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परियोजनाओं के लिए पैसा मिला, और फिर एसेक्स में ब्रैडवेल में एक तीसरी साइट पर अपने स्वयं के रिएक्टर स्थापित किए।
दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों में एक ब्रिटेन भी चीन के चुंगल में फंसता नजर आ रहा है। चौंकाने वाली बात यह है कि ब्रिटेन अपने परमाणु ढांचे को लेकर चीन इतना ज्यादा निर्भर है कि उसे अब सोचने पर मजबूर होना पड़ा है। यूनाइटेड किंगडम को नई परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं के विकास के लिए बीजिंग पर अपनी बढ़ती निर्भरता का एहसास हुआ है। यही कारण है कि देश ने हाल ही में रणनीतिक क्षेत्र को चीनी हाथों में आने से बचाने के लिए जरूरी कार्रवाई शुरू कर दी है। एक मीडिया रिपोर्ट में यह कहा गया है।
रणनीतिक विश्लेषक Di Valerio Fabbri ने Geopolitica.info में लिखते हुए कहा कि यूके सरकार कथित तौर पर सफोक तट पर एक परमाणु ऊर्जा स्टेशन के निर्माण के लिए 20 बिलियन पाउंड की परियोजना से चीन को हटाने के उद्देश्य से एक डील पर काम कर रही है। ब्रिटेन की साइजवेल सी पावर स्टेशन परियोजना अभी प्लानिंग और डेवलपमेंट फेज में है। लेकिन इसका स्वामित्व फ्रांस की सराकार समर्थित बिजली कंपनी ईडीएफ के पास है, जिसकी इसमें 80 प्रतिशत हिस्सेदारी है, और बाकी शेष 20 प्रतिशत हिस्सेदारी चीन जनरल न्यूक्लियर (सीजीएन) के पास है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यूके सरकार अब ईडीएफ के साथ परियोजना में हिस्सेदारी हासिल करने की योजना बना रही है, जिसके परिणामस्वरूप परियोजना से चीनी कंपनी सीजीएन को हटा दिया जाएगा। यूके में मौजूदा परमाणु सुविधाओं का स्वामित्व ब्रिटिश ऊर्जा कंपनी Centrica और EDF के पास है।
कंपनी को कई संयंत्रों को समय से पहले बंद करना पड़ा है और सात में से चार स्टेशन मार्च 2024 तक बंद होने वाले हैं। नतीजतन, हाल के वर्षों में और अधिक परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने के लिए जोर दिया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्रिटेन में बड़े पैमाने पर प्रवेश करने के लिए चीन के लिए अत्यावश्यकता काफी अनुकूल साबित हुई है।
2015 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की लंदन यात्रा के दौरान हस्ताक्षरित एक परमाणु समझौते ने ब्रिटेन के परमाणु उद्योग में चीन के भविष्य के प्रभुत्व की ओर अग्रसर होने का रास्ता साफ कर दिया था। इस सौदे के तहत, चीन को हिंकले और साइजवेल परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं के लिए पैसा मिला, और फिर एसेक्स में ब्रैडवेल में एक तीसरी साइट पर अपने स्वयं के रिएक्टर स्थापित किए।
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