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कोरोना वायरस फेफड़ों को क्षतिग्रस्त कर सकता है। वाशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिकों के मुताबिक, वायरस के खत्म होने के बाद भी सांस संबंधी तकलीफ लंबी खिंच सकती है।
कोरोना वायरस फेफड़ों को क्षतिग्रस्त कर सकता है। वाशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिकों के मुताबिक, वायरस के खत्म होने के बाद भी सांस संबंधी तकलीफ लंबी खिंच सकती है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना की रिपोर्ट निगेटिव होने के बाद कुछ लोगों को लगातार खांसी, सांस फूलने जैसी तकलीफें फेफड़ों से जुड़ी गंभीर और लंबी चलने वाली बीमारी का संकेत है। कोरोना से ठीक होने के बाद खांसी या सांस में तकलीफ पर तत्काल डॉक्टर से मिलना चाहिए।
आने वाले कुछ वर्ष अहम
वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनिया में करोड़ों लोग कोरोना से स्वस्थ हुए हैं। इसके बाद स्वास्थ्य संबंधी तकलीफ पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। लंबे समय तक चलने वाली सांस का पता आने वाले कुछ समय या वर्षों में पता चलेगा।
एंटीबॉडी थेरैपी मददगार पर अंतिम हल नहीं
प्रमुख शोधकर्ता और सेल बायोलॉजी के प्रो. हर्मन सेल्डिन कहते है, वैक्सीन, एंटीवायरल और एंटीबॉडी थेरैपी ऐसेे मामलों में अंतिम हल नहीं है। शोधकर्ता प्रो.माइकल जे होल्ट्जमैन के मुताबिक, कोरोना से मुक्ति का मतलब पूरी तरह ठीक होना नहीं है।
चूहों पर अध्ययन
चूहों पर शोध में देखा गया संक्रमण के बाद फेफड़े क्षतिग्रस्त होते हैं। आईल-33 प्रोटीन असंतुलन से फेफड़ों में सूजन के साथ कफ बनने लगता है।
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