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ब्रिटेन को नस्लभेद पर उठे विवाद से नुकसान, बोरिस जॉनसन को फायदा

Deepa Sahu
5 April 2021 2:47 PM GMT
ब्रिटेन को नस्लभेद पर उठे विवाद से नुकसान, बोरिस जॉनसन को फायदा
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ब्रिटेन को नस्लभेद पर उठे विवाद से नुकसान

जनता से रिश्ता वेबडेस्क: ब्रिटेन में मौजूद नस्लभेद के बारे में आई हालिया रिपोर्ट की चौतरफा आलोचना के बावजूद बोरिस जॉनसन सरकार इस रिपोर्ट के पक्ष में मजबूती से खड़ी नजर आ रही है। इसे देखते हुए विश्लेषकों ने राय जताई है कि इस विवाद के जरिए प्रधानमंत्री जॉनसन सियासी मकसद साधते दिख रहे हैं। ये मकसद ब्रिटेन की श्वेत आबादी का अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करने का है। कुछ हलकों से यह भी कहा गया है कि इसी मकसद से प्रधानमंत्री ने इस मामले में जांच आयोग बनाया था। एक टिप्पणी में कहा गया है कि ऐसा लगता है कि इस मामले में जॉनसन ने 1980 के दशक में बीबीसी पर दिखाए गए व्यंग्य धारावाहिक 'यस मिनिस्टर' से सीख ली है। उस सीरियल में शासन करने का एक नियम यह बताया गया था कि कभी ऐसी जांच मत कराओ, जिसके निष्कर्ष आपको पहले से ना मालूम हों।

नस्लवादी और जातीय गैर-बराबरी की पड़ताल करने के लिए बने इस आयोग की रिपोर्ट बीते 31 मार्च को जारी हुई। पिछले साल हुए ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन के दौरान ये मांग उठी थी कि सरकार नस्लीय गैर-बराबरी की समस्या का हल करने के लिए गंभीर उपाय करे। तभी इस आयोग का गठन किया गया था। लेकिन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ब्रिटेन में संस्थागत नस्लवाद अब मौजूद नहीं है। आयोग ने कहा कि उसे ऐसे कोई प्रमाण नहीं मिले, जिससे बहुत से युवा लोगों के इस 'सद्भावनापूर्ण आदर्शवादी दावे' की पुष्टि हो कि ब्रिटेन आज भी संस्थागत नस्लभेद से ग्रस्त है। इसके विपरीत आयोग ने कहा कि ब्रिटेन में कुछ जातीय अल्पसंख्यक समुदायों ने जैसी कामयाबी हासिल की है, उसे दूसरे श्वेत बहुल देशों को अपने लिए एक मॉडल मानना चाहिए।

आलोचकों ने आयोग की रिपोर्ट को 'स्पिन ऑपरेशन' (बात गलत ढंग से पेश करना) बताया है। कई अखबारों ने भी अपने संपादकीय में इस रिपोर्ट की कड़ी आलोचना की है। कहा गया है कि रिपोर्ट में गुलामी और ब्रिटिश साम्राज्य को अच्छी छवि देने की कोशिश की गई है। इस सिलसिले में रिपोर्ट के उस भाग का जिक्र किया गया है, जिसमें कैरीबियाई देशों में ब्रिटिश साम्राज्यवाद को मुनाफा कमाने और उत्पीड़न का इतिहास मानने के बजाय इस रूप में पेश किया गया है, जिससे अफ्रीकी समुदाय के वहां मौजूद लोगों का सांस्कृतिक पुनर्निर्माण हुआ। आयोग ने कहा है कि कैरीबियन द्वीपों में ब्रिटिश साम्राज्य के इतिहास को इसी रूप में बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए।
लंदन किंग्स कॉलेज में पब्लिक पॉलिसी विषय के प्रोफेसर जोनाथन पोर्ट्स ने अमेरिका के टीवी चैनल सीएनएन से कहा- 'वे कोशिश इस बात की कर रहे हैं कि एक खास ढंग की बातों के दोहराव से ब्रिटेन में नस्लभेद को न्यायोचित ठहरा दिया जाए।' ऑपरेशन ब्लैक नाम की संस्था के निदेशक शिमोन वॉली ने कहा कि आयोग का गठन ही इस तरह किया गया, जिससे उसकी रिपोर्ट उनकी (सरकार की) सोच में फिट बैठे। सरकार ने कहा है कि आयोग गैर-सरकारी व्यक्तियों को लेकर बनाया गया था। जबकि आलोचकों का कहना है कि उसकी रिपोर्ट प्रधानमंत्री जॉनसन की 'नव जाग्रत चेतना के खिलाफ युद्ध' की मानसिकता के मुताबिक पेश की गई है।
जानकारों ने ध्यान दिलाया है कि देश में संस्थागत नस्लभेद ना होने की बात कंजरवेटिव श्वेत समुदाय को बहुत पसंद आई है। यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर टिम बेल ने कहा है- 'देश में ऐसे मतदाता हैं, जो आ रहे सांस्कृतिक बदलाव से चिंतित हैं। ये रिपोर्ट उन लोगों को रास आएगी।' लेकिन खतरा यह है कि इससे युवा और अल्पसंख्यक समुदायों में आक्रोश और बढ़ेगा। बेल ने कहा- 'बहुत से नौजवान चाहे वे अल्पसंख्यक समुदाय के हों या श्वेत समुदाय के इन मुद्दों पर बहुत मजबूत राय रखते हैं। उन्हें लगता है कि कंजरवेटिव लोग उनके उसूलों को नहीं समझ पाते।' विश्लेषकों के मुताबिक देश इन दो तरह के खेमों में बंटा हुआ है। इस रिपोर्ट से कंजरवेटिव समूह जॉनसन के पक्ष में गोलबंद होंगे, जिससे उन्हें सियासी फायदा होगा। लेकिन लंबे समय में इससे देश को नुकसान होगा, क्यों नस्लभेद जैसे मसलों पर गोलबंदी और मजबूत हो जाएगी।


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