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कीमोथैरेपी को मात दे सकता है कैंसर, धोखा देकर आ सकता है वापस, ये है कारण
jantaserishta.com
16 March 2021 3:00 AM GMT
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कैंसर भी कीमोथैरेपी से बच सकता है. उसे धोखा देकर वापस आ सकता है. एकदम कोरोना वायरस की तरह, जैसे कोरोना वायरस के नए वैरिएंट वैक्सीन और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को धोखा दे सकते हैं. ठीक उसी तरह कैंसर की कोशिकाएं कुछ समय के लिए सक्रिय शीतनिद्रा यानी एक्टिव हाइबरनेशन में चली जाती है. या यूं कह लें कि निष्क्रिय हो जाती हैं. इन पर कीमोथैरेपी का असर नहीं होता. बाद में अनुकूल माहौल मिलते ही वापस अपना दुष्प्रभाव दिखाने लगती हैं.
न्यूयॉर्क स्थित Weill Cornell Medicine संस्था के साइंटिस्ट्स ने एक स्टडी में यह खुलासा किया है. वैज्ञानिकों का मानना है कि कैंसर की कुछ कोशिकाएं खुद को बुढ़ापे (Senescence) की ओर ले जाती हैं, उसके बाद उन्हें एक्टिव हाइबरनेशन में डाल देती हैं. ताकि उनके ऊपर की जा रही तीव्र कीमोथैरेपी (Chemotherapy) प्रक्रिया का असर कम हो.
इस स्टडी के होने के बाद अब कैंसर के लिए नई दवाओं और वैक्सीन की खोज शुरु हो सकती है. वैज्ञानिकों का मानना है कि अब ऐसी दवाएं बनानी होंगी जो कैंसर की कोशिकाओं को हाइबरनेशन में जाने से रोकें और उन्हें तत्काल खत्म कर दें. इसके अलावा उनपर कीमोथैरेपी का भी असर हो.
अमेरिका एसोसिएशन फॉर कैंसर रिसर्च की जर्नल कैंसर डिस्कवरी में ये रिपोर्ट 26 जनवरी को ही प्रकाशित हुई थी लेकिन अभी इसका पीयर रिव्यू करने के बाद इसे सही माना गया है. साइंटिस्ट्स का मानना है कि इस स्टडी से इस बात का खुलासा होगा कि क्यों कई बार पूरी तरह इलाज के बाद भी कैंसर वापस हो जाता है?
इस स्टडी के लिए साइंटिस्ट्स ने ऑर्गेनॉयड्स (Organoids) और चूहों पर अध्ययन किया. लेकिन एक्यूट मायलॉयड ल्यूकीमिया (कैंसर का एक भयावह रूप) का ट्यूमर इंसान के शरीर से निकाल कर जांचा गया. ट्यूमर से निकली कोशिकाओं को चूहों और ऑर्गेनॉयड्स में डालकर जांचा गया. इस दौरान उन मरीजों पर भी नजर रखी गई जिन्हें यह कैंसर था. उनके इलाज और इलाज के बाद दोबारा कैंसर होने की प्रक्रिया पर भी नजर रखी गई.
Weill Cornell Medicine के सैंड्रा एंड एडवर्ड मेयर कैंसर सेंटर के सदस्य और जेप्रो फैमिली प्रोफेसर ऑफ हिमैटोलॉजी एंड मेडिकल ऑन्कोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. एरी एम. मेलनिक ने बताया कि एक्यूट मायलॉयड ल्यूकीमिया (AML) को कीमोथैरेपी से दबाया जा सकता है. निष्क्रिय किया जा सकता है लेकिन अगर यह दोबारा आ गया तो फिर ये लाइलाज हो जाता है.
डॉ. मेलनिक ने कहा कि यह कैंसर के इलाज की दुनिया का अनसुलझा प्रश्न है, जिसका जवाब हम आज तक खोज नहीं पाए हैं. हम अब भी यह पता नहीं कर पाए हैं कि हम क्यों नहीं हर कैंसर से निजात पा लेते. AML तो सिर्फ एक उदाहरण है. ऐसे कई और कैंसर हैं, जो ठीक होते हुए भी वापस हमला कर देते हैं. दोबारा किया हुआ इनका हमला बेहद घातक होता है.
कई सालों से शोधकर्ता इस बात की स्टडी कर रहे हैं कि क्यों कीमोथैरेपी से ठीक हुए ट्यूमर्स वापस शरीर में बनने लगते हैं. ये क्यों कैंसर को जन्म देने लगते हैं. पहली थ्योरी कहती है कि ट्यूमर के अंदर मौजूक सभी कोशिकाओं का जेनेटिक सिक्वेंस एक जैसा नहीं होता. इसे कहते हैं ट्यूमर हेट्रोजेनिटी (Tumor Heterogeneity). इसमें ट्यूमर के किसी छोटे से हिस्से में मौजूद खास तरह की कोशिकाएं इलाज के बाद भी बच जाती हैं. वापस ट्यूमर को विकसित करने लगती हैं.
दूसरी थ्योरी ये कहती है कि ट्यूमर के अंदर मौजूद कुछ कोशिकाओं में खास तरह का गुण होता है, जो उन्हें वापस से जन्म लेने और विकसित होने की क्षमता प्रदान करता है. भले ही वह कीमथैरेपी जैसी जटिल प्रक्रिया से क्यों न गुजरी हों.
डॉ. मेलनिक ने कहा कि बुढ़ापे की नकल करके खुद को निष्क्रिय करने वाली कैंसर कोशिकाएं पहले दोनों थ्योरी को खारिज नहीं करती. जबकि, उन दोनों को सही साबित करने की राह बता रही हैं. हमने अपनी स्टडी में AML की कोशिकाओं को कीमोथैरेपी से गुजारा. इसमें से कुछ कोशिकाएं तत्काल हाइबरनेशन यानी बुढ़ापे की निष्क्रियता की ओर चली गईं. उसी समय बाकी कोशिकाएं खत्म हो रही थीं. जबकि, ये थोड़ी देर बाद वापस उग्र रूप धारण करने लगीं.
AML की वापस विकसित होने वाली कैंसर कोशिकाएं उसी तरह से बढ़ रही थीं, जैसे इंसान को लगा घाव भरता है. इस दौरान विकसित होने वाली ये कैंसर कोशिकाएं अपना ज्यादातर काम बंद करके रखती हैं ताकि इनके इम्यून सिस्टम को पर्याप्त भोजन और ऊर्जा मिल सके. इसकी मदद से ये खुद को बड़ा और विकसित करती रहती हैं.
डॉ. मेलनिक ने कहा कि ये वैसा ही है जैसे कुछ भ्रूण पर्याप्त भोजन और पोषण न मिलने पर विकसित होना अस्थाई रूप से बंद कर देते हैं. इसे एम्ब्रियोनिक डायापॉज (Embryonic Diapause) कहते हैं. यह कोई विशेष परिस्थिति नहीं है लेकिन कैंसर की कोशिकाओं की कहानी समझने के लिए एक बेहतरीन उदाहरण है.
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