अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बीच चीन ने फिर से नई चाल चली है। चीन ने कहा है, आतंकी संगठन तालिबान से दोस्ताना रिश्ते कायम करना चाहता है। हालांकि उसे डर है कि उसकी ये कवायद जोखिम भरी न हो।
विशेषज्ञों का कहना है, काबुल में जैसे हालात हैं, उसके बीच आशंका है कि चीन अफगानिस्तान व अमेरिका के मध्य पैदा हुए हालात के बीच खुद को मजबूत करने की कोशिश करेगा। पिछले माह तालिबान नेताओं और चीन के विदेशमंत्री वांग ई के बीच पिछले माह हुई वार्ता के आधार पर यह संदेह किया जा रहा है। इस बैठक में वांग ने तो यहां तक कह दिया था कि तालिबान अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने में अहम भूमिका निभाएगा।
रूस, चीन और पाक दूतावास ही खुले
अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर तालिबान का कब्जा होने के बाद ज्यादातर देशों ने अपने दूतावास के कर्मचारियों को निकालना शुरू कर दिया है। अब वहां सिर्फ तीन देशों रूस, चीन और पाकिस्तान के दूतावास खुले हैं।
इंडोनेशिया ने दूतावास बंद कर वहां सिर्फ एक छोटा राजनयिक मिशन रखने को कहा है। पाक विदेश मंत्री शाह कुरैशी ने काबुल में अपने दूतावास के काम करने और हर तरह की कॉन्सुलर सुविधा देने की बात कही। रूस की योजना भी दूतावास कर्मियों को बाहर निकालने की नहीं है। एजेंसी
एस जयशंकर-एंटनी ब्लिंकन ने भी की चर्चा
विदेशमंत्री एस जयशंकर ने अमेरिकी विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकन से काबुल हवाई अड्डे का संचालन चालू रखने पर चर्चा की। भारत ने साफ किया था कि वह अपने लोगों को निकालने की प्रक्रिया तब तक जारी रखेगा, जब तक सभी हिंदू व सिख निकाल नहीं लिए जाते।