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बांग्लादेश के कई इलाकों में हिंदुओं के खिलाफ हमले तेज, सरकार ने कही यह बात

jantaserishta.com
20 Oct 2021 2:39 AM GMT
बांग्लादेश के कई इलाकों में हिंदुओं के खिलाफ हमले तेज, सरकार ने कही यह बात
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नई दिल्ली: पाकिस्तान की सैन्य सरकार के अत्याचार के खिलाफ लड़कर भारत की मदद से साल 1971 में आजादी पाए पड़ोसी देश बांग्लादेश जो कि म्यांमार के रोहिंग्या संकट के समय अल्पसंख्यक अधिकारों को लेकर काफी मुखर था लेकिन वह आजकल अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के खिलाफ हिंसक हमलों को लेकर दुनियाभर में चर्चा का कारण बना हुआ है. संयुक्त राष्ट्र तक ने बांग्लादेश की सरकार से अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की अपील की है. हिंसा की इन ताजा वारदातों में कम से कम 6 लोगों की मौत हुई है और कई लोग घायल हुए हैं. कई पूजा पंडालों पर हमले हुए हैं जबकि हिंदुओं के घरों में भी आगजनी की गई.

भारत के इस पड़ोसी देश में हिंसा का ये सिलसिला शुरू हुआ 13 अक्टूबर के दिन जब भारत समेत दुनियाभर में रह रहे हिंदू नवरात्रि की अष्ठमी को देवी दुर्गा की पूजा के उल्लास में डूबे हुए थे. ऐसे वक्त में बांग्लादेश की राजधानी ढाका से 100 किलोमीटर दूर स्थित कोमिल्ला में धर्म से जुड़े एक अफवाह का सहारा लेकर हिंदुओं के खिलाफ भीड़ को भड़काया गया और दुर्गा पूजा पंडालों, मंदिरों और हिंदू समुदाय के लोगों के घरों पर हमले किए गए, तोड़-फोड़ और आगजनी की गई.
प्रधानमंत्री शेख हसीना ने लोगों से शांति की अपील की और कड़ी कार्रवाई के आदेश दिए लेकिन हिंसा थमी नहीं. तीन दिन तक हिंसा का ये तांडव चलता रहा. कोमिल्ला से शुरू हुई हिंसा की ये आग नोआखली, फेनी सदर, चौमुहानी, रंगपुर, पीरगंज, चांदपुर, चटगांव, गाजीपुर, बंदरबन, चपैनवाबगंज और मौलवीबाजार समेत कई इलाकों में फैल गई. पूजा स्थलों में तोड़फोड़ की गई. इस हिंसा में कम से कम छह लोगों की मौत हो गई जबकि 60 पूजा मंडपों में हमले, तोड़फोड़, लूटपाट और आगजनी की घटनाएं हुईं.
हमलों के पीछे साजिश का शक
बांग्लादेश के गृह मंत्री ने इसे सुनियोजित हमला बताया है. अफवाहों के जरिए भीड़ को उकसाने के मामले में 54 लोगों को बांग्लादेश की पुलिस ने पकड़ा और सैंकड़ों लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया. बांग्लादेश के गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल ने कहा- 'ऐसा पहले कभी नहीं हुआ क्योंकि लोग यहां सभी त्योहार खुशी से मनाते हैं. हमें कई सुराग मिले हैं और ये सभी बांग्लादेश की छवि खराब करने की साजिश की ओर इशारा करते हैं. ये घटनाएं देश की छवि खराब करने और अगले आम चुनाव से पहले तनाव उत्पन्न करने पर केंद्रित हैं. हम दोषियों को बख्शेंगे नहीं.'

