यूरोपीय संघ (ईयू) देशों के विदेश और रक्षामंत्री सोमवार को रूस पर तेल व गैस के व्यापार को लेकर कड़े प्रतिबंधों को लेकर सर्वसम्मति से कोई फैसला नहीं कर सके। अमेरिका और यूरोपीय संघ पहले ही रूस के केंद्रीय बैंक की संपत्तियां फ्रीज कर चुके हैं। मैरियुपोल में मानवीय संकट को लेकर यूरोप पर रूस के खिलाफ सख्ती का दबाव बढ़ रहा है।
बेल्जियम में ईयू मंत्रियों की बैठक में इस मुद्दे पर कोई फैसला नहीं हो सका। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने नाटो, यूरोपीय संघ और जी-7 के नेताओं के साथ मिलकर बृहस्पतिवार को कठोर प्रतिक्रिया पर चर्चा की थी। ब्रिटेन और अमेरिका रूस से तेल व गैस का व्यापार बंद कर चुके हैं, लेकिन ईयू के 27 देश ऊर्जा जरूरतों को लेकर रूस पर निर्भर हैं। इसी वजह से ईयू में रूस पर प्रतिबंधों को लेकर मतभेद है।
जर्मनी कठोर ऊर्जा प्रतिबंध लगाने में संकोच कर रहा है, क्योंकि वह अपनी ऊर्जा जरूरतों को लेकर रूस पर निर्भर है। इसे लेकर जर्मनी ने यूरोप में पहले से ही चरम पर पहुंची ऊर्जा कीमतों पर आगाह करते हुए, रूसी ऊर्जा क्षेत्र को निशाना बनाने में जल्दबाजी न करने की सलाह दी है।
रूसी ऊर्जा व्यापार पर सख्ती करने की बात
बाल्टिक देश रूस के ऊर्जा व्यापार को निशाना बनाने पर जोर दे रहे हैं। लिथुआनियाई विदेश मंत्री गेब्रियलियस लैंड्सबर्गिस ने कहा, रूस के तेल और गैस व्यापार पर प्रतिबंध जरूरी हैं, क्योंकि रूस को सबसे ज्यादा राजस्व इसी से मिलता है।
फ्रांस को सभी प्रतिबंध मंजूर
ईयू की अध्यक्षता कर रहे फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने कहा, हमें किसी प्रतिबंध पर एतराज नहीं है। यूक्रेन में हालात और बिगड़ते हैं, तो प्रतिबंध पर अगर-मगर ठीक नहीं। अब सैन्य उपायों का ही आसरा बचेगा।
अमेरिकी रुख कठोर
अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर उप-राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह ने कहा कि प्रतिबंधों को व्यापक और कठोर किया जा सकता है। खासतौर पर रूस के बैंकिंग और ऊर्जा क्षेत्र को निशाना बनाया जा सकता है। कुछ ही दिनों में रूस की अर्थव्यवस्था युद्ध से पहले से ठीक आधी रह जाएगी।
चार दौर के प्रतिबंध नहीं डाल पाए मॉस्को पर दबाव
अमेरिका और यूरोपीय संघ के चार दौर के प्रतिबंध रूस पर किसी तरह का असर नहीं डाल सके हैं। रूस और बेलारूस के 685 वित्तीय व व्यावसायिक निकायों के खिलाफ प्रतिबंध लगाए जा चुके हैं। अब तेल और गैस व्यापार निशाने पर लेने की कोशिश है।