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खगोलविदों ने गुरु ग्रह के चंद्रमा गैनिमीड में पाए पानी की भाप के प्रमाण

Gulabi
27 July 2021 10:36 AM GMT
खगोलविदों ने गुरु ग्रह के चंद्रमा गैनिमीड में पाए पानी की भाप के प्रमाण
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हमारे खगलोविदों के पृथ्वी से बाहर जीवन की तलाश को लेकर कुछ ग्रहों के चंद्रमाओं से बहुत आशाएं

हमारे खगलोविदों के पृथ्वी (Earth) से बाहर जीवन की तलाश को लेकर कुछ ग्रहों के चंद्रमाओं से बहुत आशाएं हैं. इनमें से एक गुरु ग्रह (Jupiter) के चंद्रमा गैनिमीड भी है. वैसे तो गैनिमीड की सतह पर जमी बर्फ पहले ही खोजी जा चुकी है. पहली बार हमारे खगलोविदों को गैनिमीड पर पानी की भाप के प्रमाण मिले हैं. नासा (NASA) और यूरोपीय स्पेस एजेंसी के हबल स्पेस टेलीस्कोप के जरिए वैज्ञानिकों ने पाया है कि यह वाष्प गैनमीड की सतह पर जमी बर्फ से सीधे उत्सादित होता है, यानि ठोस अवस्था से सीथे गैसीय अवस्था में बदलता है..

यह अध्ययन नेचर एस्ट्रोनॉमी में प्रकाशित हुआ है. इससे पहले के शोध में कई ऐसे प्रमाण मिले हैं, जिनसे पता चलता है कि हमारे सौरमंडल (Solar system) के इस सबसे बड़े चंद्रमा में पृथ्वी (Earth) को महासागरों से भी ज्यादा पानी है. लेकिन यहां तापमान इतना ठंडा है जिसके कारण पानी की सतह ठोस जमी हुई है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि गैनिमीड (Ganymede) के महासागर पर्पटी के नीचे 100 मील तक गहरे हैं. इसलिए पानी की भाप इस महासागर से वाष्पीकृत होकर नहीं बन सकती है.
खगोलविदों ने हबल टेलीस्कोप (Hubble Space Telescope) के पिछले दो दशकों के अवलोकनों का फिर से आंकलन किया और तब जाकर पानी की भाप के प्रमाणों को हासिल किया. 1998 में हबल के स्पेस टेलीस्कोप इमेजिंग स्पैक्ट्रोग्राफ (STIS) ने गैनिमीड की पहले पराबैंगनी तस्वीर ली थी जिसमें ऑरोर बैंड कहे जाने वाले विद्युतीकृत गैस के रंगीन रिबन का दो तस्वीरों में खुलासा हुआ. इसके साथ ही इस बात के प्रमाण भी मिले कि गैनीमीड (Ganymede) में कमजोर मैग्नेटिक फील्ड है. इसी तरह के कुछ पराबैंगनी अवलोकन आणविक ऑक्सीजन की मौजूदगी की उपस्थिति भी दर्शाते हैं. लेकिन इसका वैज्ञानिकों को परमाणु ऑक्सीजन के होने से संबंध हो सकता है.
साल 2018 में नासा (NASA) के जूनो अभियान के सहयोग में स्वीडन के स्टॉकहोल में KTS रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के लॉरेंज रोथ की अगुआई में उनकी टीम ने हबल (Hubble) की मदद से परमाणु ऑक्सीजन का मापने का प्रयास किया. इस टीम ने 2018 में हबल के कॉस्मिक ओरिजन्स स्पैक्ट्रोस्कोप और 1998 से लेकर 2010 तक हबल के ही स्पेस टेलीस्कोप इमेजिंग स्पैक्ट्रोग्राफ (STIS) के आंकड़ों को संयुक्त विश्लेषण किया और जानकर हैरान हुए कि 1998 के आंकड़ों के मूल निष्कर्ष के विपरीत वे गैनीमीट (Ganymede) के वायुमंडल में परमाणु ऑक्सीन की उपस्थिति नहीं देख सके. इसका मतलब यही था कि पराबैंगनी ऑरोर तस्वीरों की व्याख्या कुछ और होनी चाहिए.

रोध और उनकी टीम ने पराबैंगनी तस्वीरों में ऑरोर के तुलनात्मक वितरण का फिर से अध्ययन किया. गैनिमीड (Ganymede) में दिनभर तापमान में भारी अंतर रहता है. दोपहर के समय भूमध्य रखा में यह पर्याप्त रूप से इतना गर्म हो सकता है कि वहां सतह से बर्फ थोड़ी मात्रा में ठोस अवस्था से सीथे गैसीय अवस्था में बदल सकती है. पराबैंगनी तस्वीरों में पाए गए भ्रामक अंतर का सीधा संबंध यहां के वायुमंडल (Atmosphere) में पानी की वजह से है. रोथ का कहना है कि अभी तक केवल आणविक ऑक्सीन की अवलोकित की जा सकी थी. यह तब पैदा होती है जह आवेशित कण बर्फ की सतह का अपरदन करते हैं. पानी की भाप (Water Vapour) जो शोधकर्ताओं ने नापी वह बर्फ उत्सादित होने से बनी जो गर्म बर्फीले इलकों में थर्मल एस्केप प्रक्रिया द्वारा बनती है.
इस पड़ताल में यूरोपीय स्पेस एजेंसी के आने वाले ज्यूपिटर आइसी मान्स एक्सप्लोरर (JUICE) के और जानकारी जोड़े जाने की संभावना है जिसे ESA के कॉस्मिक विजन 2015-22 कार्यक्रम के तहत साल 2022 में प्रक्षेपित किया जाएगा. यह साल 2029 में गुरु ग्रह (Jupiter) तक पहुंचेगा. यह कम से कम तीन साल तक गुरु और गैनीमीड (Ganymede) का अवलोकन करेगा. इस दौरान इसका ध्यान गैनिमीड पर ज्यादा होगा. गैनिमीड एक विस्तृत पड़ताल के लिए चुना गया है कि क्योंकि इसे बर्फीले ग्रह में संभावित आवासीयता और उसके विकास का अध्ययन करने के लिए प्राकृतिक प्रयोगशाल के दौर पर देखा जाता है. इसकी गुरु ग्रह खास मैग्नेटिक और प्लाजमा अंतरक्रियाएं खास तौर पर वैज्ञानकों का आकर्षित करती हैं.
रोथ का कहना है कि उनके अध्ययन के नतीजे JUICE उपकरण टीम के लिए बहुत कीमती जानकारी मुहैया करा सकते हैं जिसके उपयोग से वह अपने अवलनोकन योजनाओं को बेहतर बना सकते हैं. फिलहाल नासा (NASA) का जूनो अभियान गैनिमीड पर नजर बनाए हुए हैं और हाल ही में उसने गैनीमीड (Ganymede) की नई तस्वीरें जारी की हैं. जूनो अभियान गुरु ग्रह (Jupiter) और उसके वातावरण का अध्ययन कर रहा है. 2016 से इसे जूवियन सिस्टम भी कहा जा रहा है. गुरु ग्रह के जूनिवयन सिसटम और उसके इतिहास को समझना, गैसीय ग्रहों को समझने में भी मददगार होगा.
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