एक दशक में हिंदुओं पर लगातार बढ़े हमले
बांग्लादेश में अल्पसंख्यक अधिकारों पर काम कर रही संस्था AKS के अनुसार पिछले 9 साल में बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को 3679 बार हमलों का सामना करना पड़ा. इस दौरान 1678 मामले धार्मिक स्थलों में तोड़फोड़ और हथियारबंद हमलों के सामने आए. इसके अलावा घरों-मकानों में तोड़-फोड़ और आगजनी समेत हिंदू समुदाय को निशाना बनाकर लगातार हमले किए गए. खासकर 2014 के चुनावों में अवामी लीग की जीत के बाद हिंसक घटनाएं बड़े पैमाने पर हुईं जिनमें हिंदू समुदाय को निशाना बनाया गया. 9 साल में हुए इन हमलों में हिंदू समुदाय के 11 लोगों की जान गई तो 862 लोग जख्मी हुए.
बांग्लादेश में कट्टर संगठनों का बढ़ता जा रहा है प्रभाव
बांग्लादेश में बढ़ता कट्टरपंथ और अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की वारदातें कोई नई नहीं हैं. लेकिन इस बार चिंता की बात ये है कि हिंसा की ये घटनाएं अब तक एक सीमित इलाकों में होती आई थीं. लेकिन पहली बार बांग्लादेश के काफी बड़े इलाके में एक साथ धार्मिक हिंसा भड़की है. पिछले एक दशक से इस ट्रेंड में तेजी आई है. जमात-ए-इस्लामी, हिफाजत-ए-इस्लाम जैसे कट्टर संगठनों का प्रभाव पिछले कुछ सालों में बांग्लादेश में तेजी से बढ़ा है और सेकुलर छवि वाले कई फैसलों और पहचानों के खिलाफ ये संगठन दबाव की रणनीति के तहत सरकार से कई फैसले बदलवाने में भी सफल रहे हैं. बांग्लादेश के अलग-अलग इलाकों में इनका प्रभाव बढ़ रहा है तो अल्पसंख्यकों के लिए खतरा भी बढ़ता ही जा रहा है.
चुनावों से क्या कनेक्शन?
बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी करीब 8.5 फीसदी है. शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग भारत के करीब मानी जाती है. हिंदू समुदाय का वोट भी परंपरागत रूप से अवामी लीग के लिए पक्का माना जाता है. ऐसे में विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और उसके सहयोगी जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों की कट्टर नीतियां अल्पसंख्यक समुदाय के लिए प्रतिकूल मानी जाती हैं. इसी लिए अवामी लीग सरकार चुनावों से पहले हुए इन हमलों के पीछे साजिश का एंगल देख रही है.
2014 के हमलों ने सामाजिक तानाबाना तोड़कर रख दिया था
बांग्लादेश के इन ताजा हमलों ने 2014 के हिंसक वारदातों की कड़वी यादें ताजा कर दी हैं. तब 5 जनवरी को हुए संसदीय चुनावों के ठीक बाद बांग्लादेश में हिंसा भड़क गई थी. हिंदू समुदाय को निशाना बनाकर की गई इस हिंसा में 21 जिलों में हमले की 160 से अधिक वारदातें हुईं. हिंदुओं के घरों को, मंदिरों को, दुकानों और दफ्तरों को चुन-चुनकर निशाना बनाया गया और भारी नुकसान पहुंचाया गया. AKS के अनुसार हिंदुओं के 761 घरों, 193 बिजनेस प्रतिष्ठानों, 247 मंदिरों और पूजा स्थलों में तोड़फोड़-आगजनी की गई.
अन्य अल्पसंख्यक समुदाय भी बने निशाना
साल 2016 में भी हिंसा की वारदातें हुईं और 7 लोगों की जान गई. इन हमलों के पीछे आतंकी संगठनों का भी हाथ बताया गया. केवल हिंदुओं को ही नहीं बाकी अल्पसंख्यक समुदायों को भी निशाना बनाकर पिछले कुछ सालों में बांग्लादेश में लगातार हमले हुए. साल 2019 और 2020 में हिंदुओं के अलावा अहमदिया समुदाय को टारगेट करके भी हमले किए गए. इनकी दुकानें-घर और बिजनेस में आगजनी की गई. पिछले आठ सालों में बौद्ध समुदाय को टारगेट करके भी चार हमलों को अंजाम दिया गया.
'सरकार कोई भी रहे, हालात में कोई बदलाव नहीं'
बांग्लादेश में हिंदू-बौद्ध क्रिश्चन यूनिटी काउंसिल के महासचिव राणा दासगुप्ता ने स्थानीय मीडिया से बात करते हुए कहा- बांग्लादेश में पिछले कुछ दशकों में सरकारें बदलती गईं लेकिन अल्पसंख्यकों के हालात असुरक्षित ही रहे. 1990 के दशक में जब जनरल इरशाद की सरकार थी या 1992 में जब खालिदा जिया का शासन था तब भी अल्पसंख्यकों पर हमले होते थे. 2006 तक बीएमपी-जमात-ए-इस्लामी के शासन में भी हालात ऐसे ही रहे. लेकिन 2009 में जब शेख हसीना सरकार आई तो लगा था कि अब हालात बदलेंगे लेकिन 2011 के बाद से अबतक हिंसक हमले न तो थमे हैं न ही कम होने की उम्मीद दिख रही है. हमलों के खौफ के कारण कहीं अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के बीच देश से पलायन न शुरू हो जाए. इसके लिए हम लोगों से मिलकर उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहे हैं और मदद पहुंचा रहे हैं.'


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