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अफगानिस्तान के बहाने चीन ने अमेरिका को दी धमकी! जानिए क्या कहा?
jantaserishta.com
17 Aug 2021 10:31 AM GMT
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चीन ने अफगानिस्तान में बिगड़े हालात के लिए अमेरिका पर निशाना साधा है और तालिबान का उदाहरण देते हुए ताइवान को भी धमकी दी है. चीन ने कहा है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के कारण काबुल सरकार का पतन हो गया. दुनिया ने देखा कि तालिबान लड़ाके कैसे काबुल में राष्ट्रपति भवन में दाखिल हो गए और कैसे अमेरिका को अपने राजनयिकों को हेलीकॉप्टर से निकालना पड़ा. इससे अमेरिका की विश्वसनीयता को भारी झटका लगा है.
चीन ने वियतनाम और सीरिया युद्ध का उदाहरण दिया और कहा कि अमेरिका मदद करने के बजाय स्थिति बिगड़ने पर भाग निकलता है. चीन सरकार के मुख पत्र माने जाने वाले अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' ने अफगानिस्तान संकट को लेकर मंगलवार को प्रकाशित संपादकीय में अमेरिका को अविश्वसनीय करार दिया. साथ ही, तालिबान की मुहिम की तर्ज पर ताइवान को चीन में मिलाने की वकालत की.
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, 'अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को उनके कुत्ते की मौत पर शोक संदेश भेजने वाली ताइवान की नेता और राष्ट्रपति साई इंन वेंग ने अफगान में बदले हालात को लेकर एक शब्द का भी जिक्र नहीं किया. डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) के अन्य नेताओं के साथ ताइवान की मीडिया ने भी अफगानिस्तान में चौंकाने वाले बदलाव को कम करके आंका. क्योंकि वे ये बेहतर तरीके से जानते हैं कि अमेरिका भरोसेमंद नहीं है.'
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, 'अफगानिस्तान का भू-राजनीतिक मूल्य ताइवान से कम नहीं है. अफगानिस्तान के आसपास, अमेरिका के तीन सबसे बड़े भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं- चीन, रूस और ईरान. इसके अलावा, अफगानिस्तान अमेरिका विरोधी विचारधारा का गढ़ है. वहां से अमेरिकी सैनिकों की वापसी इसलिए नहीं हुई है कि अफगानिस्तान महत्वहीन हो गया है. ऐसा इसलिए है क्योंकि वॉशिंगटन के लिए देश में अपनी मौजूदगी बनाए रखना बहुत महंगा साबित हो रहा था. अब अमेरिका दुनिया में अपना आधिपत्य बनाए रखने के लिए अपने संसाधनों का उपयोग करने का बेहतर तरीका खोजना चाहता है.'
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, 'ताइवान संभवत: पूर्वी एशिया में अमेरिका का सबसे किफायती सहयोगी है. ताइवान द्वीप पर अमेरिकी सेना की मौजूदगी नहीं है. जिस तरह से अमेरिका ताइवान के साथ गठबंधन बनाए रखता है, वह सरल और आसान है. अमेरिका राजनीतिक समर्थन और हेरफेर के जरिये डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के नेताओं को मेन लैंड (चीन) विरोधी नीतियों को लागू करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए उन्हें हथियार बेचता है. नतीजतन, अमेरिका ने ताइवान स्ट्रेट के दोनों किनारों के बीच (चीन से) कुछ हद तक दूरी पैदा कर दी है..'
अखबार ने लिखा, 'वॉशिंगटन समय-समय पर समुद्र में युद्धपोत और विमान भेजने के अलावा ताइवान के लिए क्या करता है. सामान्य तौर पर, अमेरिका को ताइवान पर एक नया पैसा तक खर्च नहीं करना पड़ता है. अमेरिका हथियार, पोर्क (सूअर का मांस) और बीफ बेचकर पैसे कमाता है. यह वॉशिंगटन के लिए पूरी तरह से फायदे का भू-राजनीतिक सौदा है.'
ग्लोबल टाइम्स ने कहा, 'एक बार जब एक क्रॉस-स्ट्रेट्स युद्ध छिड़ जाएगा तो मेन लैंड (चीन) ताइवान पर कब्जा कर लेगा. अगर अमेरिका ताइवाइन में हस्तक्षेप के बारे में सोचता है तो उसे अफगानिस्तान, सीरिया और वियतनाम की तुलना में बहुत अधिक दम लगाना पड़ेगा. अमेरिका का सैन्य हस्तक्षेप ताइवान स्ट्रेट में यथास्थिति को बदलने के लिए एक कदम होगा, और इससे वॉशिंगटन को फायदा होने के बजाय उसे एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी.'
चीन के अखबार ने चेतावनी भरे लहजे में लिखा, ताइवान के कुछ लोग प्रचार करते हैं कि यह द्वीप अफगानिस्तान से अलग है, और अमेरिका उन्हें अकेले नहीं छोड़ेगा. बेशक यह द्वीप अफगानिस्तान से अलग है. लेकिन अंतर सिर्फ इतना है कि अगर अमेरिका इसमें (ताइवान को लेकर चीन की जंग में) कूदता है तो उसे गहरी निराशा हाथ लगेगी. अमेरिका को जो कीमत चुकानी पड़ेगी उसकी कल्पना नहीं की जा सकती है.'
ग्लोबल टाइम्स की इस संपादकीय पर सोशल मीडिया पर लोगों ने प्रतिक्रिया भी जाहिर की. Hong Kong Free Press HKFP से जुड़े टॉम ग्रुंडी ने ट्वीट किया, ग्लोबल टाइम्स के संपादकीय में कल्पना की गई है कि चीन तालिबान स्टाइल में ताइवान पर कब्जा कर लेगा.
पॉलिटिको के संवाददाता स्टूअर्ट लौ ने ट्वीट किया, 'बीजिंग ने अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना की प्रतिबद्धता को देखकर ताइवान पर अपने अगले कदम के बारे में सोचना शुरू कर दिया होगा.
एक विश्लेषक थॉर्स्टन बेनेर ने कहा, यह नहीं बोल रहा कि अफगानिस्तान में अमेरिका जिस तरीके से पीछे हटा है, उससे अफगानों को दुख नहीं हुआ है. उन्हें कष्ट नहीं झेलना पड़ रहा है. लेकिन मैं ये नहीं मानता कि इससे अमेरिका और अमेरिका के गठबंधन बीजिंग के मुकाबले कमजोर दिखते हैं.
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