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अंटार्कटिका की बर्फ को 'टाइम कैप्सूल' कहा जाता है
वॉशिंगटन: अंटार्कटिका की बर्फ को 'टाइम कैप्सूल' कहा जाता है। वक्त के साथ पर्यावरण में होते बदलावों के सबूत बर्फ की परतों में दबे रहते हैं और सालों तक सुरक्षित रह सकते हैं। इनकी स्टडी के जरिए इतिहास को खंगाला जा सकता है। अब अमेरिका की ऑरिगॉन स्टेट यूनिवर्सिटी के नेतृत्व में नैशनल साइंस फाउंडेशन की फंड की हुई एक स्टडी की जाएगी जिसमें अंटार्कटिका की सबसे पुरानी बर्फ को खोजा जाएगा। इसकी मदद से यह समझने की कोशिश की जाएगी कि धरती की जलवायु कैसे बदलती चली गई।क्या होगा काम?
इस खोज के लिए 2.5 करोड़ डॉलर की लागत से सेंटर फॉर ओल्डेस्ट आइस एक्सप्लोरेशन (COLDEX) बनाया जाएगा। इस सेंटर में देश भर के एक्सपर्ट्स धरती के क्लाइमेट सिस्टम से जुड़ी चर्चा करेंगे और बदलती जलवायु के असर को समझेंगे। OSU के कॉलेज ऑफ अर्थ, ओशन ऐंड अटमॉस्फीरिक साइंसेज के पेलियोक्लाइमेटॉलजिस्ट डॉ. एड ब्रूक का कहना है कि यह साइंस को एक्सप्लोर करने का तरीका है जिसकी मदद से यह देखा जाएगा कि गर्म होने पर धरती पिछले 10 लाख से कैसे अलग बदलाव झेलती है। इसके लिए हमें इतिहास देखना होगा।
क्या बताती है बर्फ?
अंटार्कटिका में सबसे पुराना सैंपल 8 लाख साल पहले का मिला है। डॉ. ब्रूक को उम्मीद है कि नए प्रॉजेक्ट के तहत बर्फ ड्रिल करके 15 लाख साल पहले तक के रहस्य खोजे जा सकेंगे। उनका कहना है कि 8 लाख से 15 लाख साल पहले के दौरान क्लाइमेट सिस्टम बहुत अलग था। मिशन के तहत 30 लाख साल पहले तक की बर्फ खोजने की कोशिश की जाएगी। ऐसी बर्फ रेकॉर्ड्स में नहीं है लेकिन शुरुआती रिसर्च से पता लगता है कि अंटार्कटिका के पहाड़ों में ये हो सकती है। इसकी मदद से ग्रीनहाउस गैसों और जलवायु में संबंध को समझा जा सकेगा।
अंटार्कटिका में खोज मुश्किल
डॉ. ब्रूक का कहना है कि आइस कोर ड्रिल करना बेहद कठिन और महंगा होता है और इसके लिए कई साल की प्लानिंग लगती है। इसके लिए पहले मॉडलिंग की जाएगी और नए तरीके ईजाद किए जाएंगे जिससे इस खोज के लिए सटीक लोकेशन मिल सके। अंटार्कटिका में 5 हजार वैज्ञानिक -90 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान तक में स्टडी कर रहे हैं।
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