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पृथ्वी पर मौजूद सभी तत्व यहीं पर नहीं बने हैं
पृथ्वी पर मौजूद सभी तत्व यहीं पर नहीं बने हैं. कई भारी धातुओं के निर्माण के लिए तो ऐसी परिस्थितियों के निर्माण की जरूरत होती है जिनका पृथ्वी पर होना संभव ही नहीं है. इसकी एक वजह यह है कि सोना, चांदी, थोरियम, यूरेनियम जैसी भारी धातुओं (Heavy Metals) के निर्माण में असीम ऊर्जावान हालात की जरूरत होती हैं. ऐसी स्थितियां सुपरनोवा विस्फोट या फिर न्यूट्रॉन तारों के टकराव से ही पैदा हो पाते हैं. लेकिन नए शोध में वैज्ञानिकों ने दर्शाया है कि इस तरह के तत्व नवजात सक्रिय ब्लैक होल (Black Hole) के ठीक बाहर के छल्ले में भी बन सकते है जब वह धूल और गैस को निगल रहा होता है.
प्रोटोन का न्यूट्रॉन में बदलाव
इन चरम वातावरण में न्यूट्रीनों जैसे कणों का तेज दर से उत्सर्जन प्रोटोन को न्यूट्रॉन में बदलने का मौका देता है. इससे न्यूट्रॉन की संख्या में बढ़ोत्तरी हो जाती है और भारी तत्वों या धातुओं का निर्माण होने लगता है. जर्मनी में हैवी आयन रिसर्च के लिए जीएसआई हेमलोल्ट्ज सेंटर के खगोलभैतिकविद ने बताया कि उनकी टीम ने इसका अध्ययन कैसे किया.
कम्प्यूटर सिम्यूलेशन का उपयोग
जस्ट ने बताया, "हमारे अध्ययन में हमने विस्तृत कम्प्यूटर सिम्यूलेशन्स के जरिए व्यवस्थित तरीके से बड़ी संख्या में डिस्क विन्यास में न्यूट्ऱॉन और प्रोटोन के बदलावों की दर की पहली बार पड़ताल की. हमने पाया कि डिस्क कुछ स्थितियों के बने रहने पर न्यूट्रॉन के लिहाज से बहुत समृद्ध होती है.
शुरू में नहीं थे भारी तत्व
बिग बैंग की घटना के ठीक बाद ब्रह्माण्ड में बहुत सारे तत्व मौजूद नहीं थे. तारों के बनने के बाद ही उनकी क्रोड़ में परमाणु केंद्रक आपस में टकाराने लगे. उससे पहले तो पूरे ब्रह्माण्ड में अधिकांश तौर पर हाइड्रोजन और हीलियम ही मौजूद था. तारों के नाभकीय संलयन से अंतरिक्ष में कार्बन से लेकर लोहे तक भारी तत्वों का निर्माण शुरू हुआ. ये तत्व तारों के मरने के बाद अंतरिक्ष में फैले.
लोहे से भारी तत्वों के बनने में परेशानी
लेकिन लोहे के मामले में इस संलयन में एक परेशानी आई. इससे भारी तत्वों को पैदा करने के लिए जरूरी ऊर्जा से ज्यादा ऊर्जा अधिकांश भारी तारों की इन संलयन प्रक्रियाओं में नहीं थी. इससे क्रोड़ का तापमान कम होने लगा जिससे मरते हुए तारों में सुपरनोवा की स्थितियां पैदा होने लगीं.
सुपरनोवा और न्यूट्रॉन तारों के टकराव
इसी सुपरनोवा विस्फोट और साथ ही टकराने वाले न्यूट्रॉन तारों के विस्फोटों में भी भारी तत्वों का निर्माण हो सका. ये विस्फोट इतने ऊर्जावान होते हैं कि तेजी से टकराने वाले ऊर्जावान परमाणु एक दूसरे के न्यूट्रॉन तक पकड़ लेते हैं. इसे रैपिड न्यूट्रॉन कैप्चर प्रोसेस या आर- प्रोसेस कहते हैं. इसे इतनी तेजी से होना होता है कि रेडियोधर्मी विकिरण का भी समय नहीं होता है और उससे पहले ही न्यूट्रॉन केंद्रकों में जुड़ जाते हैं.
क्या ब्लैक होल में भी
वैसे तो यह अभी साफ नहीं हैं इस तरह के और कितने हालात हैं जहां आर प्रक्रिया होती है, लेकिन नवजात ब्लैक होल एक मजबूत दावेदार हैं. ब्लैक होल तब बनते हैं जब दो न्यूट्ऱन तारों का विलय होता है , उनका संयुक्त भार उन्होंने ब्लैकहोल की श्रेणी में लाने के लिए काफी होता है. जस्ट और उनका साथियों ने यह जानने का प्रयास किया कि क्या ऐसा हो सकता है.
शोधकर्ताओं ने कमप्यूटर सिम्यूलेशन चला कर ब्लैक होल की अलग अलग स्थितियों का अवलोकन कर पायाकि अगर हालात मुताबिक हुए, तो आर प्रक्रिया न्यूकलियसिंथेसिस इन वातावरणों में हो सकती है. जिसमें डिस्क का कुल भार एक निर्णायक कारक होगा. लेकिन यह अधिक नहीं होना चाहिए. शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि भविष्य में इनका परीक्षण करना संभव हो सकेगा.
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