वैज्ञानिकों ने चांद के दोनों किनारों में अंतर की वजह पता लगा ली है। इसके दोनों किनारों पर पैदा हुआ असंतुलन 4.3 अरब वर्ष पूर्व एक क्षुद्र ग्रह के टकराने से हुआ था। टक्कर इतनी जोरदार थी कि हमसे दूर और हमें दिखाई देने वाली चांद की सतह के बीच काफी असंतुलन पैदा हो गया।
पृथ्वी से नजदीक दिखने वाले चांद का जो हमसे नजदीक वाला भाग है, उसमें ज्वालामुखी लावा का प्रवाह बना हुआ है, जबकि दूर वाले छोर में ज्वालामुखी से बने गड्ढों की भरमार है। वैज्ञानिकों की टीम ने इन्हीं गड्ढ़ों को इस अंतर का कारण माना है। इस शोध से चांद के बारे में और जानकारी जुटाने में मदद मिल सकती है। नया शोध बताता है कि इसके प्रभाव से चंद्रमा पर विशाल दक्षिणी ध्रुव ऐटकेन बेसिन का निर्माण हुआ। यह सौरमंडल में इस तरह का दूसरा सबसे बड़ा गड्ढा है।
पृथ्वी से दूर वाले छोर पर गड्ढों की भरमार
चंद्रमा की जो सतह हमसे नजदीक है या जिसे हम देख पाते हैं, उस पर लूनर मेर का प्रभाव है। वहीं, दूर वाली सतह में ज्वालामुखी से बने बड़े गड्ढे हैं, जहां बड़े पैमाने पर लावा का प्रवाह नहीं होता। 'जर्नल साइंस एडवांस' में छपे शोध में वैज्ञानिकों ने चांद की दोनों सतहों के विपरीत भौगोलिक क्षेत्र के बारे में बताया है।
पृथ्वी का करीबी किनारा प्रभावित
शोध के मुख्य लेखक और ब्राउन यूनिवर्सिटी के मैट जोंस ने बताया, शोधकर्ताओं ने उस विशाल टक्कर से पैदा हुई ऊष्मा का चांद पर प्रभाव जानने के लिए कंप्यूटर सिम्यूलेशन किया। पाया गया कि इससे सिर्फ पृथ्वी से नजदीक वाला छोऱ ही प्रभावित हुआ।
चंद्रमा के किनारों में अंतर का इतिहास
चंद्रमा के दोनों किनारों में अंतर का खुलासा अमेरिकी अपोलो मिशन व सोवियत संघ के लूना मिशन में हो गया था। नए शोध में पाया गया है कि जब क्षुद्र ग्रह चांद की सतह से टकराया तो नजदीक वाले हिस्से में लावा बहने से पुराने गड्ढे भर गए।