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चोटी से उत्तेजित होते हैं लड़के, जापान के स्कूलों में अब भी 1870 के दशक के नियम, स्कूल ने बैन कर दी लड़कियों की एक पोनीटेल

Gulabi
12 March 2022 11:27 AM GMT
चोटी से उत्तेजित होते हैं लड़के, जापान के स्कूलों में अब भी 1870 के दशक के नियम, स्कूल ने बैन कर दी लड़कियों की एक पोनीटेल
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चोटी से उत्तेजित होते हैं लड़के
महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध के मामलों ने पुरुषों को तो कई प्रतिबंध नहीं दिया. मगर लड़कियों को आए दिन किसी न किसी अजीब प्रतिबंध और आपत्तियों का सामना करना पड़ता है. उन्हें हर उस काम के लिए रोका जाता है जिससे ये एहसास भी हो कि उसमें किसी न किसी तरह से उत्तेजना का भाव आ सकता है.
जापान (Japan) के अधिकांश स्कूलों में लड़कियों पर ऐसे-ऐसे प्रतिबंध है जिसे सुनकर आप सिर पकड़ लेंगे. एक विकसित राष्ट्र ऐसा कैसे सोच सकता है विश्वास ही नहीं होता. जापान में लड़कियों को सिंगल चोटी या पोनीटेल बनाकर स्कूल जाना सख्त मना है. वजह है असुरक्षा का भाव. इस बारे में तर्क है कि लड़कियों को पोनीटेल में देखकर लड़के उत्तेजित हो सकते हैं. इस बकवास वजह का विरोध भी किया गया लेकिन स्कूलों में बैन जारी है. इसके अलावा भी कई ऐसे नियम हैं जो बेहद अजीब हैं.
इस नियम को लेकर 2020 में फुकुओका इलाके के कई स्कूलों में सर्वे किया गया था. जिसमें बताया गया कि चोटी बनाने के बाद लड़कियों की दिखती गर्दन से पुरुष यौन रूप से उत्तेजित महसूस कर सकते है लिहाज़ा चोटी पर बैन बना रहेगा. वहीं मध्य विद्यालय के पूर्व शिक्षक मोतोकी सुगियामा (Motoki Sugiyama) ने वाइस से कहा कई और भी ऐसे नियम है जिनका कोई तर्क नहीं फिर भी उसके खिलाफ कम से कम विरोध दर्ज होने के चलते लड़कियों के पास ऐसे नियम मानने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. शिज़ुओका (Shizuoka) क्षेत्र में 11 साल तक कई स्कूलों में पढ़ाने को दौरान देखा कि सभी जगह पोनीटेल पर प्रतिबंध है. इतना ही नहीं कई और भी नियम हैं जैसे बच्चों के मोज़े का रंग, स्कर्ट की लंबाई, अंडरवियर का सफेद रंग और तो और भौंहों के आकार तक को कड़े नियम में बांध दिया गया है (Japanese schools dictate the colour of children's socks, skirt length and even the shape of their eyebrows). साथ ही बालों का रंग भी काले के अलावा दूसरा नहीं हो सकता.
सोशल मीडिया पर उठाए सवाल
मोटोकी ने इन नियमों को सोशल साइट टिकटॉक (Tiktok) के ज़रिए साझा किया और बताया कि ऐसे बकवास नियमों को लेकर कभी कोई सफाई नहीं दी गई. बस इन्हें जबरन लागू कर दिया गया. और इसे मानना हर किसी की मजबूरी और ज़रूरी है. मोटोकी आगे कहते हैं कि इन कड़े नियमों के जरिए छात्र-छात्राओं को एक नियम और अनुशासन में बनाए रखना है ताकि वो उस उम्र की अपनी सीमाएं याद रखें.
वाइस के अनुसार, ये सभी शिक्षा नियम 1870 के दशक में बनाए गए तभी से इसमें बदलाव नहीं किया गया. कुछ गिने-चुने स्कूल हैं जो एक्का-दुक्का नियमों में हल्के बदलाव कर पाए हैं, लिहाज़ा इन नियमों को बुराकू कोसोकू या 'ब्लैक रूल्स' (Buraku kōsoku or 'black rules') के नाम से जाना जाता है.
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