कोविड-19 महामारी की वजह से दुनिया 1930 में आई महामंदी के बाद सबसे गहरी मंदी के दौर से गुजर रही है। विश्व बैंक के अध्यक्ष डेविड मालपास का कहना है कि कोरोना भारत जैसे विकासशील और गरीब देशों के लिए 'भयावह घटना' है। लगातार बढ़ रहे आर्थिक संकुचन के कारण कई देशों में ऋण संकट का खतरा बढ़ गया है।
विश्व बैंक का दावा...1930 में आई महामंदी के बाद सबसे गहरी मंदी से जूझ रही दुनिया
विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की सालाना बैठक में उन्होेंने कहा, यह मंदी बहुत गहरी है। यह उन देशों के लिए और ज्यादा मुसीबत पैदा कर रही है, जो ज्यादा ही गरीब हैं। विश्व बैंक इन देशों के विकास के लिए बड़ा कार्यक्रम तैयार कर रहा है, जिसके इसी वित्त वर्ष में आने की उम्मीद है। कृषि क्षेत्र की चुनौतियों की भी पहचान हो रही है।
गरीब और विकासशील देशों के लिए विकास कार्यक्रम बना रहा विश्व बैंक
एक सवाल के जवाब में मालपास ने कहा, विश्व बैंक का मानना है कि वर्तमान में 'के' आकार में सुधार हो रहा है। इसका मतलब है कि मंदी के बाद दुनिया के विभिन्न देशों में सुधार की दर अलग-अलग होगी। उन्नत अर्थव्यवस्थाएं इस समय अपने वित्तीय बाजार को मदद देने में सक्षम हैं। लोगों को रोजगार (वर्क फ्रॉम होम) भी दिया जा रहा है। हालांकि, अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में नौकरियां जा रही हैं। ऐसे लोग सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों पर निर्भर हो रहे हैं।
स्वास्थ्य कार्यक्रम और शिक्षा पर करें खर्च
विश्व बैंक ने कहा, महामारी के कारण लोगों की कमाई खत्म हो रही है। इसमें वे लोग भी शामिल हैं, जो शहरों में अपने परिवार की कमाई पर निर्भर थे। ऐसे में अर्थव्यवस्थाओं को लचीला रुख अपनाना चाहिए ताकि लोगों को नौकरियां मिल सके और वे सक्षम हो सकें। कोरोना पर विश्व बैंक ने कहा, कोई नहीं जानता है कि हालात कब और कैसे सही होंगे।
देशों को स्वास्थ्य कार्यक्रमों और शिक्षा पर खर्च करना चाहिए। ऐसा नहीं करने से स्वास्थ्य और शिक्षा के मामले में देश काफी पीछे जाएंगे, जिसकी कीमत उन्हें चुकानी पड़ेगी। विश्व बैंक के बोर्ड ने एक दिन पहले ही हेल्थ इमरजेंसी प्रोग्राम बनाने की मंजूरी दी थी। इसके तहत 12 अरब डॉलर वैक्सीन और अन्य पर खर्च होंगे। सुविधा उन देशों को भी मिलेगी, जिनके पास कोई उपाय नहीं है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था को लगेगी 11 लाख करोड़ डॉलर की चपत : आईएमएफ
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रबंध निदेशक क्रिस्टलिना जॉर्जीवा ने कहा, महामारी का असर न सिर्फ लोगों के जीवन पर पड़ा है बल्कि अर्थव्यवस्थाएं भी प्रभावित हुई हैं। कोरोना से दुनिया में पहले ही 10 लाख से अधिक मौतें हो चुकी हैं। आर्थिक मोर्चे पर देखें तो वैश्विक अर्थव्यवस्था का आकार 4.4 फीसदी घट जाएगा और अगले साल तक 11 लाख करोड़ डॉलर की चपत लगेगी।
उन्होंने कहा कि दुनिया दो मोर्चे पर जूझ रही है। पहला, वर्तमान संकट से बाहर निकलना। दूसरा, बेहतर भविष्य का निर्माण करना। इसके लिए हमने 12 लाख करोड़ डॉलर की मदद मुहैया कराई है। विभिन्न केंद्रीय बैंकों ने भी अपना बैलेंस शीट 7.5 लाख करोड़ डॉलर तक बढ़ाया है यानी अर्थव्यवस्था में खर्च बढ़ाने के लिए इतनी रकम मुहैया कराई है।