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ऐसा भी हो सकता है कि वहां पर खाद्य पदार्थों के लिए हिंसा तक शुरू हो जाए।
ब्रिटेन ने तालिबान के साथ विभिन्न मुद्दों पर बातचीत की है। इस बातचीत का प्रमुख एजेंडा अफगानिस्तान में मानवीय आधार पर मदद देना और द्विपक्षीय संबंध था। ये बातचीत ब्रिटेन के वरिष्ठ अधिकारी सिमोन गास और तालिबानी नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई के बीच दोहा में हुई है। इस वार्ता में सुरक्षा और राजनीतिक मुद्दे भी शामिल रहे। इसकी जानकारी ट्विटर पर साझा करते हुए तालिबान के प्रवक्ता एम नईम ने बताया कि गास ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जानसन के अफगानिस्तान के लिए नियुक्त विशेष दूत हैं जो फिलहाल तालिबान से बातचीत के लिए दोहा में हैं। ये ट्वीट पश्तो भाषा में किया गया है।
आपको बता दें कि स्तानिकजई तालिबान की राजनीतिक शाखा और इस्लामिक अमीरात के राजनीतिक दफ्तर का उप-प्रमुख है। इस बातचीत में गास के साथ एक उच्च स्तरीय अधिकारियों का दल भी मौजूद रहा। इस बातचीत में ब्रिटेन की तरफ से गास ने कहा कि वो अफगानिस्तान में मानवीय आधार पर मिलने वाली मदद को दोगुना कर सकते हैं और इस संबंध में इस्लामिक अमीरात से संबंध भी बनाए रखने के इच्छुक हैं। इसके जवाब में तालिबान ने ब्रिटेन के दल का शुक्रिया भी किया।
ब्रिटेन की तरफ से भी कहा गया है कि वो तालिबान के साथ बातचीत को लेकर सकारात्मक रुख बनाकर रखेगा। तालिबान को इसके लिए ये सुनिश्चित करना होगा कि उनके नागरिकों को वहां से निकलने के लिए सुरक्षित मार्ग मुहैया करवाया जाना चाहिए।इस बीच ब्रिटेन के विदेश मंत्री डोमनिक राब ने यहां तक कहा है कि वो अफगानिस्तान समेत पड़ोसी देशों का दौरा भी करेंगे।
गुरुवार की सुबह राब कतर पहुंचे थे और वहां के विदेश मंत्री से उन्होंने अफगानिस्तान के संबंध में वार्ता भी की थी। इसी दिन राब ने उन लोगों से भी मुलाकात की जो अफगानिस्तान से निकलकर कतर पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि मानवीय आधार पर तालिबान को अफगानिस्तान से निकलने वालों को सुरक्षित मार्ग देना सुनिश्चित करना चाहिए।
गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों में काबुल की सुरक्षा काफी लचर हुइ है। खासतौर पर अमेरिका के वहां से पूरी तरह से जाने के बाद हालात काफी खराब हुए हैं। अफगानी खाने-पीने की चीजों के लिए भी मोहताज हो गए हैं। वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने आगाह किया है कि अफगानिस्तान में केवल इसी माह का अनाज उपलब्ध है। ऐसे में यदि वहां तुरंत मदद नहीं भेजी गई तो वहां पर लोग भुखमरी का शिकार हो जाएंगे। ऐसा भी हो सकता है कि वहां पर खाद्य पदार्थों के लिए हिंसा तक शुरू हो जाए।
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