मध्य-पूर्वी क्षेत्र में भारी निवेश करने के बाद अमेरिका खुद को वहां से बाहर करने जा रहा है। चीन इसे एक बड़ा मौका मानते हुए क्षेत्र में ऊर्जा, प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में रणनीतिक गठजोड़ मजबूत करने की कोशिश में जुट गया है। अकेले इस साल जनवरी में सऊदी अरब, ईरान और तुर्की समेत अरब देशों के वरिष्ठ प्रतिनिधियों ने निवेश पर चर्चा के लिए चीन का दौरा किया है।
चीन इन देशों से तेल, बुनियादी ढांचे और ऊर्जा संसाधनों में निवेश की संभावनाओं पर काम करने का इच्छुक है। कनाडाई थिंक टैंक, विश्व अधिकार व सुरक्षा फोरम, सुरक्षा प्रौद्योगिकी (आईएफएफआरएएस) ने यह जानकारी देते हुए बताया कि सऊदी अरब के विदेश मंत्री फैसल बिन फरहान अल सऊद ने हाल ही में चीन का दौरा कर वहां के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की और विजन 2030 पर चर्चा की।
चीन का दौरा करने वाले अन्य विदेश मंत्रियों में कुवैत के शेख अहमद नासिर अल-मोहम्मद अल-सबा, ओमान के सैय्यद बद्र अलबुसैदी और बहरीन के डॉ. अब्दुल्लातिफ बिन राशिद अल-जयानी शामिल थे। विशेषज्ञों ने बताया कि ये बैठकें चीन के लिए जीसीसी एफटीए (मुक्त व्यापार समझौता) के रास्ते खोल सकती हैं। विश्लेषकों को उम्मीद है कि चीन और मध्य-पूर्व आपसी सहयोग विकसित कर सकते हैं।
दक्षिण व दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रभाव बढ़ा रहा चीन
विश्व में चीन के बढ़ते पदचिंहों पर चिंता जताते हुए विभिन्न विशेषज्ञों ने कहा है कि अमेरिका व उसके सहयोगियों के कमजोर पड़ने से दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया, बीजिंग के प्रमुख रणनीतिक हित हो सकते हैं। द डेमोक्रेसी फोरम द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में विभिन्न वक्ताओं ने चीन एशिया के दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में तेजी से अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। इससे भविष्य में अमेरिका को चुनौतियां पैदा होंगी।