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सूर्य जैसी असीमित ऊर्जा की ओर एक और कदम, गूगल के डीप माइंड प्रोग्राम ने न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर की संभाली कमान

Subhi
23 Feb 2022 12:48 AM GMT
सूर्य जैसी असीमित ऊर्जा की ओर एक और कदम, गूगल के डीप माइंड प्रोग्राम ने न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर की संभाली कमान
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परमाणु संलयन (न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर/एनएफआर) के जरिये भविष्य में असीमित स्वच्छ ऊर्जा मुहैया कराने में जुटे विज्ञानी इस वादे को पूरा करने के एक कदम और करीब पहुंच गए हैं।

परमाणु संलयन (न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर/एनएफआर) के जरिये भविष्य में असीमित स्वच्छ ऊर्जा मुहैया कराने में जुटे विज्ञानी इस वादे को पूरा करने के एक कदम और करीब पहुंच गए हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में काम करने वाली गूगल की सहायक कंपनी डीप माइंड के एआई प्रोग्राम ने फ्यूजन रिएक्टर में प्लाज्मा को काबू करने में कामयाबी हासिल की है।

वैज्ञानिक दशकों से रिएक्टर में अस्थिर और सूर्य की सतह से भी ज्यादा गर्म प्लाज्मा को नियंत्रित करने की कोशिशों में जुटे हैं, लेकिन हर बार नई चुनौतियां का सामना करना पड़ता है। एनएफआर से दुनिया को असीमित ऊर्जा उपलब्ध कराने में यह सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है। बहरहाल, अब इस समस्या के समाधान का रास्ता मिल गया है। हालांकि, एक व्यावहारिक एनएफआर बनाने में इसके मददगार होने का दावा कई कसौटियों पर परखे जाने के बाद ही हो पाएगा।

दो प्लाज्मा एक साथ रखने में मिली कामयाबी

आरएलज प्रणाली ने एसपीसी के वैरिएबल ककन्फिगरेशन टोकामक (टीसीवी) को नियंत्रित कर रिएक्टर में प्लाज्मा को कई आकारों में तराशा, जिसमें दों प्लाज्मा एक साथ सह-अस्तित्व में रखने में भी कामयाबी मिली, जो पहले कभी नहीं हो पाया था। पारंपरिक आकृतियों के अलावा, एआई ने प्लाज्मा को उन्नत विन्यासों में भी ढाला। जिसमें नकारात्मक त्रिकोणीयता और स्नोफ्लेक जैसे आकार शामिल हैं। अगर संलयन प्रतिक्रियाओं को सतत और व्यवहार्य बना लिया जाए, तो इनमें से प्रत्येक आकृति भविष्य में ऊर्जा उत्पादन के लिए विभिन्न प्रकार की क्षमताएं रखती है। आगे इसका इस्तेमाल फ्रांस में बन रहे दुनिया के सबसे बड़े एनएफआर इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर प्रायोगिक रिएक्टर (आईटीईआर) में किया जाएगा।

प्लाज्मा नियंत्रण का अध्ययन

इकोले पॉलीटेक्निक फेडरल डी लॉजेन (ईपीईएल) के स्विस प्लाज्मा सेंटर (एसपीसी) और डीप माइंड ने मिलकर एक टोकामक के अंदर पुनर्बलित अधिगम (आरएल) प्रणाली का उपयोग कर प्लाज्मा व्यवहार के नियंत्रण की बारीकियों का अध्ययन किया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि रिएक्टर के अंदर प्लाज्मा को चुंबकीय कॉइल से नियंत्रित और निर्देशित कैसे किया जाए।

तालमेल बिगड़ने से हो सकते हैं विस्फोट

असल में चुंबकीय क्षेत्र ही करोड़ों डिग्री सेल्सियस तापमान पर प्लाज्मा को स्थिर रखने का एक जरिया है। इसे बनाए रखने के लिए कॉइल्स को प्रबंधित करने के लिए जटिल, बहुस्तरित प्रणालियों की जरूरत होती है। यह बेहद जटिल काम है और इसमें अब-तक कई लोगों को जुटना पड़ता था, जाहिर है, यहां माइक्रो सेकंड का भी तालमेल बिगड़ते ही भयानक विस्फोट हो सकता है, जो कितनी तबाही करेगा, उसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता।


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