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तानाशाह के क्रूरता का एक और बड़ा खुलासा, ईसाई धर्म आने वालो को पिलाई जाती है 'इंसानी राख' का पानी

Neha Dani
10 Oct 2020 2:56 AM GMT
तानाशाह के क्रूरता का एक और बड़ा खुलासा,  ईसाई धर्म आने वालो को पिलाई जाती है इंसानी राख का पानी
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उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन के क्रूरता के किस्से जगजाहिर हैं।

उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन के क्रूरता के किस्से जगजाहिर हैं। कभी वो अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को तोप के उड़ा देते हैं तो कभी छोटी सी गलती करने वाले अपने रिश्तेदारों को भूखे जंगली कुत्तों के सामने डलवा देते हैं। उनकी सनक और क्रूरता के बारे में तो खुद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी जिक्र किया था। उन्होंने रेज किताब के लेखक बॉब वुडवर्ड को बताया था कि किम ने अपने फूफा जांग सांग थायक की सिर कटी लाश को उत्तर कोरिया के अधिकारियों को दिखाया था।

पिलाई जाती है शवों की राख वाला पानी

हाल में उत्तर कोरिया की जेल से भागे एक कैदी ने खुलासा किया है कि वहां विदेशी टीवी शो देखने के लिए भी भयानक सजा दी जाती थी। इन कैदियों को जेल में अपने मृत साथी कैदियों की राख से भरी नदी का पानी पीने पर मजबूर किया जाता था। कैदी ने बताया कि उत्तर कोरिया के चोंचरी कंस्ट्रेशन कैंप में कैदियों के साथ जानवरों से भी बूरी सलूक किया जाता है।

जेल से भागे कैदी ने दावों की हुई पुष्टि

उत्तर कोरिया में मानव अधिकारों के लिए वाशिंगटन स्थित समिति (HRNK) ने इस कैदी का इंटरव्यू लिया है। सुरक्षा कारणों से कैदी के नाम और पहचान को गुप्त रखा गया है। उसने यह भी बताया कि मृत कैदियों के शवों को जलाने से पहले एक गोदाम में रखा जाता था, जहां चूहे और अन्य जीव उसे खाते भी थे। इस टीम ने सैटेलाइट इमेज की मदद से कैदी के कहे बातों की पुष्टि भी की है।

विदेशी चैनल देखने या ईसाई धर्म का पालने करने पर सजा

इस कैंप में दक्षिण कोरिया का कोई टीवी चैनल देखने या फिर ईसाई धर्म का पालन करने पर लोगों को कैद किया जाता है। जेल को एकाग्रता शिविर का नाम देकर अमानवीय यातनाएं दी जाती हैं। हर सप्ताह यहां किसी न किसी कैदी की मौत भी हो जाती है। जिसे कैंप के अंदर बने शवदाहगृह में जला दिया जाता है।

सोमवार को जलाए जाते थे शव

उस पूर्व कैदी ने बताया कि कैंप में हर सप्ताह सोमवार को लाशों को जलाया जाता है। यह जगह एक घर की तरह दिखती है। इसमें बने एक गोल टैंक में हम लाशों को रख देते थे। जिसकी गंध से वहां रहना भी मुश्किल होता था। बाद में लाशों की राख को हम इस शवदाहगृह के बाहर ढेर लगाकर रख देते थे। जिसका इस्तेमाल खेती में खाद के रूप में किया जाता था।

बारिश में नदी में मिल जाता था शवों का राख

जब भी बारिश होती थी तो शवों का राख बहकर पास की नदी से मिल जाता था। हमें इसी नदी का पानी पीने और नहाने के लिए दिया जाता था। यहां चोट, बीमारी, या जेल अधिकारियों द्वारा शारीरिक और मानसिक शोषण' के कारण सबसे अधिक मौते होती थीं।

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