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क्‍या हम शेख्सपीयर की ऐसी नग्न मूर्ति लगा सकते है...? फेमिनिस्‍ट महिलाएं ने पूछे सवाल

Neha Dani
12 Nov 2020 11:41 AM GMT
क्‍या हम शेख्सपीयर की ऐसी नग्न मूर्ति लगा सकते है...? फेमिनिस्‍ट महिलाएं ने पूछे सवाल
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क्‍या पहले कभी ऐसा हुआ कि किसी महान व्‍यक्ति के स्‍मारक में उसकी नग्‍न मूर्ति लगाई गई हो.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| क्‍या पहले कभी ऐसा हुआ कि किसी महान व्‍यक्ति के स्‍मारक में उसकी नग्‍न मूर्ति लगाई गई हो. सोशल मीडिया पर दुनिया भर की फेमिनिस्‍ट महिलाएं भी यही सवाल पूछ रही हैं. क्‍या आप शेख्‍सपियर की ऐसी मूर्ति लगाएंगे?

मैरी वोल्‍स्‍टनक्राफ्ट का नाम तो सुना ही होगा. 18वीं सदी की महान ब्रिटिश नारीवादी लेखिका, जिन्‍हें इतिहास में 'मदर ऑफ फेमिनिज्‍म' के नाम से भी जाना जाता है. 1792 में उनकी एक किताब छपी थी- 'विंडिकेशन ऑफ राइट्स ऑफ वुमेन', जिसने एक तरह से फेमिनिस्‍ट फिलॉसफी की नींव रखी. अगर आज कोई ऐसे कहे कि औरतों को पढ़ने, काम करने और राजनीतिक फैसलों में हस्‍तक्षेप करने का अधिकार नहीं होना चाहिए तो हम उसे वाहियात समझेंगे. लेकिन ये वो जमाना था, जब देश के बड़े दार्शनिक, विचारक, लेखक और राजनीतिज्ञ भी ऐसा मानते थे. हीगल, कांट, नीत्‍शे, रूसो, प्‍लूटो और अरस्‍तू तक अपवाद नहीं, जिनके काम को पढ़े बगैर दर्शन के इतिहास को समझा नहीं जा सकता. वो भी औरतों के बारे में निहायत संकीर्ण सोच रखते थे और मानते थे कि उनकी बुद्धि घुटनों में होती है.‍

इन्‍हीं दार्शनिकों के मर्दवादी दर्शन के जवाब में लिखी गई थी वो किताब- 'विंडिकेशन ऑफ राइट्स ऑफ वुमेन.'

स्‍त्री आंदोलन के इतिहास में मैरी वोल्‍स्‍टनक्राफ्ट के अमूल्‍य योगदान को सराहने और उनके प्रति कृतज्ञता व्‍यक्‍त करने के लिए इस मंगलवार को लंदन के न्‍यूइंगटन ग्रीन्‍स में उनके नाम से एक स्‍मारक बनाया गया और वहां उनकी प्रतिमा का अनावरण किया गया. इतिहास की बहुत कम महिलाएं ऐसी हैं, जिनके नाम पर स्‍मारक बने हों और जिनकी विशाल मूर्तियां लगाकर इतिहास में उनके योगदान के प्रति आभार व्‍यक्‍त किया गया हो. मैरी वोल्‍सटनक्राफ्ट का स्‍मारक बनाने के लिए पिछले एक दशक से ब्रिटेन और दुनिया भर की महिलाओं ने कैंपेन चला रखा था, जिसके बाद यह स्‍मारक बना. लेकिन इस स्‍मारक की काफी आलोचना हो रही है. दुनिया भर की फेमिनिस्‍ट औरतें उस मूर्ति को ऐसे देख रही हैं कि वो मैरी वोल्‍स्‍टनक्राफ्ट का अनादर है. ऐसा महसूस करने की ठोस वजह भी है. जो मूर्ति लगाई गई है, वह नग्‍न है. हालांकि उसे बनाने वाली भी एक महिला ही है. ब्रिटिश कलाकार मैगी हैंबलिंग ने वह मूर्ति बनाई है

