जनता से रिश्ता वेबडेस्क| भारत से LAC पर बातचीत के लिए चीन को अमेरिकी चुनाव का इंतजार था.ये जानते हुए भी कि अमेरिका में सरकार किसी की भी बने चीन के खिलाफ उसकी नीतियों में बदलाव नहीं आने वाला है. इस समय भारत चीन सीमा शांत है. LAC पर एक भी गोली नहीं चल रही है. दोनों देश की सेनाओं में किसी तरह की झड़प की खबर भी नहीं आई है. बावजूद इसके दोनों देश की सेनाओं की जंग जारी है. इसकी वजह ये है कि नवंबर का महीना आ चुका है और 15 हजार फीट ऊपर हिमालय की चोटियों पर मौसम बहुत ही खतरनाक रंग लेने लगा है. हड्डियां गलाने वाली ठंड पड़ने लगी हैं. वहां पर हालात क्या हैं. इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि जिस पैंगोंग त्सो और चुशूल इलाके में दोनों देशों के हजारों सैनिक तैनात हैं. वहां पर माइनस 20 डिग्री तक ठंड पड़ने लगी है और ये मौसम जैसे-जैसे बर्दाश्त से बाहर होता जा रहा है चीन की घबराहट उतनी ही बढ़ती जा रही है.
आधिकारिक सूत्रों से खबर मिली है कि सीमा विवाद पर चीन ने जल्द से जल्द एक और मीटिंग की मांग की है. चीन के साथ शुक्रवार को चूशूल में कमांडर लेवल की 11 घंटे की लंबी मीटिंग चली थी, लेकिन ये मीटिंग बेनतीजा बताई जा रही है और बताया जा रहा है कि एक हफ्ते के अंदर भारत और चीन के बीच दोबारा सैन्य स्तर की मीटिंग हो सकती है. हालांकि एक सच ये भी है कि चीन जो कहता है वो करता नहीं है. चीन और भारत के बीच कोर कमांडर स्तर की मीटिंग में डिसएंगेजमेंट के कई तरह के प्रोपोजल पर विचार हुआ, जिनमें से एक है सीमा से टैंक और तोप हटाने का प्रस्ताव. चीन अपनी तरफ लगातार होवित्जर तोप की संख्या बढ़ाता जा रहा है, जिस पर भारत ने आपत्ति जताई है, लेकिन बातचीत की आड़ में अपनी तैयारियों को आगे ले जाने पर अब सीधा बीजिंग दखल देने लगा है.
कई मोर्चों पर घिर रहा है इसलिए घेर रहा है चीन
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने अधिकारियों को अरुणाचल प्रदेश के करीब रेलवे लाइन बनाने के काम में तेजी लाने को कहा है. चीन दावा करता है कि अरुणाचल प्रदेश साउथ तिब्बत का हिस्सा है, जिसे भारत सख्ती से खारिज कर चुका है और चीन की रेलवे लाइन भारत के लिए सामरिक तौर पर चिंता का विषय बन गई है. इस रेलवे लाइन के बन जाने से चीन के सिचुआन से तिब्बत की दूरी 48 घंटे की जगह 13 घंटे में तय की जा सकेगी.
दरअसल चीन घेर रहा है, क्योंकि वो भारत की नीतियों से कई मोर्चों पर घिर रहा है. ये ही वजह है कि भारत को चीन पर पैनी नजर रखनी होगी. उसकी हर चाल का जवाब देना होगा, लेकिन अब बात करते हैं चार देशों की दोस्ती के प्रतीक QUAD की. जिसको लेकर चीन की पहली बार घबराहट सामने आई है. समंदर की लहरों से उठी इस खतरनाक और गरजती आवाज ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नींद उड़ा रखी है. भारत अमेरिका जापान और ऑस्ट्रेलिया. इन चार देशों की चौकड़ी और मालाबार एक्सरसाइज ने बीजिंग के कान खड़े कर रखे हैं.
