सावन का महत्व कृषि संस्कृति में बहुत ज्यादा है। इस माह तक धान के बिचड़े खेतों में रोपने लायक हो जाते हैं। यदि पर्याप्त बारिश होती है और खेतों में धान के पौधे लगाने लायक पानी जमा हो जाता है, तो धनरोपनी शुरू हो जाती है। घर की वयस्क स्त्रियों के साथ नववधुएं भी फांटा कसकर धान रोपने के लिए निकल पड़ती हैं। खेतों में तो अजब-सा समां होता है, हल्का घूंघट तो रहता ही है, लेकिन टांगें खुली होती हैं। खुले आकाश के नीचे स्त्रियां अपने सखा-साथियों के साथ धान रोपती हैं। घर से न निकलने वाली नववधुओं के लिए धनरोपनी पिकनिक का आनंद देती है। परंतु उधर सावन-भादो के महीने में नैहर से बुलावा आ जाता है। नैहर की अमराई में अब आम का समय समाप्त होने को होता है और बागों में झूले पड़ जाते हैं। ब्याही और बिन-ब्याही बेटियां आ जुटती हैं। यह कजरी गाते हुए पेंगे लेने का समय होता है। परंतु अपनी नई गृहस्थी में रमी बाला का, जो वधू बन चुकी है, श्वसुर गृह के प्रति आकर्षण प्रबल होता है, सो वे गा उठती हैं-नाहक भैया आवेलन लियौनवां/सवनमा में ना जइबै ननदी।
सोर्स: अमर उजाला