे में चीन फिलीस्तीन के रूप में ऐसे इंटरनेशनल इशू को उठाया है जिस पर अरब जगत समेत पूरी दुनिया के मुसलमानों की नजर रहती है. वैसे तो चीन उइगर मुसलमानों पर जुल्म के लिए भी दुनियाभर में बदनाम है. लेकिन इस तरह की कोशिशों से वो जहां अपनी इमेज बिल्डिंग करना चाहता है वहीं अरब वर्ल्ड पर अपनी पकड़ मजबूत कर वेस्ट के सामने और मजबूती से खुद को स्थापित करना चाहता है.
इजरायल और फिलीस्तीन के बीच आखिरी बातचीत 2014 में हुई थी और ये बातचीत अमेरिका की कोशिशों का नतीजा था. अब सीन में चीन है. ऐसे में देखना होगा कि चीन के प्रयास क्या इजरायल-फिलीस्तीन की टेंशन दूर कर पाएंगे या नहीं?
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