इतिहास में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि किसी महान विचारक, दार्शनिक, लेखक या कलाकार की नग्‍न मूर्ति को उनके स्‍मारक में लगाया गया हो. क्‍या हम शेख्‍सपियर, होमर, वैन गॉग, रूसो, मार्क्‍स, लेनिन, चर्चिल, नेल्‍सन मंडेला के स्‍मारक में उनकी नग्‍न मूर्ति लगाए जाने की कल्‍पना कर सकते हैं. क्‍या पहले कभी ऐसा हुआ कि किसी महान व्‍यक्ति के स्‍मारक में उसकी नग्‍न मूर्ति लगाई गई हो. सोशल मीडिया पर दुनिया भर की फेमिनिस्‍ट महिलाएं भी यही सवाल पूछ रही हैं. क्‍या आप शेख्‍सपियर की ऐसी मूर्ति लगाएंगे?

पितृसत्‍ता का सबसे बड़ा संकट ही यही है कि वह औरत को उसके शरीर से ऊपर उठकर एक मनुष्‍य के रूप में कभी देख ही नहीं पाता. चाहे वह उन पर कहानी लिखे, सिनेमा बनाए या विज्ञापनों में हरेक सामान बेचने के लिए उनके शरीर को बेचे, हर जगह केंद्र में स्‍त्री की देह ही होती है. इस मूर्ति के साथ भी यही दिक्‍कत है.

फेमिनिज्‍म औरतों के शरीर से जुड़े टैबू तोड़ने की बात करता है, मर्दों की दुनिया के बनाए नियमों और निषेधों को तोड़कर अपना नया नरेटिव रचता है. लेकिन वही नरेटिव अगर मैरी वोल्‍स्‍टनक्राफ्ट की इस प्रतिमा की तरह उसी मर्दवादी जाल में जाकर उलझ जाए तो बुरा लगना लाजिमी है. जाहिर है औरतों को बुरा लग रहा है.

वोल्‍स्‍टनक्राफ्ट की भूमिका घर, रसोई और रिश्‍तों की सीमाओं को तोड़कर औरतों के लिए एक नई आधुनिक और ज्‍यादा बराबरी की जगह पाने की रही है. अपने निजी जीवन में भी उन्‍होंने नियमों को चुनौती दी, गैरपारंपरिक किस्‍म का जीवन जिया, बिना शादी के रिश्‍तों में रहीं, मां बनी. उन्‍होंने हर वो काम किया, जिसे किए जाने की मनाही थी. लेकिन उनका संघर्ष सिर्फ अपने लिए आजादी पा लेने भर का नहीं था. उन्‍होंने इस नरेटिव को व्‍यापक अर्थों में समझाने, पितृसत्‍ता के नियमों को तोड़ने के लिए किताबें लिखीं. नारीवाद का दर्शन गढ़ा. स्त्रियों को नई समझ दी. आज वुमेन स्‍टडी का कोई कोर्स मैरी किताब के जिक्र के बगैर पूरा नहीं होता. उनकी भूमिका उससे कहीं ज्‍यादा बड़ी है, जितनी यह नग्‍न प्रतिमा बताने की कोशिश कर रही है और जिस कोशिश में पूरी तरह नाकाम है.

हमें मैरी वोल्‍स्‍टनक्राफ्ट का नाम याद रखने और उसे बार-बार दोहराने की जरूरत है. हमें आने वाली पीढि़यों के लिए इस इतिहास को संजोकर रखने की जरूरत है, लेकिन ऐसे नहीं, जैसे किया गया है. ये फेमिनिज्‍म की आड़ में मर्दवादी नरेटिव को ही दोहराने और बचाने की कोशिश है.

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