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सुनने की क्षमता में कमी वाले 80 फीसदी लोग मौजूद हैं।
दूनिया की एक चौथाई आबादी आज से 30 साल बाद बहरेपन का शिकार हो सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2050 तक ऐसा होने की आशंका जताते हुए कहा है कि हमें इसे लेकर सावधानी बरतने की जरूरत है। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि ऐसी स्थिति में हमें इलाज और जागरूकता पर अधिक निवेश करना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से इस संबंध में पहली बार जारी की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि इन्फेक्शन, बीमारियों, जन्मजात समस्याओं, ध्वनि प्रदूषण और लाइफस्टाइल की खामियों के चलते ऐसी स्थिति हो सकती है। इस रिपोर्ट में कुछ जरूरी उपायों के सुझाव देते हुए कहा गया है कि इस पर प्रति व्यक्ति 1.33 डॉलर सालाना का खर्च आएगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि इस संकट के चलते दुनिया को हर साल खरबों डॉलर की रकम खर्च करनी पड़ रही है। इसकी वजह यही है कि इससे निपटने के लिए जरूरी उपाय नहीं किए गए। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस पर फोकस न करने से स्वास्थ्य की बड़ी हानि हो रही है। इसके अलावा यह संचार, शिक्षा और रोजगार के सेक्टर में भी नुकसान पहुंचाने वाला है। फिलहाल पूरी दुनिया में 20 फीसदी लोग सुनने की क्षमता में कमी की समस्या से प्रभावित हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले तीन दशकों में सुनने की क्षमता में कमी वाले लोगों की संख्या में 1.5 गुना का इजाफा हो सकता है। 2019 में यह आंकड़ा 1.6 बिलियन था, जो 2050 में बढ़कर 2.5 बिलियन हो सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2.5 बिलियन लोगों में से 700 मिलियन लोग ऐसे हो सकते हैं, जो सुनने की गंभीर समस्या से पीड़ित होंगे। सुनने की क्षमता की यह समस्या डेमोग्राफिक और पॉप्युलेशन ट्रेंड के चलते हो सकती है। इसके अलावा इलाज तक हर किसी की पहुंच न होने के चलते भी समस्याएं बढ़ रही हैं। खासतौर पर कम आय वाले देशों में केयर के लिए जरूरी सुविधाएं न होने और इलाज के लिए आर्थिक अभाव के चलते भी समस्याओं में इजाफा हो रहा है। यही नहीं इलाज के लिए सही प्रोफेशनल्स की कमी भी आड़े आ रही है। इस तरह कम आय वर्ग वाले देशों में ही सुनने की क्षमता में कमी वाले 80 फीसदी लोग मौजूद हैं।
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