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चीन दुनिया के गरीब देशों को कर्ज के जाल में फांसकर बना रहा गुलाम, खुल गई पोल

Neha Dani
1 Jun 2022 3:29 AM GMT
चीन दुनिया के गरीब देशों को कर्ज के जाल में फांसकर बना रहा गुलाम,  खुल गई पोल
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यहां एक विशाल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे सहित बुनियादी ढांचे का निर्माण करवाया।

चीन इन दिनों तेजी से अपने कर्ज और लालच के जाल में दुनिया के गरीब देशों को फंसा रहा है। ड्रैगन की इस डेब्ट ट्रैप डिप्लोमेसी के चक्कर में कई देश बर्बाद होने की ओर आगे बढ़ रहे हैं। एक नई किताब के अनुसार, चीन ने विदेशी देशों को अपने कर्ज के जाल में फांसने के लिए उस देश के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के करीबियों को निशाना बनाया। इतना ही नहीं, चीन ने उस देश के मुख्य राजनीतिक दल के समर्थकों को भी असमान रूप से लाभान्वित किया। इस कारण उसे संबंधित देश में अपनी पैठ बनाने में कोई भी समस्या नहीं आई।

कर्ज बांटकर प्रभाव बढ़ा रहा चीन
20वीं सदी की शुरुआत में , चीन का अंतरराष्ट्रीय विकास में योगदान ना के बराबर था। लेकिन, 1990 के बाद इसमें काफी तेजी देखी गई। वर्तमान में बीजिंग दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है। ऐसे में उसके पास अपने हितों को साधने और दूसरे देशों में निवेश करने के लिए बहुत सारा पैसा है। यही कारण है कि चीन ने महत्वकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को शुरू किया। इसका मकसद दुनियाभर के देशों में कर्ज के जरिए चीन के प्रभाव को बढ़ाना है।
राजनेताओं और समर्थकों को दे रहा पैसा
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस की प्रकाशित नई किताब, बैंकिंग ऑन बीजिंग के लेखकों ने बताया है कि चीन से सहायता प्राप्त देशों के प्रमुख राजनेताओं के गृह क्षेत्र में निवेश में 52 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। लेकिन, उनके सत्ता से बेदखल होते ही उनके इलाकों में चीनी निवेश लगभग बंद हो गया। उन्होंने यह भी पाया कि चुनावों के लिए इन क्षेत्रों में अक्सर चीनी सरकार समर्थित फंडिंग में तेज वृद्धि देखी गई। इस किताब को वर्जीनिया के विलियम्सबर्ग में विलियम एंड मैरी कॉलेज में एडडाटा रिसर्च लैब के कार्यकारी निदेशक डॉ ब्रैडली पार्क्स ने पांच अन्य लेखकों के साथ मिलकर लिखा है।
कर्ज के जरिए भ्रष्टाचार बढ़ा रहा चीन
डॉ ब्रैडली पार्क्स ने बताया कि चीन संबंधित देश में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। इससे उसे निवेश पाने और अपनी पैठ जमाने में फायदा भी मिलता है। चीन ने इस पूरे सिस्टम को काफी सोच समझकर बनाया है। बीजिंग अक्सर टेक्नोक्रेट के बजाय वरिष्ठ मौजूदा राजनेताओं से परियोजना प्रस्ताव और ऋण आवेदन मांगता है। इस कारण अक्सर ऐसी परियोजनाओं से राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के मुख्य राजनीतिक समर्थकों को गलत तरीके से फायदा पहुंचता है।
महिंदा राजपक्षे ने हंबनटोटा में खूब किया चीनी निवेश
लेखकों ने श्रीलंका का उदाहरण देते हुए बताया कि महिंदा राजपक्षे ने 2005 से 2015 तक राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान खुद के जन्मस्थान हंबनटोटा जिले को बदलने की कोशिश की। हंबनटोटा में सिर्फ 12,000 लोग रहते हैं, इसके बावजूद चीनी कर्ज के जरिए इसे श्रीलंका की दूसरी राजधानी के तौर पर विकसित किया गया। इतना ही नहीं, यहां एक विशाल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे सहित बुनियादी ढांचे का निर्माण करवाया।


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