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इस दौरान कई बार उनके दिमाग में सुसाइड करने का ख्याल आया
ईरान (Iran) में दो साल तक हिरासत में रही ब्रिटिश-ऑस्ट्रेलियाई एकेडमिक (British Australian Academic) ने मंगलवार को कहा कि उन्हें सात महीने तक एकांत कारावास (Solitary Confinement) में रखा गया था, जो उनके लिए एक 'मनोवैज्ञानिक टॉर्चर' (Psychological Torture) था. इस दौरान कई बार उनके दिमाग में सुसाइड (Suicide) करने का ख्याल आया. काइली मूर-गिल्बर्ट को 2018 में ईरान में हिरासत में लिया गया था और उन्हें जासूसी के आरोप में 10 साल जेल की सजा सुनाई गई थी.
पिछले साल विदेश में गिरफ्तार किए गए तीन ईरानियों के बदले उन्हें रिहा कर दिया गया था. पहली बार सार्वजनिक रूप से बोलते हुए काइली मूर ने कहा कि उन्हें एक 4 स्क्वायर मीटर के एक सेल में रखा गया था, जिसमें जेल गार्ड से बातचीत करने के लिए सिर्फ एक टेलीफोन मौजूद था. स्काई न्यूज ऑस्ट्रेलिया से बात करते हुए काइली ने कहा कि ये अनुभव पागल कर देने वाला था. आप टूटने लगते हैं. मैंने शारीरिक दर्द झेला.
'मेरे बस में होता तो सुसाइड कर लेती'
काइली मूर-गिल्बर्ट यूनिवर्सिटी ऑफ मेल्बर्न में मिलिड-ईस्ट पॉलिटिक्स की विशेषज्ञ हैं. उन्होंने कहा कि दो हफ्ते बाद उनका मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ने लगा. मैंने सोचा कि अगर मेरे बस में होता तो मैं खुद को मार देती. नौ महीने की कैद के बाद उन्हें 10 साल जेल की सजा सुनाई गई, जिसके विरोध में उन्होंने कई बार भूख हड़ताल की.
जेल से भागने की कोशिश
अपने सबसे साहसी विरोध का जिक्र करते हुए मूर-गिल्बर्ट ने कहा कि उन्होंने एक बार जेल से भागने की भी कोशिश की. गिल्बर्ट ने स्काई न्यूज को बताया कि एक दिन मैंने सोचा कि मेरे पास खोने के लिए कुछ नहीं है. मैं ये करने जा रही हूं. उन्होंने बताया कि दीवारों पर कुछ कीलें लगी थीं इसलिए मैंने अपने हाथों पर मोजे पहने और कीलों को पकड़कर दीवार पर चढ़ने लगी. जेल की छत पर पहुंचकर मूर-गिल्बर्ट ने सोचा कि वो दीवार से नीचे उतरकर पास के शहर तक भागकर पहुंच सकती हैं.
रिकवर करने की कोशिश जारी
हालांकि मूर ने ऐसा नहीं किया. उन्होंने सोचा कि वो जेल की यूनिफॉर्म में हैं और उन्हें स्थानीय भाषा भी नहीं आती. ऐसे में उन्हें पकड़े जाने का डर था. आखिरकार उन्हें कैदियों की अदला-बदली में रिहा कर दिया गया. मूर ने कहा कि वो उस अनुभव से रिकवर करने की कोशिश कर रही हैं
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