बारूद की धमक से छूट रहे हैं चीन के पसीने
फारस की खाड़ी और अरब सागर में युद्ध पोतों की गरज और बारूद की धमक से चीन पसीने-पसीने होने लगा है और QUAD देशों को बार-बार मतलब के यार कहकर चिढ़ाता रहा चीन. अब कैसे इस यारी से कांप रहा है. इसका खुलासा खुद चीन ने किया है. जिनपिंग की भोंपू मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने अपने ताजा आर्टिकल में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की दोस्ती के खतरे बताए हैं और माना है कि इससे पहले कि ये दोस्ती चीन के लिए काल बन जाए बीजिंग को भी विकल्प ढूंढ लेना चाहिए. वर्ना ड्रैगन के लिए अंजाम बुरा होगा.
चीन की मीडिया ने इसका विश्लेषण करते हुए लिखा है कि बराक ओबामा जब अमेरिका के राष्ट्रपति थे तभी उन्होंने एशिया पैसिफिक नीतियां बनानी शुरू कर दी थी और फिर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे QUAD बनाकर आगे बढ़ा दिया. अब पूरी तरह मुमकिन है कि बाइडेन भी इन्हीं नीतियों को आगे ले जाएंगे. दरअसल वो चीन के ही फैलाए कोरोना का शुरुआती दौर था. जब एक सोच साकार होनी शुरू हो गई थी. NATO की तर्ज पर चार देशों ने QUAD बनाया और जब चारों देशों की सेनाएं मालाबार एक्सरसाइज के लिए समुद्र में उतरीं तो चीन की घबराहट खुलकर सामने आने लगी. खुद को बेहद चालाक समझने वाले शी जिनपिंग को समझ नहीं आ रहा है कि वो इसके बराबर की काट वाला कौन सा ग्रुप बना सकते हैं और कैसे बना सकते हैं.
ग्लोबल टाइम्स का मानना है कि अगर औपचारिक तौर पर QUAD बन गया तो इसके निशाने पर चीन के अलावा रूस, नॉर्थ कोरिया और ईरान होंगे. जबकि इसमें भी चीन की गलतफहमी दिखती है. चीन भले ही खुद के साथ रूस को जोड़ रहा हो, लेकिन रूस ने हमेशा से ही खुद को कोरोना विलेन चीन से अलग रखा है. ड्रैगन का असली डर अमेरिकी चुनाव के नतीजे में भी छिपा हैं. रिपब्लिकन प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप को हराकर डेमोक्रेट प्रेसिडेंट जो बाइडेन का व्हाइट हाउस पहुंचना करीब-करीब तय हो चुका है, लेकिन डेमोक्रेट्स की नीतियां बीजिंग को और भी डराती हैं.
समंदर चीरते युद्धपोतों को देख फटने लगा है चीन का कलेजा
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि- ट्रंप की अमेरिकी सैनिकों की तैनाती पर अलग सोच थी. वो एशियाई देशों में अपना सैन्य बेस बनाना चाहते थे. अपने सैनिकों को तैनात करना चाहते थे और उनकी तैनाती के खर्च के नाम पर एशियाई देशों को लूटना चाहते थे, लेकिन जो बाइडेन के विचार इसके ठीक उलट हैं. बाइडेन एशियाई देशों से अपना संबंध मजबूत करना चाहते हैं और रिश्तों को पैसे से नहीं तौलना चाहते.
चीन का ये ही डर है जो धीरे-धीरे खुलकर सामने आ रहा है. समंदर का सीना चीरकर निकलते इन युद्धपोतों को देखकर चीन का कलेजा फटने लगा है. उसे लगने लगा है कि कोरोना फैलने के बाद वो एक इंटरनेशनल विलेन बन चुका है और अगर वो QUAD के काट के तौर पर अगर गुट भी बनाना चाहे तो पाकिस्तान और उत्तर कोरिया जैसे देशों को छोड़कर उसे कोई भी साथी नहीं मिलेगा. जबकि भारत-अमेरिका-जापान और ऑस्ट्रेलिया ने 17 नवंबर से मालाबार युद्धाभ्यास के सेकेंड फेज के लिए अरब सागर में उतरने की तैयारी कर ली है और तैयारी भी ऐसी जिसे देखकर चार दिन तक चीन डरता रहेगा सहमता रहेगा.