2030 तक जंगलों की कटाई पर रोक लगाने का संकल्प, इस साल के जलवायु सम्मेलन में सुर्खियां बटोरने वाला पहला समझौता था. लेकिन पर्यावरणवादियों का कहना है कि दुनिया के जंगल सिर्फ राजनीतिक घोषणापत्रों से ही नहीं बचेंगे.100 से ज्यादा देशों ने स्कॉटलैंड के ग्लासगो में हुए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी से निपटने के लिए 2030 तक जंगलों की अंधाधुंध कटाई को रोकने का संकल्प किया है. लेकिन पर्यावरणवादियों को इस संकल्प पर संदेह है. वो कहते हैं दुनिया के जंगलों पर फिरती आरियों को रोकने के लिए और भी अधिक कुछ करने की जरूरत है. इस समझौते के तहत हस्ताक्षर करने वाले 105 देशों ने वनों की हानि को रोकने और इस स्थिति को बदलने के लिए एक साथ काम करने का निश्चय किया है. इसके साथ ही "टिकाऊ विकास और समावेशी ग्रामीण बदलाव को भी प्रोत्साहन देने" की बात कही गई है. सुधरे हुए वन प्रबंधन की वकालत करने वाले द फॉरेस्ट स्टीवर्डशिप काउंसिल (एफएससी) ने डीडब्ल्यू को बताया कि वो भागीदार देशों की संख्या से खुश था, और इस भागीदारी में धरती के 85 फीसदी जंगल कवर होते हैं. महत्त्वपूर्ण बात ये भी है कि इस समझौते में ब्राजील, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो और इंडोनेशिया भी शामिल हैं जो दुनिया के वन्यजीव-संपन्न उष्णकंटिबंधीय वनों के घर हैं और उनके अधिकतर कटान के भी जिम्मेदार हैं. हालांकि कुछ दिन बाद, इंडोनेशिया अपनी प्रतिबद्धता में कमजोर पड़ता नजर आया. समझौता इसलिए अहम है क्योंकि जंगलों की कटाई फॉसिल ईंधन के बाद, जलवायु परिवर्तन के सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण उत्प्रेरकों में से एक है. लेकिन पूर्व के अंतरराष्ट्रीय वन सुरक्षा समझौतों की नाकामी पुख्ता तौर पर उनके दिमाम में कायम है, इसलिए पर्यावरण संगठन कहते हैं कि समझौते में सुनिश्चितता का अभाव है. एफएससी के मुताबिक, "बुनियादी रूप से दुनिया के जंगल किसी राजनीतिक घोषणापत्र से नहीं बचाए जा सकते हैं. अपनी आय और जीविका के लिए जंगलों पर निर्भर लोगों के समक्ष वन सुरक्षा और टिकाऊ वन प्रबंधन को आर्थिक रूप से आकर्षक समाधान के रूप में प्रस्तुत करना होगा" लेकिन इसके लिए पैसा चाहिए समझौते की कामयाबी में फंडिंग की मुख्य भूमिका है.