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गरीब मुल्‍कों की एकता और अखंडता के लिए खतरा बना चीन, श्रीलंका ने खोली लोन डिप्‍लोमेसी की पोल

Neha Dani
10 Jan 2022 9:20 AM GMT
गरीब मुल्‍कों की एकता और अखंडता के लिए खतरा बना चीन, श्रीलंका ने खोली लोन डिप्‍लोमेसी की पोल
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इस स्थिति से निपटने के लिए लाओस ने चीन को अपनी एक बड़ी संपत्ति बेच दी है।

चीन इस समय दुनियाभर के देशों के साथ 'डेट-ट्रैप डिप्लोमेसी' का कार्ड खेल रहा है। इसके जरिए चीन पहले इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के नाम पर विदेशी देशों को कर्ज देता है। इसके बाद जब कर्ज लिए देश इसे चुकाने में सक्षम नहीं होते तो वह उनके संसाधनों पर कब्जा करना शुरू कर देता है। इसका ताजा उदाहरण श्रीलंका है। श्रीलंका को कर्ज के बदले में अपना एक पोर्ट हंबनटोटा चीन को देना पड़ा। चीन की इस खतरनाक लोन डिप्‍लोमेसी ने कई देशों को अपने कर्ज के चंगुल में फंसा दिया है। चीन की महत्‍वाकांक्षी बेल्‍ट एंड रोड परियोजना में कई देश चीन के कर्ज में डूब चुके हैं। बता दें कि चीन की बेल्‍ट एंड रोड प्रोजेक्‍ट दुनिया की सबसे महंगी परियोजना है। आइए जानते हैं कि क्‍या है चीन की लोन डिप्‍लोमेसी। इसके क्‍या होंगे दूरगामी परिणाम? आखिर चीन किस योजना पर कर रहा है काम? भारत किस तरह से हो रहा है प्रभावित?

गरीब मुल्‍कों की एकता और अखंडता के लिए खतरा बना चीन
विदेश मामलों के जानकार प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि चीन ने बहुत चतुराई से कई मुल्‍कों को अपने इस जाल में फंसाया है। चीन ने इस प्रोजेक्‍ट की आड़ में करीब 385 बिलियन डालर तक का कर्ज कई गरीब देशों को दिया है। उन्‍होंने कहा कि अमेरिका की यह रिपोर्ट बेहद चौंकाने वाली है। इससे चीन की रणनीति को आसानी से समझा जा सकता है। उन्‍होंने कहा कि चीन इसके जरिए न कोई श्रीलंका बल्कि कई गरीब मुल्‍कों को आर्थिक गुलामी की ओर ले जा रहा है। चीन की यह रणनीति उन मुल्‍कों की एकता और अखंडता के लिए खतरनाक है।
गोटभाया राजपक्षे के सत्ता में आते ही बदले समीकरण
1- प्रो. पंत ने कहा कि श्रीलंका ने बेहद ज्‍यादा ब्‍याज दर पर चीन से कर्ज लिया है और अब यह उसके लिए गले की फांस बन गया है। श्रीलंका को इस साल 1.5 से 2 अरब डालर चीन को लौटाना है। वह भी तब जब वह डालर के लिए तरस रहा है। इस बीच श्रीलंका के एक सांसद ने चीनी राष्‍ट्रपति को पत्र लिखकर देश में आर्थिक हमले को बंद करने के लिए कहा है। बता दें कि श्रीलंकाई राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने चीन के विदेश मंत्री के साथ ऋण संकट का मुद्दा उठाते हुए कहा कि क्या बीजिंग अपने विदेशी ऋण को पुनर्गठित करके विदेशी मुद्रा संकट से उबरने में उनके देश की मदद कर सकता है।
2- उन्‍होंने कहा कि कहा कि वर्ष 2019 में जब श्रीलंका में गोटभाया राजपक्षे ने सत्ता संभाली तब से चीन के साथ संबंध कमतर हुए हैं। राजपक्षे को यह भय सता रहा था कि अगर वह चीन से कर्ज लेता रहा तो वह ड्रैगन का सैटेलाइट स्टेट बनकर रह जाएगा। प्रो पंत ने कहा कि महिंदा राजपक्षे के शासन में चीन से निकटता बढ़ी थी। श्रीलंका ने विकास के नाम पर चीन से खूब कर्ज लिया, लेकिन जब उसे चुकाने की बारी आई तो श्रीलंका के पास कुछ भी नहीं बचा। इसके बाद हंबनटोटा पोर्ट और 15,000 एकड़ जगह एक इंडस्ट्रियल जोन के लिए चीन को सौंपना पड़ा। अब आशंका जताई जा रही है कि हिंद महासागर में अपनी गतिविधियों को जारी रखने के लिए चीन इसे बतौर नेवल बेस भी प्रयोग कर सकता है।
3- वर्ष 2017 से पहले श्रीलंका और अमेरिका के बीच मधुर संबंध थे। इस दौरान अमेरिकी समर्थक सिरिसेना-विक्रीमेसिंघे प्रशासन ने अमेरिका के साथ अपने मैत्री करार को अगले 10 वर्षों के लिए बढ़ा दिया था। इससे अमेरिका को हिंद महासागर क्षेत्र में अपने आपरेशन के लिए रसद आपूर्ति, ईंधन भरने और ठहराव की सुविधा मिली थी, लेकिन अब गोटबाया प्रशासन ने अमेरिका के साथ अपने संबंधों को सीमित कर दिया है।
कर्ज नहीं चुका पाने वाले लाओस भी शामिल
चीन के कर्ज जाल में एशियाई मुल्‍क लाओस भी शामिल है। उनका कहना है कि दक्षिण पश्चिम चीन को सीधे दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़ने वाली चीनी रेल परियोजना में एक गरीब देश लाओस भी शामिल है। उन्‍होंने कहा कि यह मुल्‍क इतना गरीब है कि इसकी लागत का एक हिस्‍से का भी खर्च वह वहन नहीं कर सकता। बावजूद इसके 59 बिलियन डालर की इस योजना में उसे शामिल किया गया है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सिंतबर 2020 में लाओस दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया था। इस स्थिति से निपटने के लिए लाओस ने चीन को अपनी एक बड़ी संपत्ति बेच दी है।


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